यूं तो आपने कई शिवलिंगों के बारे में सुना होगा। लेकिन आपने कभी ऐसे शिवलिंग के बारे में सुना है जो घी से ढका हुआ है और उस पर चढ़ा घी पीघलता नहीं है। आज तक कोई इस बारे में नहीं जान पाया है। ऐसा होना अपने आप में ही एक अनोखी बात है। क्या वाकई घी नहीं पीघलता है? की यह बस कहने वाली है? यदि नहीं है तो क्यों यह इतना प्रसिद्ध है? इसके पीछे की क्या सच्चाई है? इस लेख में हम इस अद्भुत शिवलिंग के बारे में जानेंगे।
हिंदू धर्म में शिव की क्या महिमा है यह हम सब जानते हैं। शिव की कृपा जिस पर बन जाए, उसके सारे दुख दर्द खत्म हो जाते हैं। इसके साथ ही जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है। हिंदू सनातन धर्म में शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों के बारे में विस्तार से बताया गया है। माना जाता है कि इस अनोखे शिवलिंग का संबंध केदारनाथ से हैं। इसके साथ ही इस शिवलिंग पर घी के परत का संबंध कैलाश पर्वत के बर्फ से माना जाता है। यहां के लोगों का कहना है कि घी यदि पीघलता है तो कोई बड़ा अनिष्ट होने का संकेत है। परंतु ऐसा कभी हुआ भी है इसका साक्ष्य नहीं मिला है।
यह प्राचीन शिव मंदिर दक्षिण भारत के केरल राज्य में त्रिशुर नामक नगर के मध्य में स्थित है। इस मंदिर को वडकुनाथन मंदिर के साथ ही ऋषभाचलम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर लभभग एक हजार साल पुराना है और नौ एकड़ भू-भाग पर फैला है। इसकी वास्तुकला देखते ही बनती है। मंदिर के चारों दिशा में द्वार बनाए गए हैं। जिन्हें स्थानीय लोग गोपुरम कहते हैं। मंदिर में स्थित शिवलिंग के स्थान पर लगभग 15 से 16 फुट ऊंचा घी का टीला दिखायी देता है। मंदिर पत्थर की दिवारों से बना है। जिसे देखने लाखों पर्यटक हर वर्ष आते हैं। कुंडली के अनुसार कैसे करे शिव पूजा जानने के लिए बात करें देश के प्रसिद्ध ज्योचिषाचार्यों से।
मंदिर को लेकर मान्यता है कि इसकी स्थापना परशुराम ने की थी। नरसंहार करने के बाद परशुराम अपने इस पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां यज्ञ किए और सारी भूमि ब्राह्मणों को दान कर दी। दान के बाद उनके पास भूमि का एक भी धुर न बचा। इसके बाद वे वरूणदेव से तपस्या हेतु भूमि का एक टुकड़ा मांगा। जिसे हम आज केरल के नाम से जानते हैं। परशुराम ने यहां वडकुनाथन मंदिर की स्थापना की। इसके अलावा भी वे यहां कई अन्य मंदिर बनाए।
इसके अलावा एक और मान्यता है माना जाता है कि यहां आदि शंकराचार्य की माता सुभद्रा व पिता शिवगुरू भट्ट ने संतान प्राप्ति के लिए तप किये थे। जिसके पश्चात उनके घर आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ। आदि शंकराचार्य को सनातन हिंदू धर्म के चार धामों की स्थापना की। जो आज वर्तमान में सबसे पवित्र धार्मिक स्थान हैं। इस मंदिर में आदि शंकराचार्य की एक समाधि भी बनायी गई है। जिसके बगल में एक मंदिर का निर्माण किया गया है जिसमें आदि शंकराचार्य की मूर्ति स्थापित की गई है। परंतु जैसा की जग जाहिर है आदि शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ मंदिर के पीछे विद्यमान है। जिसे आदि शंकराचार्य का समाधि स्थल माना जाता है।
कैसे पहुंचे यहां?
इस अनोखे व धार्मिक महत्व रखने वाले मंदिर तक पहुंचने के लिए आप हवाई, सड़क व रेल मार्ग का उपयोग कर सकते हैं।
वायु मार्ग
वायु मार्ग से यहां पहुंचने के लिए आपको कोच्ची की फ्लाईट लेनी होगी। क्योंकि यही हवाई अड्डा यहां से सबसे नजदीक है। कोच्ची एयरपोर्ट से मंदिर की दूरी लगभग 53 किमी है।
सड़क मार्ग
सड़क मार्ग के जरिए वडकुनाथन मंदिर देश के किसी भी कोने से पहुंचा जा सकता है। आपकी निजी गाड़ी हो तो आपका सफर यादगार रहेगा।
रेल मार्ग
रेल मार्ग से भी यह मंदिर अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां पहुंचने के लिए कोई भी भारतीय रेल की सेवा ले सकता है। मंदिर से सबसे करीबी रेलवे स्टेशन त्रिशुर में ही स्थित है।