Kundli Ascendant

दशा

वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में दशा (dasha) का काफी महत्व है। ग्रहों की दशा जातक के स्वभाव व व्यक्तित्व के साथ जीवन के हर पहलु पर विशेष प्रभाव डालती है। ज्योतिष की माने तो नौं ग्रह समय समय पर अपने दशा का फल हमें देते हैं। जीवन में हमारे ऊपर ग्रहों के दशा का प्रभाव जरूर पड़ता है। आपने सुना होगा कि शनि की दशा चल रही है, राहु की दशा है तो परेशानी होगी। इस लेख में हम सभी दशा क्या है? व वैदिक ज्योतिष मुताबिक कुंडली में दशा का क्या महत्व है? कुंडली में दशा कितने प्रकार की होती है? कब कौन से दशा है कैसे जानें? लेख में हम इन बिंदुओं पर प्रकाश डालेंगे, जो आपके लिए काफी उपयोगी साबित होगी। तो आइये जानते हैं दशा के बारे में –

दशा क्या है?

वैदिक ज्योतिष में दशा शब्द का उपयोग ग्रहों की अवधि को दर्शाने के लिए किया जाता है। ग्रहों की अवधि इंगित करती है कि जब अच्छे या बुरे प्रभाव उनके स्थिति (राशि), घर (भाव), संयोजन (योग या राजा योग) या पहलुओं द्वारा उनके स्थान के अनुसार उत्पन्न होते हैं। कई प्रकार की दशा (dasha) प्रणालियाँ हैं, पराशर में बयालीस का उल्लेख है, लेकिन इनमें से केवल दो प्रचलन में हैं, जैसे कि "विशोत्तरी" और "अष्टोत्री"। प्रत्येक दशा को नौ ग्रहों में से एक द्वारा नियंत्रित किया जाता है, और प्रत्येक अवधि की गुणवत्ता, प्रभाव व परिणाम को उस ग्रह की स्थिति से निर्धारित किया जाता है।

कुंडली में दशा के प्रकार

वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी जातक की कुंडली में ग्रहों की दशा उसके जीवन की दिशा तय करने का काम करता है। इसी से आप दशा के महत्व को समझ सकते हैं। दशा हमारे ऊपर गहरा व गंभीर प्रभाव डालता है। ज्योतिष की माने तो दशा तीन प्रकार की होती है, महादशा, अंतरदशा व विशोत्तरी दशा। जो समय के हिसाब से हमारे कार्मों का परिणाम तय कर सकते हैं। इसके साथ ही ये हमारे व्यक्तित्व पर भी अपनी छाप छोड़ते हैं। तो आइये जानते हैं संक्षिप्त में इन दशाओं के बारे में –

वैदिक ज्योतिष में विंशोत्तरी महादशा प्रणाली

आजकल विंशोत्तरी महादशा प्रणाली ही गणना में है। इसके अनुसार प्रत्येक ग्रह की दशाओं की अवधि अलग-अलग होती है। क्रमानुसार -

जैसा कि विंशोत्तरी दशा 120 वर्ष के काल चक्र का अनुसरण करता है, ऐसे में जातक अपने जीवन में सभी ग्रहों के महादशा का अनुभव नहीं कर सकता है। वर्तमान में मानव जीवन का अवधी पूर्व के मुकाबले औसतन आधी रह गई है। जन्म के समय चन्द्रमा कितने अंश पर नक्षत्र में भ्रमण कर रहा था, पहला दशा आनुपातिक रूप से कम हो जाता है। किसी ग्रह के प्रत्येक महादशा में अन्य ग्रहों के उप मंडलीय दशा (dasha) होते हैं जिन्हें अंतरदशा कहते हैं। पहला अंतरदशा महादशा ग्रह का होता है, उसके बाद अन्य ग्रहों का क्रम से अतंरदशा चलता है। इसी सिद्धांत का अनुसरण करते हुए, दशा को आगे प्रत्यान्तरदशा में विभाजित किया जाता है और इसी तरह जब तक हम दैनिक या प्रति घंटा के आधार पर भी पहुंच सकते हैं। पूर्व में किए गए अध्ययनों के अनुसार, दशा, अन्तर्दशा, प्रारब्ध, आदि में शामिल ग्रहों को ध्यान में रखते हुए भविष्यवाणियों और घटनाओं का समय निर्धारित किया जाता है।

दशा प्रभावों के लिए कुंडली का विश्लेषण करते समय निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाता है –

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