मंदिर एवं देवी-देवताओं की करामाती कहानियां आपने बहुत सुनी होंगी, लेकिन हम आपको जिस मंदिर की कहानी यहां बता रहे हैं वह बहुत ही करामाती, अनोखी, एवं अद्भुत तो है ही साथ ही इस पर यकीन दिलाने के लिए सबूत मौजूद हैं।
अक्सर देवी-देवताओं का कहानियों या फिर मंदिर के इतिहास को पंडित, पुजारियों के मुंह से ही सुना होगा। क्या कभी कोई ऐसा मंदिर देखा है जहां देश के जवान ही सारी क्रियाएं संपन्न करते हों। लेकिन भारत में एक ऐसा मंदिर है जिसकी गौरवगाथा में सैनिकों ने भी अपनी दास्तानें पिरोई हैं।
दरअसल जैसलमेर से 120 किलोमीटर की दूरी पर भारत-पाक सीमा पर तनोट माता का मंदिर स्थापित है। कहा जाता है कि संवत 847 में भाटी राजपूत राजा तनु राव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था। उसी समय यहां पर मंदिर की नींव रखी गई व मां की मूर्ति की स्थापना की गई। बाद में उसने अपनी राजधानी बदलकर जैसलमेर बना ली लेकिन मंदिर ज्यों का त्यों रहा।
किंवदंतियां
कहा जाता है कि 1965 में पाक सेना ने जैसलमेर पर हमला कर दिया। उस समय तनोट माता ने सेना के कुछ जवानों को स्वप्न में दर्शन दिए और आश्वासन दिया कि मैं तुम्हारी रक्षा करुंगी। पाकिस्तानी सेना किशनगढ़ और साढ़ेवाला पर कब्जा कर तन्नौट को दोनों ओर से घेर चुकी थी। पाकिस्तानी सेना की ओर से भारी बमबारी होने लगी। सैनिकों के अनुसार 3000 से अधिक गोले पाक ने दागे लेकिन माता का आशीर्वाद देखिए अधिकतर गोले फटे ही नहीं या खुले में ब्लास्ट हुए जिससे किसी तरह की जान माल की हानि नहीं हुई। इसके बाद भारतीय सेना की एक टुकड़ी वहां आ गई व पाकिस्तानी सैनिकों को भागने पर मजबूर होना पड़ा। इतना ही नहीं 1971 में 4 दिसंबर 1971 की रात पाक सेना ने टैंक रेजिमेंट के साथ भारत की लोंगेवाला चौकी पर हमला कर दिया। उस समय वहां पर बीएसएफ व पंजाब रेजिमेंट की एक-एक कंपनी तैनात थी। लेकिन तनोट माता के आशीर्वाद से भारतीय सैनिकों ने, सभी टैंकों को खत्म कर दिया व सुबह होते ही वायु सेना ने हमला किया। विश्व भर में हुए युद्धों में लोंगेवाला युद्ध को अपनी तरह का युद्ध माना जाता है जिसमें आक्रमणकारी सेना का एकतरफा खात्मा हुआ। युद्ध के बाद भारतीय सेना ने यहां पर विजय स्तंभ का निर्माण करवाया।
तनोट माता को देवी हिंगलाज का अवतार माना जाता है। गौरतलब है कि देवी हिंगलाज का मन्दिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है। वर्तमान में तनोट माता मंदिर की देख-रेख का पूरा जिम्मा सुरक्षा बलों के हाथ में हैं। मंदिर में संग्रहालय भी है जहां पर पाकिस्तानी सेना द्वारा दागे गोले आज भी रखे हैं। मंदिर में पुजारी भी सैनिक ही है। प्रतिदिन सुबह-शाम आरती होती है तथा मंदिर के मुख्य द्वार पर एक सिपाही तैनात रहता है।
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