सूर्य जिन्हें जीवन, स्वास्थ्य एवं शक्ति का देवता माना जाता है। जिनकी महिमा वेद, उपनिषदों से लेकर पुराण और विज्ञान तक गाते हैं। जिनके बारे में धारणा है कि इनकी कथा के श्रवण से ही पाप एवं दुर्गति से प्राणी मुक्त हो जाते हैं। जिन्हें ऋषि मुनियों ने ज्ञान रूपी ईश्वर स्वीकार करते हुए इनकी उपासना करने के निर्देश दिये। जिनकी प्रात:कालीन किरणों को अमृत वर्षी माना गया हैं। जिनके बारे में मान्यता है कि इनकी उत्पत्ती विराट पुरुष के नेत्रों से हुई है। इन्हीं सूर्योदेव को प्रसन्न करने के लिये आपको बताने जा रहे हैं सूर्यनमस्कार के महत्व को।
सूर्यदेव पूरे ब्रह्मांड की केन्द्रक शक्ति माने जाते हैं। जीवन में प्रकाश, ज्ञान, ऊर्जा, ऊष्मा, जीवन शक्ति के संचार और रोगाणु-किटाणु (भूत-प्रेत-पिशाचादि) के नाश के लिये जगत के समस्त जीव सूर्यदेव पर निर्भर हैं। सूर्य नमस्कार करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और हमारे जीवन में अज्ञानता के अंधकार को दूर कर शक्ति का संचार करते हैं। सूर्य नमस्कार वैसे तो एक सर्वांग व्यायाम है लेकिन यह व्यायाम के साथ सूर्योपासना का तरीका भी है विधिवत पूजा करने से जो पुण्य प्राप्त होता है उसके समान पुण्य ही सूर्यदेव को प्रात:काल सूर्य नमस्कार करने मिलता है। कहा भी जाता है कि
यानि जो लोग सूर्यदेव को हर रोज नमस्कार करते हैं उन्हें सहस्त्रों जन्म दरिद्रता प्राप्त नहीं होती। इसके साथ साथ सूर्योपासना से कुष्ठरोग, नेत्रादि रोग दूर होते हैं। जिनकी राशि में सूर्य देव अशुभ हों उन्हें अग्निरोग, ज्वय बुद्धि, जलन, क्षय, अतिसार आदि रोग हो सकते हैं प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करने से जातक निरोगी, वैभवशाली, सामर्थ्यवान, कार्यक्षमतावान, और पूर्णायु होने के साथ साथ उसका व्यक्तित्व भी प्रतिभाशाली होता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सूर्य नमस्कार 13 बार करना चाहिये। हर बार सूर्य नमस्कार के साथ-साथ ॐ मित्राय नमः, ॐ रवये नमः, ॐ सूर्याय नमः, ॐ भानवे नमः, ॐ खगाय नमः, ॐ पूष्णे नमः, ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, ॐ मरीचये नमः, ॐ आदित्याय नमः, ॐ सवित्रे नमः, ॐ अर्काय नमः, ॐ भास्कराय नमः, ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः इन तेरह मंत्रो का उच्चारण भी अवश्य करना चाहिये।
विधिवत सूर्य नमस्कार करने के लिये स्थितप्रार्थनासन, हस्तोत्तानासन या कहें अर्धचंद्रासन, हस्तपादासन या पादहस्तासन, एकपादप्रसारणासन, भूधरासन या दंडासन, षाष्टांग प्रणिपात, सर्पासन या भुजंगासन, पर्वतासन, इसके बाद फिर से एकपादप्रसारणासन (दूसरे पांव के साथ), फिर से हस्तपादासन, हस्तोत्तानासन से होते हुए अंत में फिर से पहले वाली स्थिति यानि स्थितप्रार्थनासन आदि बारह स्थितियों से गुजरना पड़ता है। इन्हीं बारह स्थितियों के कारण सूर्य नमस्कार को सर्वांग व्यायाम भी माना जाता है। सूर्य नमस्कार के साथ ही सूर्यदेव को जल अर्पित करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
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