कुंडली के बारे में पूर्व में हमने बताया है कि इसके आधार पर जातक का फलादेश किया जाता है। इसलिये इसे ज्योतिषाचार्य पत्रिका भी कहते हैं। अब बात आती है कुंडली के प्रकार की। कुंडली कितने प्रकार की होती है? कुंडली और जन्मकुंडली में क्या फर्क है?
ज्योतिषशास्त्र के विशाल सागर में अनेक नदियां प्रवाहित होती हैं। इन नदियों से अनेक नहरें भी निकलती हैं जिनके पानी से सूखे से पीड़ित जीवन रूप फसल लहलहाने लगती है। कुल मिलाकर ज्योतिषशास्त्र की विभिन्न शाखाएं हैं लेकिन कुंडली वैदिक ज्योतिष में अहम मानी जाती है।
वैदिक ज्योतिष में जब जातक का समय, स्थान, तिथि, वार निश्चित हो ऐसे में जातक की जन्मकुंडली बनती है। इसमें ग्रहों की दशा व दिशा का भाव स्थान का पूरा विवरण होता है। इसी के आधार पर जातक का फलादेश तैयार किया जाता है।
जन्मकुंडली भी मुख्य रूप से दो आधार पर बनाई जाती है। सबसे प्रचलित चंद्र कुंडली होती है। इसमें चंद्रमा को आधार बनाकर लग्न व राशि का निश्चय किया जाता है। फिर उसी के अनुसार द्वादश भावों में ग्रहों का गोचर देखकर फलादेश किया जाता है। इसे लग्न कुंडली भी कहा जाता है। किसी भी जातक का लग्न तभी निश्चित होता है जब उसके जन्म का सही सही विवरण ज्ञात हो। जातक के स्वभाव को जानने के लिये, उसके भविष्य का सटीक आकलन करने के लिये वैदिक ज्योतिष में चंद्र कुंडली को श्रेष्ठ माना जाता है। चंद्र कुंडली से जहां पूरे जीवन का फलादेश तैयार किया जा सकता है वहीं जातक की जन्मतिथि से उसकी वर्ष कुंडली तैयार की जा सकती है। एक महीने तक के फलादेश के लिये मास कुंडली तो दैनिक फलादेश के लिये दैनिक कुंडली भी तैयार की जा सकती है।
चंद्र कुंडली के साथ-साथ सूर्य कुंडली भी काफी प्रचलित है। अक्सर जो दैनिक राशिफल समाचार पत्र, वेब पोर्टल आदि के जरिये हमें पढ़ने को मिलता है वह अधिकांशत: सूर्य कुंडली पर आधारित होता है। जब जातक को जन्म का सही समय ज्ञात न हो लेकिन जन्मतिथि मालूम हो तो ऐसी अवस्था में भी सूर्य कुंडली के अनुसार फलादेश किया जा सकता है। पाश्चात्य ज्योतिष विद्या में सूर्य कुंडली काफी प्रचलित है। टेरो कार्ड रीडिंग में भी सूर्य राशि के आधार पर फलादेश होता है। इसमें जातक के जन्म के समय सूर्य की दशा के आधार पर कुंडली का निर्माण होता है।
चंद्र और सूर्य कुंडली के साथ-साथ नवमांश कुंडली, वर्ग कुंडली, गोचर कुंडली आदि से भी फलादेश किया जाता है। कृष्णमूर्ति पद्धति जिसे केपी पद्धति भी कहते हैं उसके अनुसार भी कुंडली बनाई जाती है। लाल किताब के अनुसार भी कुंडली बनती है। वर्तमान में प्रश्न कुंडली का प्रचलन भी बढ़ने लगा है। हालांकि प्रश्न कुंडली में सिर्फ वही फलादेश होता है जो प्रश्न पूछा जाता हो। इसके अलावा एक से दूसरे प्रश्न के लिये पुन: अन्य कुंडली तैयार करनी होती है।
कुल मिलाकर कुंडली, जन्मपत्री, पत्रिका, वैदिक ज्योतिष की अलग-अलग विधाओं में अलग-अलग रूप से तैयार की जाती हैं। ज्योतिषविदों के अनुसार लगभग 144 प्रकार की कुंडलियां बनती हैं। लेकिन इनमें से चंद्र या कहें लग्न कुंडली को ही सर्वोत्तम सटीक फलादेश देने वाली कुंडली माना गया है।