तुलादान - श्रीकृष्ण की लीला से शुरु हुआ यह महादान

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तुलादान - श्रीकृष्ण की लीला से शुरु हुआ यह महादान

तुलादान, एक ऐसा दान है, जिसकी अपनी पौराणिक मान्यता है। यह पौराणिक मान्यता भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हई है। जिसके बारे में हम आगे जानकारी देंगे। तुलादान का महत्व ज्योतिष में भी बताया गया है। ज्योतिषाचार्य इस दान को कुछ ज्योतिषीय उपाय के रूप में करने की सलाह देते हैं। जिसका लाभ भी मिलाता देखा गया है। इसी के साथ इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। यदि आप तुलादान के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो आपको यह लेख अंत तक पढ़ना चाहिए। इस लेख में हम आज तुलादान क्या है? इसे क्यों किया जाता है ? इसका क्या महत्व है? इसकी पौराणिक प्रंसागिकता क्या है? इसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।

यदि आप तुलादान करने का मन बना रहे हैं तो आपको ज्योतिषाचार्य से जरूर परामर्श करना चाहिए इससे आपका दान भी हो जाएगा और आपको ग्रह दोष से मुक्ति भी मिल जाएगी। 
 


तुला दान है क्या?

सबसे पहले हम जानते हैं कि तुला दान है क्या? वैसे तो कई तरह के दान हिंदू धर्म में किए जाते हैं। जैसे गौ दान, स्वर्णदान, भूमिदान आदि। हिंदू धर्म में तुलादान बहुत ही प्रचलित दान है। तुलादान को महादान भी कहा जाता है। इस दान को सभी दानों से अधिक महत्व व विशेष बताया गया है। इस दान में जातक अपने भार के बराबर अन्न और धन का दान करता है।

 

तुलादान की पौराणिक कथा

तुलादान को लेकर कई पौराणिक कथा प्रचलित हैं। परंतु यहां हम आपको दो कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण व सत्यभामा से संबंधित है। कथा इस प्रकार है कि एक बार सत्यभामा ने श्रीहरि पर एकाधिकार पाने के लिए नारद मुनि को दान कर दिया, जब नारद जी श्रीकृष्ण को अपने साथ लेकर जाने लगे तब सत्यभामा को अपनी भूल का आभास हुआ इसके बाद सत्यभामा ने नारद मुनि से क्षमा मांगते हुए श्रीहरि के बदले कुछ और मांगने को कहा श्रीहरि के लीला में नारद भी शामिल थे ऐसे में नारद ने सत्यभामा से हरि के भार के बराबर अन्न, धन मांगा, सत्यभामा इसके लिए राजी हो गई परंतु श्रीहरि की लीला के बारे में सत्यभामा को कुछ अंदाजा न था, तराजू मंगाया गया, एक पड़ले पर श्रीकृष्ण व दूसरे पर उनके भार के बराबर स्वर्ण से लेकर हर तरह की संपत्ति रखी गई लेकिन श्रीहरि का पड़ला टस से मस न हुआ राज्यकोष समाप्त हो गया। इसके बाद रूक्मणी ने सत्यभामा से एक तुसली का पत्ता तुला के दूसरे पड़ले पर रखने के लिए कहा जैसे ही तुलसी का पत्ता रखा गया स्वर्ण व संपत्ती का भार श्रीकृष्ण के बराबर हो गया। इसके बाद श्रीहरि ने तुला दान को महादान कहा।, उन्होंने कहा कि जो भी इस दान को करेगा वह सर्वसुख व वैभव का भोगी होगा। तब से राजा, सम्राट, संत आदि इस दान को करते आए हैं।

 

तुलादान का ज्योतिष संबंध

तुलादान का ज्योतिषीय महत्व भी है। ज्योतिष शास्त्र में इस दान को करने के लिए कई ज्योतिषीय उपाय का उल्लेख मिलता है। इसे ज्योतिषी उपाय के तहत किया भी जाता है। मान्यता है कि इस दान में नौ ग्रह सामग्री का दान किया जाता है। जिससे ग्रह शांत होते हैं। ज्योतिषों का कहना है कि इस दान में बड़ी ही सरलता से नौ ग्रह दान किया जाता है। नौ ग्रह दान करने से स्वास्थ्य लाभ से लेकर धन लाभ व संबंधो में सुधार होता है। ज्योतिष में इन ग्रहों को कई चीजों का कारक माना जाता है। इनके प्रभाव के बिना सही परिणाम मिलना संभव नहीं है। इसलिए नौ ग्रह दान तुलादान के अंतर्गत किया जाता है। परंतु यह दान यदि आप कुंडली का आकलन करवाकर करते हैं तो इसका आपको अधिक लाभ मिलेगा। 

 

तुला दान कैसे करते हैं?

जो जातक तुला दान करना चाहता है सबसे पहले भगवान श्रीहरि विष्णु का स्मरण करता है, फिर वह तुला की परिक्रमा करके एक पलड़े पर बैठ जाता है, दूसरे पलड़े पर ब्राह्मण लोग धन-अन्न और आभूषण रखते हैं। तराजू के दोनों पलड़ें बराबर होने पर पृथ्वी का आह्वान किया जाता है। दान देने वाला तराजू के पलड़े से उतर जाता है, फिर चढ़ाए गए धन का आधा भाग गुरु को और दूसरा भाग ब्राह्मण को दिया जाता है देते समय हाथ में जल गिराया जाता है। यह दान बहुत ही दुर्लभ है। एक बात और इस दान को मकर संक्रांति के दिन करने पर इसका अधिक व विशेष लाभ प्राप्त होता है।

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