ब्रह्मा सृष्टि के रचनाकार माने जाते हैं। त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं ब्रह्मा का नाम सबसे पहले आता है क्योंकि वे दुनिया के रचनाकार हैं लेकिन बावजूद इसके ब्रह्मा की कहीं भी कोई पूजा करता हुआ आपको दिखाई नहीं देगा। इसके पिछे की कहानी आखिर क्या है? जिन ब्रह्मा के चार सिर हैं जो चतुर्भुज हैं और प्रत्येक हाथ में एक वेद धारण कर संसार को ज्ञान दे रहे हैं आखिर क्यों उन्हें पूजा नहीं जाता? आइये जानते हैं क्या कहते हैं हमारे पुराण इस बारे में।
पौराणिक कहानी
ब्रह्मा की पूजा न होने के कई कारण बताये जाते हैं इस बारे में पुराणों में कुछ कहानियां भी मिलती हैं। एक कहानी में कहा गया है कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु जी में श्रेष्ठता को लेकर बहस हो गई और दोनों ही खुद को दूसरे से श्रेष्ठ बताने लगे। तभी देखते ही देखते उनके बीच एक शिवलिंग का निर्माण होता है और वह बढ़ता ही चला जाता है इतना की दोनों को इसके ओर छोर का पता तक नहीं चल रहा था। खुद की श्रेष्ठता का फैसला करने के लिये यह तय हुआ कि जो भी छोर तक पंहुच पायेगा वही श्रेष्ठ होगा। दोनों छोर ढूंढने निकल पड़े थक हार कर जब उन्हें छोर नहीं मिला तो विष्णु जी वापस उसी स्थान पर आ गये, दूसरे छोर पर गये ब्रह्मा को भी छोर नहीं मिला और वे भी वापस लौट आये लेकिन उन्होंने भगवान विष्णु के सामने झूठ बोलते हुए कहा कि वे छोर पर होकर आये हैं और बतौर प्रमाण केतकी का एक फूल हाज़िर कर दिया। यह सब देख रहे भगवान शिव को ब्रह्मा जी की इस हरकत पर गुस्सा आ गया और उन्होनें क्रोध में आकर ब्रह्मा का एक सर काट दिया। भगवान शिव ने ब्रह्मा को श्राप देते हुए कहा कि जिस केतकी के फूल को आप दिखा रहे हैं दुनिया में कोई भी उसे पूजा के लिये इस्तेमाल नहीं करेगा। इस कारण ब्रह्मा जी की भी कहीं पूजा नहीं की जाती।
एक अन्य कहानी और मिलती है इसके अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण के साथ-साथ उसमें ज्ञान के प्रसार व संचार के लिये सरस्वती को बनाया लेकिन सरस्वती को बनाने के बाद उसके रूप पर मोहित हो गये। सरस्वती को यह पसंद नहीं था। वह उनसे बचने के प्रयास करती रही लेकिन कामातुर ब्रह्मा ने उनका पिछा नहीं छोड़ा। इस पर सरस्वती ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि दुनिया का रचनाकार होने के बाद भी उनकी पूजा संसार में वर्जित रहेगी।
एक और प्रसंग पुराणों में मिलता है जिसे अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण आरंभ करने की सोची तो उन्होंने स्थान का चयन करने के लिये अपनी भुजा से एक कमल के फूल को धरती पर भेजा इस फूल की एक पंखुड़ी पुष्कर जो कि अब राजस्थान में है में आकर गिरी फिर उन्होंने पवित्र पानी की तीन बूंदे पृथ्वी पर छोड़ी एक बूंद पुष्कर में आकर गिरी। कहते हैं इसी स्थान को ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण के लिये चुना दस हजार वर्षों तक वे सृष्टि का निर्माण करते रहे उसके बाद जब सृष्टि के विकास के लिये यज्ञ करने लगे तो उन्हें अपनी पत्नी सावित्रि की आवश्यकता पड़ी। लेकिन यज्ञ के मुहूर्त तक सावित्रि जी नहीं पंहुच सकी और ब्रह्मा जी ने वहीं पर एक ग्वाले की कन्या से विवाह कर उसके साथ यज्ञ करना आरंभ कर दिया। इतने वहां पर सावित्रि जी आ पंहुची और अपने स्थान पर अन्य स्त्री को विराजमान देख वे ब्रह्मा जी पर क्रोधित हुई और उन्हें श्राप दे दिया कि सृष्टि के निर्माण के पश्चात भी कोई तुम्हारी पूजा नहीं करेगा न ही पृथ्वी पर कोई तुम्हें याद करेगा। देवता भयभीत हो गये उन्होंने भी माता सावित्रि से श्राप वापस लेने का अनुरोध किया लेकिन देवी का गुस्सा शांत नहीं था जब उनका क्रोध कुछ शांत हुआ तो उन्होंने सिर्फ पुष्कर में ही उनकी पूजा किये जाने की कही।
मान्यता है कि पुष्कर में उसी स्थान पर बने मंदिर को सृष्टि के रचनाकार जगतपिता ब्रह्मा के मंदिर के नाम से जाना जाता है। लेकिन यहां भी श्रद्धालु आते तो खूब हैं मेला भी लगता है लेकिन ब्रह्मा की पूजा का विधान नहीं है दूर से ही हाथ जोड़कर श्रद्धालु अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
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