हिंदू धर्म में कुछ प्रमुख त्योहार और व्रतों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। विजया एकादशी 2023 भी इन्हीं विशेष दिनों में से एक है। एकादशी (Ekadashi) तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से भक्तों को पापों से मुक्ति मिलती है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अगर आप श्री हरि को प्रसन्न करना चाहते हैं तो इस दिन व्रत रखना आपके लिए बेहद लाभकारी हो सकता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी व्रत रखा जाता है। आइए जानते हैं इस साल विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi 2023) किस तारिख को रखा जाएगा।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस साल विजया एकादशी की तिथि 16 फरवरी को आरंभ होगी और ये अगले दिन 17 फरवरी तक रहेगी। व्रत रखने के इच्छुक भक्तों के लिए 16 फरवरी को व्रत रखना शुभ फल देगा। इस दिन उपवास रख कर श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और पवित्र मन से हरि का ध्यान किया जाता है।
व्रत पारण का शुभ समय
जानें साल 2023 में आने वाली सभी एकादशी तिथियों के बारे में !
विजया एकादशी का महत्व
एकादशी तिथि महीने में दो बार यानि साल में 24 बार पड़ती है। माह में पहली एकादशी कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में आती है। प्रत्येक एकादशी का अपना महत्व होता है। परंतु विजया एकादशी को विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक विजया एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान से करता है और भगवान विष्णु की पूजा करता है उसके जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य एवं खुशहाली आती है। आपके घर में या जीवन में जो भी नकारात्मकता होती है उसको समाप्त करने में सहायता मिलती है। इसके अलावा अगर किसी जातक की किसी से शत्रुता है तो उसकी समाप्ति के लिए विजया एकदाशी व्रत बहुत फायदेमंद हो सकता है। यह व्रत रखने वालों को शत्रुओं पर विजय पाने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्त करने और पापों का नाश करने के लिए एकादशी का व्रत रखा था। ऐसे में यदि कोई आपसे शत्रुता रखता है तो विजया एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, एकादशी के दिन चावल बनाना या खाना अच्छा नहीं माना जाता है। इसके पीछे एक धार्मिक कथा भी प्रचलित है। जिसके अनुसार मां शक्ति के क्रोध से भयभीत होकर महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था। जब उन्होंने अपना शरीर त्यागा तो वो धरती में समा गए। कहा जाता है कि जिस दिन उन्होंने अपने शरीर का त्याग किया उस दिन एकादशी तिथि थी। शरीर त्याग देने के बाद महर्षि मेधा ने चावल और जौ के रूप में धरती पर जन्म लिया था। तभी से चावल और जौ में उनका वास माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी एकादशी के दिन चावलों का सेवन करता है वो अगले जन्म में रेंगने वाले कीड़े के रूप में जन्म लेता है।
जो हरि भक्त विजया एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें व्रत के दिन एक ख़ास विधि का पालन करना चाहिए। यह विधि भगवान विष्णु को प्रसन्न करने में सबसे अधिक सहायक साबित हो सकती है।
सुबह सबसे पहले स्नान करके पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें।
ध्यान रहे कि व्रत से एक दिन पहले आप केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
एकादशी व्रत के दिन पूजा स्थल के ईशान कोण में एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान यानि सात तरह के अनाज रखें।
इस पर जल से भरा कलश स्थापित करें और उसे आम या अशोक के पत्तों से सजाएं।
पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
पीले पुष्प, ऋतुफल, तुलसी आदि अर्पित कर धूप-दीप व कपूर से श्री हरि की आरती करें।
भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय होती हैं। इसलिए इस दिन अपनी पूजा में तुलसी को जरूर शामिल करें।
व्रत के दिन शाम के समय भी एक बार फिर भगवान विष्णु की आरती करें।
इस अवसर पर भजन कीर्तन का बहुत महत्व होता है। इसलिए रात के समय भी आप जागरण कर सकते हैं और भगवान विष्णु को स्मरण कर सकते हैं।
व्रत के दूसरे दिन सुबह स्नान करने के बाद, ब्राह्मण को भोजन कराएं।
इसके बाद स्वयं भोजन करके अपने व्रत का पारण करें।
विजया एकादशी के शुभ दिन पर विष्णुजी के किसी भी मंदिर में जाकर दीपदान जरूर करें। इससे आपको व्रत का भरपूर लाभ मिल सकता है।
इस दिन सभी हरि भक्त किसी भी प्रकार के छल-कपट,लालच और द्वेष की भावनाओं से दूर रहें और श्री नारायण का ध्यान करें।
इसके साथ ही विष्णुजी के मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करें।
अगर आप विजया एकादशी व्रत से जुड़ी कोई व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप एस्ट्रोयोगी के astrologers से कॉल या चैट के माध्यम से बात कर सकते हैं।