हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व होता है। विवाह भी इन्हीं संस्कारों में से एक है। विवाह को प्रणयसंस्कार भी कहा जाता है। विवाह न सिर्फ दो व्यक्तियों का बल्कि दो संस्कृतियों और परिवारों का भी मिलन होता है। भारतीय रीति-रिवाज के अनुसार, विवाह के रिश्ते में लोग अगले सात जन्म तक एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा करते हैं। धार्मिक दृष्टि से भी शादी के बंधन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि विवाह संस्कार को पूरे रीति-रिवाज और मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न किया जाता है। हिन्दू धर्म में विवाह के मुख्य आठ प्रकार बताए गए हैं। यह आठ विवाह के प्रकार अलग-अलग सामाजिक, और नैतिक मानदंडों पर आधारित होते हैं। तो आइए जानते हैं विवाह के प्रकार और उनके नियमों के बारे में और साथ ही जनते हैं हिंदू धर्म में इनका क्या महत्व है।
हिन्दू धर्म में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। प्रत्येक विवाह के प्रकार का अपना धार्मिक और सामाजिक आधार है। ज्योतिष में भी विवाह के प्रकार को बहुत महत्व दिया जाता है। विवाह के जो प्रकार सामाजिक, नैतिक और धार्मिक मूल्यों का पालन करते हैं उन्हें उचित और शुभ माना जाता है। वहीं जो इनका पालन नहीं करते वो समाज में निम्न स्तर के और अनुचित माने जाते हैं। इस प्रकार, ब्रह्म विवाह और देव विवाह को समाज में सबसे श्रेष्ठ माना गया है, वहीं असुर और पैशाच विवाह को गलत माना गया है। विवाह के कुछ प्रकार ऐसे हैं जो प्राचीन समय में हुआ करते थे। हालांकि ब्रह्म विवाह और गांधर्व विवाह वर्तमान में भी किए जाते हैं।
हिन्दू ग्रंथों में विवाह के प्रकार कुल आठ बताए गए हैं। यह सभी विवाह के प्रकार अलग-अलग महत्व रखते हैं और । इसमें सबसे उच्च स्थान ब्रह्म विवाह को प्राप्त होता है इसके बाद बाकि के सात विवाह आते हैं। तो चलिए जानते हैं हिंदू विवाह के प्रकार-
ब्रह्म विवाह
हिंदू धर्म में ब्रह्म विवाह को सबसे शुभ और श्रेष्ठ माना जाता है। विवाह के इस प्रकार में पिता अपनी पुत्री के लिए सबसे अच्छा वर तालशता है। जब वह पूरी तरह से संदेह से मुक्त हो जाता है तो अपनी पुत्री का विवाह संपन्न करवाता है। इस विवाह में पिता एक ऐसा वर ढूंढता है जो योग्य होने के साथ-साथ सदाचारी और अच्छे गुणों वाला हो। विवाह के लिए पिता, वर व उसके परिवार को अपने घर बुलाता है और अपनी कन्या की सहमति के साथ अग्नि को साक्षी मानकर उसका विवाह संपन्न करवा देता है। इस तरह के विवाह में पैसों का लेन-देन नहीं होता। यह विवाह का प्रकार धार्मिक और सामाजिक रूप से स्वीकृत होता है।
देव विवाह
विवाह का यह प्रकार भी शुभ माना जाता है। देव विवाह में कन्या का विवाह किसी ऐसे व्यक्ति से किया जाता है जो यज्ञ या धार्मिक कार्यों में शामिल हो। ऐसे यज्ञ जो देवताओं के लिए किए जाते हैं, इसलिए इसे देव विवाह कहा जाता है। इस विवाह में कन्या की भी पूर्ण सहमति होती है। हिंदू विवाह का प्रकार भी धार्मिक दृष्टि से सम्मानजनक होता है।
आर्ष विवाह
यह विवाह सतयुग के समय प्रचलित था। आर्ष विवाह में कन्या का विवाह किसी ऋषि या मुनि से किया जाता था। इस विवाह का मुख्य उद्देश्य धर्म की उन्नति से जुड़ा होता था। इस प्रकार के विवाह में वर कन्या के पिता को कुछ गाय दान में देता है। यह गौदान केवल धार्मिक कारणों से किया जाता था। विवाह का यह प्रकार बहुत सरल और साधारण होता था।
प्राजापत्य विवाह
इस विवाह की प्रक्रिया भी ब्रह्म विवाह की तरह ही होती है। प्राजापत्य विवाह में दो सामान्य परिवारों के बीच रिश्ता जुड़ता है। विवाह का यह प्रकार बिना किसी आर्थिक लालच में किया जाता है। इसमें माता-पिता वर को अपनी कन्या देते हैं ताकि वे धर्मपूर्वक जीवन व्यतीत करें। भारतीय विवाह का यह प्रकार वर्तमान में भी प्रचलन में है।
असुर विवाह
असुर विवाह को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से उतना शुभ नहीं माना जाता है। हिंदू विवाह के इस प्रकार में वर कन्या के माता पिता को धन-संपत्ति देता है और बदले में कन्या से विवाह करता है। यह एक तरीके से दहेज़ प्रथा में शामिल है। सामजिक और नैतिक दृष्टि से इस विवाह को बहुत अच्छा नहीं माना जाता है, क्योंकि इसमें आर्थिक लाभ भी सम्मिलित है। इस विवाह में वधु की सहमति या असहमति का कोई महत्व नहीं होता है।
गांधर्व विवाह
वर्तमान में गांधर्व विवाह को लव मैरिज कहा जाता है। यह विवाह प्रेम पर आधारित होता है। इसमें वर और वधु दो ऐसे लोग होते हैं जो एकदूसरे से प्रेम करते हैं और आपसी सहमति से विवाह करते हैं। इसमें माता-पिता और बड़ों का आशीर्वाद उनके साथ रहता है।
राक्षस विवाह
राक्षस विवाह को बहुत अशुभ माना जाता है। इस विवाह में आमतौर पर जोर, जबरदस्ती, छल या कपट से वर वधु से विवाह करता है। इसमें कन्या की सहमति नहीं होती है। ऐसे विवाह युद्धों और संघर्षों के दौरान किए जाते थे, जब पराजित पक्ष की महिलाओं या कन्याओं से जबरदस्ती विवाह कर लिया जाता था। ग्रंथों में विवाह का यह प्रकार सबसे निम्न श्रेणी का माना जाता है।
पैशाच विवाह
यह विवाह के प्रकार में इसे सबसे अधिक निंदनीय और अनुचित माना जाता है। इसमें वर वधु के साथ नशे की हालत में, शारीरिक संबंध बनाकर या मानसिक कमजोरी का फायदा उठाकर शादी करता है। शास्त्रों में इस विवाह को एक पाप के सामान माना जाता है। इस विवाह को धार्मिक और नैतिक दृष्टि से स्वीकृति नहीं मिलती है।
विवाह के इन अलग-अलग प्रकार के आधार पर हम जान सकते हैं कि किस तरह का विवाह सबसे अच्छा होता है। विवाह का बंधन बहुत महत्वपूर्ण होता है, इसलिए इसका उचित आधारों पर संपन्न होना बहुत जरूरी है।
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