भारत ज्ञान के मामले में दुनिया का गुरु माना जाता है। विज्ञान अभी जिन चीज़ों की तह तक पंहुचने के लिये पहले पायदान पर खड़ा है, भारतीय ग्रंथों में उनसे संबंधित जानकारियां पहले से मौजूद मिलती हैं। देवताओं की वाणी मानी जाने वाले वेद इसका उदाहरण माने जा सकते हैं। वेद हिंदू धर्म के प्राचीन और बुनियादी धर्मग्रंथ भी हैं। वेदों की कुछ पुरानी लिपियां तो आज वैश्विक धरोहर मानी जाती हैं। वेदों में वर्णित मंत्रों की मान्यता आज भी बरकरार है। आइये जानते हैं इन्हीं वेदों के बारे में? वेद कितने प्रकार के हैं और कैसे अस्तित्व में आये? वेदों की प्रासंगिकता क्या है? वेद सच हैं या झूठ? इनकी रचना किसने की मनुष्य ने या ईश्वर ने?
वैसे तो यह जगजाहिर है कि वेद क्या हैं? वेद ईश्वर जनित वह ज्ञान माना जाता है जिसका प्राकाट्य कड़ा तप करने वाली पुण्यात्माओं (ऋषियों) के हृद्य में हुआ। यदि शाब्दिक अर्थ की बात करें तो वेद शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा की विद् धातु से हुई है। विद् का तात्पर्य होता है जानना अर्थात ज्ञान। वेद हिंदू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथ माने जाते हैं। वैदिक युग, वैदिक संस्कृति आदि वेद से ही बने हैं। मान्यतानुसार प्राचीन समय में भगवान ने ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से वेद मंत्र सुनाये थे। इसी कारण वेदों को श्रुति भी कहा गया है। मनुस्मृति में कहा भी गया है
'श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेय:'
'आदिसृष्टिमारभ्याद्यपर्यन्तं ब्रह्मादिभि: सर्वा: सत्यविद्या: श्रूयन्ते सा श्रुति:।।‘
वैदिक युग में समाधी में लीन सत्परुषों को विश्व के आध्यात्मिक उत्थान के लिये परमात्मा ने महाज्ञान प्रदान किया। क्योंकि उन्होंने भगवान द्वारा प्रदत यह ज्ञान सुना इसलिये इसे श्रुति भी कहते हैं।
वेदों को अनन्त भी कहा गया है श्रुति भगवति बतलाती हैं ‘अनन्ता वै वेदा:’ अर्थात जो अनंत हैं वही वेद हैं। वेद का अर्थ है ज्ञान और ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती वह अनंत होता है इसलिये वेद भी अनंत हैं।
मान्यता है कि आरंभ में वेद एक ही थे हालांकि कई धार्मिक ग्रंथों में इनकी संख्या आरंभ से ही चार मानी गई है। मुण्डकोपनिषद की मान्यता के अनुसार ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद ये चार वेद हैं।
वेद गुरु शिष्य परंपरा के तहत आगे बढ़ें हैं। परमात्मा ने आरंभ में जिन महात्माओं को यह महाज्ञान संसार के कल्याण के लिये प्रदान किया उन्होंने अपने शिष्यों को और फिर पीढ़ी दर पीढ़ी यह ज्ञान आगे फैलता रहा। इस प्रकार वेद शिक्षा की परंपरा चार-पांच हजार वर्षों से चलन में होने की मान्यता है। मान्यतानुसार आरंभिक अवस्था में वेद एक ही था जिसमें अनेक ऋचाएं थी। इन्हें वेद-सूत्र कहा जाता था। इनमें यज्ञादि करने की विधि, गेय पद, एवं लोक कल्याण से जुड़े अनेक छंद, मंत्र हैं। सतयुग और त्रेता तक वेद एक ही माना जाता है लेकिन द्वापरयुग में महर्षि कृष्णद्वैपायन ने वेदों को चार भागों में विभाजित किया। संस्कृत में विभाग को व्यास भी कहा जाता है वेदों का व्यास करने के कारण ही कृष्णद्वैपायन वेदव्यास कहलाये। पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु वेदव्यास के शिष्य थे। चारों शिष्यों को चारों वेद की शिक्षा इन्होंने दी। पैल को ऋग्वेद तो वैशम्पायन को यजुर्वेद का ज्ञान दिया। जैमिनी को सामवेद तो सुमन्तु को अथर्ववेद की शिक्षा दी। इसके बाद आगे से आगे वेदों की शिक्षा दी जाती रही।
वेद में लगभग एक लाख मंत्र माने जाते हैं। जिनमें 4 हजार ज्ञान कांड, 16 हजार उपासना विधि, 80 हजार कर्मकांड विषय के हैं। मंत्रों की व्याख्या जिससे होती है उसे ब्राह्मण कहते हैं। प्रत्येक वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है। ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है ऐतरेय, यजुर्वेद का शतपथ, सामवेद का पंचविंश एवं अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण।
इसी प्रकार हर वेद का एक उपवेद भी है। ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद, अथर्ववेद का अर्थशास्त्र।
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, एवं ज्योतिष यह छह शास्त्र वेद के अंग माने जाते हैं। वेदों के उपांग को षड्दर्शन या षड्शास्त्र भी कहा जाता है।
इस लेख से वेदों को जानने में आपकी थोड़ी बहुत रूचि बढ़ी है या आपको कुछ जानकारी मिली है तो हम समझते हैं हमारा यह प्रयास सार्थक है। आप अपनी प्रतिक्रिया हमें दे सकते हैं। वेद के छह अंगों में से एक है ज्योतिषशास्त्र। ज्योतिष के माध्यम से आप अपने जीवन की उलझी गुत्थियों को सुलझा सकते हैं, मार्गदर्शन पा सकते हैं। देशभर के विद्वान ज्योतिषाचार्यों से परामर्श करने के लिये यहां क्लिक करें।