पोंगल दक्षिण भारत में मनाए जाने वाले सबसे अधिक लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। पोंगल फसलों का त्योहार है, जो हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल को 'ताई पोंगल' के नाम से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति की तरह यह त्योहार भी सूर्य को समर्पित होता है। पोंगल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के कारण मनाया जाता है। सर्दियों की फसल पोंगल के समय ही काटी जाती है। पोंगल फसलों को बढ़ाने वाले सभी कारकों जैसे धूप, सूर्य, इंद्र देव और पशुओं के प्रति आभार प्रकट करने वाला दिन है। इस दिन इन सभी की पूजा करके अच्छी फसल के लिए धन्यवाद किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि पोंगल के दिन अराधना करने से शनि भगवान प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति के जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
पोंगल का मतलब होता है उबालना। हालांकि, इसका दूसरा अर्थ नया साल भी है। इस दिन सूर्य देव को अर्पित किए जानेवाले प्रसाद को पोंगल कहा जाता है, जिसे दूध में चावल, गुड़ और बांग्ला चना को उबालकर बनाया जाता है। इसके अलावा पोंगल पर अरवा चावल, सांभर, तोरम, नारियल, मूंग का दाल, अबयल जैसे पारंपरिक व्यंजन भी बनाए जाते हैं। इस पर्व पर मिठाई बनाकर पोंगल देवता को चढ़ाया जाता है। इसके बाद यह प्रसाद गाय को अर्पित करके परिवार में बांटी जाती हैं। दक्षिण भारत के लोग इस दिन अपने घरों के बाहर कोलम बनाते हैं। अपने परिवार, मित्रों और अन्य रिश्तेदारों के साथ पूजा-अर्चना करके एक दूसरे में मिठाई और उपहार बांटी जाती है। इस दिन कई जगहों पर मेला भी लगता है।
पोंगल त्योहार चार दिन तक चलता है। पहले दिन को भोगी पोंगल, दूसरे दिन को थाई पोंगल, तीसरे दिन को मट्टू पोंगल और आखिरी दिन को कान्नुम पोंगल मनाया जाता है। यह त्योहार प्रकृति को समर्पित होता है, जो आदि काल से फसलों की कटाई के बाद मनाया जा रहा है। कई जगहों पर यह त्योहार बिल्कुल उत्तर भारत में मनाये जाने वाले पर्वों जैसे- छठ, भैया दूज और गोवर्धन की पूजा की तरह मनाया जाता है।
चार अलग-अलग दिनों की पूजा
इतिहासकारों का मानना है कि ये त्योहार 2 हजार साल पुराना है। प्राचीनकाल में इसे ‘थाई निर्दल’ के रूप में मनाया जाता था। तमिल मान्यताओं में जिक्र है कि एक भूल के कारण भगवान शंकर ने अपने नंदी को पृथ्वी पर रहने का आदेश दिया था। यहां रहकर इंसानों के लिए अन्न पैदा करने का आदेश दिया था। नंदी तभी से पृथ्वी पर बैल बनकर कृषि कार्यों सहायता कर रहा है। पोंगल के दिन किसान अपने बैलों को अच्छे से नहला-धुलाकर, उनके सिंगों में तेल लगाते हैं। इसके साथ ही अपने बैलों को दूल्हें की तरह सजाकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन बैल के साथ गाय और बछड़ों की भी पूजा होती है। कई स्थानों पर इस दिन को केनू पोंगल के नाम से भी मनाते हैं। इस दिन बहनें अपने भाईयों की लंबी आयु और खुशहाली के लिए पूजा करती है। वहीं, भाई अपनी बहनों को उपहार भेंट करते हैं।
यह दिन हिंदू पौराणिक कथाओं में काफी महत्व वाला है। यह दिन काफी शुभ माना जाता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बैसाखी, पोंगल जैसे कई त्योहार फसलों को समर्पित हैं। पोंगल का मूल कृषि ही है। तमिलनाडु की मुख्य फसलें गन्ना और धान जनवरी तक पककर तैयार हो जाती हैं। अच्छी फसल देखकर किसान का दिल खुशी से झूम उठता है। इसलिए, ईश्वर और अच्छी फसल दिलाने वाले सभी कारकों के प्रति आभार जताने के लिए पोंगल मनाया जाता है। इसलिए, इसी दिन बैल की भी पूजा की जाती है। पोंगल को उत्तरायण पुण्यकलम के रूप में जाना जाता है।
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