
Tripund Tilak: क्या आपने कभी किसी साधु, पुजारी या शिवभक्त के माथे पर सफेद राख से बने तीन आड़ी रेखाएं देखी हैं? क्या सोचा है कि ये सिर्फ धार्मिक पहचान हैं या फिर इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक रहस्य छिपा है? त्रिपुंड – ये तीन रेखाएं – सिर्फ एक तिलक नहीं, बल्कि भगवान शिव का आशीर्वाद मानी जाती हैं। हरिद्वार से लेकर काशी तक और आश्रमों से लेकर घरों की पूजा तक, त्रिपुंड एक ऐसी परंपरा है जो हमें शिव से जोड़ती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि त्रिपुंड लगाने के पीछे नियम, मंत्र और विशेष विधि होती है? अगर आप इसे सही तरीके से लगाएं, तो जीवन में कई मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ भी पा सकते हैं। चलिए इस लेख में जानते हैं कि त्रिपुंड क्या है, कैसे लगाया जाता है और इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है।
त्रिपुंड, भस्म से माथे पर बनाई गई तीन आड़ी रेखाएं होती हैं, जिसे खासकर शिवभक्त धारण करते हैं। यह सिर्फ एक धार्मिक तिलक नहीं, बल्कि यह एक प्रतीक है – आत्मज्ञान, त्याग और तपस्या का। त्रिपुंड को लगाने के पीछे गहरी आध्यात्मिक सोच है।
त्रिपुंड में—
ऊपरी रेखा बृहस्पति का प्रतीक मानी जाती है,
मंझली रेखा शनि से जुड़ी होती है,
निचली रेखा सूर्यदेव की प्रतीक मानी जाती है।
इन तीनों देवताओं का संतुलन व्यक्ति के ज्ञान, अनुशासन और ऊर्जा को संतुलित करता है।
हिंदू धर्म में त्रिपुंड को शिव का महाप्रसाद माना गया है। यह शिव के तीन नेत्रों, त्रिगुण – सत्व, रज और तम – तथा त्रिलोक (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) का प्रतीक है।
वासुदेवोपनिषद में कहा गया है कि त्रिपुंड तीन व्याहृति, तीन छंदों और त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का भी प्रतिनिधित्व करता है।
शिवपुराण के अनुसार, माथे पर त्रिपुंड लगाने से सारे अमंगल दूर होते हैं।
भस्म से बना त्रिपुंड सबसे पवित्र और पुण्यदायक माना गया है।
त्रिपुंड पहनने वाला व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षित रहता है।
इससे आयु में वृद्धि होती है और मानसिक शांति मिलती है।
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त्रिपुंड को लगाने की विधि केवल तिलक लगाने जितनी आसान नहीं है। इसके लिए तन और मन की शुद्धता जरूरी होती है।
सही विधि:
सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
एक ताम्र पात्र या हाथ की हथेली में शुद्ध भस्म लें।
उसे अभिमंत्रित करने के लिए उसमें थोड़ा जल मिलाएं।
अब भस्म को शिवलिंग या शिव प्रतिमा पर अर्पित करें।
फिर उसी भस्म को माथे पर तीन आड़ी रेखाओं के रूप में लगाएं।
ध्यान दें कि त्रिपुंड लगाने के समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
कौन सी उंगलियों से लगाएं:
त्रिपुंड को हमेशा तर्जनी (index finger), मध्यमा (middle finger) और अनामिका (ring finger) से लगाया जाता है।
दिशा: बाएं से दाएं ओर लगाना चाहिए।
त्रिपुंड लगाने से पहले भस्म को मंत्रों से अभिमंत्रित करना आवश्यक होता है। इससे उसकी ऊर्जा और प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।
ॐ अग्निरिति भस्म।
ॐ वायुरिति भस्म।
ॐ जलमिति भस्म।
ॐ व्योमेति भस्म।
ॐ सर्वं ह वा इदं भस्म।
ॐ मन एतानि चक्षूंषि भस्मानीति।
ॐ त्रयायुषं जमदग्नेरिति ललाटे।
ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषमिति ग्रीवायाम्।
ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति भुजायाम्।
ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषमिति हृदये।
त्रिपुंड केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि इसके कई मानसिक और शारीरिक लाभ भी हैं। आइए जानते हैं इसके मुख्य फायदे:
आध्यात्मिक जागृति: त्रिपुंड लगाने से साधक का मन ध्यान और साधना की ओर केंद्रित होता है।
नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा: भस्म से बना त्रिपुंड व्यक्ति को बुरी नजर, नकारात्मक सोच और नकारात्मक शक्तियों से बचाता है।
आयु में वृद्धि: पुराणों के अनुसार त्रिपुंड लगाने से देवताओं और ऋषियों की आयु प्राप्त होती है।
मानसिक संतुलन: इससे चित्त शांत होता है और मनोबल बढ़ता है।
शरीर की ऊर्जा जाग्रत होती है, विशेषकर जब इसे हृदय, ग्रीवा और भुजाओं पर भी लगाया जाता है।
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अगर आपकी कुंडली में चंद्र दोष है या मानसिक बेचैनी अक्सर बनी रहती है, तो सावन के सोमवार पर यह उपाय ज़रूर करें:
शिवलिंग पर चंदन का त्रिपुंड लगाएं।
फिर उसी चंदन को अपने माथे पर त्रिपुंड के रूप में लगाएं।
मान्यता: चूंकि शिवजी के मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हैं, चंदन के त्रिपुंड से चंद्र दोष शांति मिलती है और मन स्थिर होता है।
त्रिपुंड केवल एक धार्मिक तिलक नहीं, बल्कि शिवभक्ति का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह तन, मन और आत्मा को जोड़ने वाला एक प्रतीक है। जब आप इसे सही विधि और मंत्रों के साथ लगाते हैं, तो यह साधारण तिलक नहीं रह जाता – यह शिव का प्रसाद बन जाता है, जो नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है, मानसिक संतुलन देता है और आपकी साधना को सफल बनाता है।
अगर आप भी शिवभक्त हैं, या जीवन में एक नई आध्यात्मिक शुरुआत करना चाहते हैं, तो त्रिपुंड लगाने की यह परंपरा अपनाएं। यह न सिर्फ आपको शिव के करीब लाएगा, बल्कि आपको आत्मिक ऊर्जा से भर देगा।