बुद्ध पूर्णिमा 2024: बुद्ध पूर्णिमा, जिसे वेसाक या बुद्ध जयंती के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध कैलेंडर में सबसे पवित्र दिन है। यह बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान (निर्वाण) और मृत्यु (परिनिर्वाण) का प्रतीक है। बुद्ध पूर्णिमा, दुनिया भर के लाखों बौद्धों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। इस लेख में बुद्ध पूर्णिमा 2024, इसके महत्व औरअनुष्ठानों को जानेंगे।
बुद्ध पूर्णिमा आमतौर पर वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ता है। इस बार यह गौतम बुद्ध की 2586वाँ जयन्ती है। इस बार बुद्ध पूर्णिमा बृहस्पतिवार, 23 मई 2024 को है।
बुद्ध पूर्णिमा: मई 23, 2024, बृहस्पतिवार,
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 22 मई 2024 को शाम 06:47 बजे से,
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 23 मई 2024 को शाम 07:22 बजे तक।
बुद्ध पूर्णिमा का महत्व बुद्ध के जीवन की तीन घटनाओं में निहित है - उनका जन्म, ज्ञान प्राप्ति और मृत्यु - जो कथित तौर पर एक ही दिन घटित हुईं।
बौद्धों के लिये, बोध गया नामक स्थान गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। बोधगया के अतिरिक्त, कुशीनगर, लुम्बिनी तथा सारनाथ भी अन्य तीन महत्वपूर्ण तीर्थस्थल हैं। यह माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त किया तथा उन्होंने पहली बार सारनाथ में धर्म की शिक्षा दी।
यह माना जाता है कि, गौतम बुद्ध को इसी दिन आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था। बुद्ध पूर्णिमा को बुद्ध जयन्ती तथा वैसाक के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर भारत में भगवान विष्णु का 9वां अवतार बुद्ध को तथा 8वां अवतार भगवान कृष्ण को माना जाता है। हालाँकि, दक्षिण भारतीय मान्यता में बुद्ध को कभी भी विष्णु का अवतार नहीं माना गया है। दक्षिण भारत में, बलराम को भगवान विष्णु के 8वें अवतार तथा कृष्ण को 9वें अवतार के रूप में माना जाता है। बलराम को वैष्णव आन्दोलनों के बहुमत द्वारा विष्णु के अवतार के रूप में गिना जाता है। यहाँ तक कि, बौद्ध भी बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार नहीं मानते हैं।
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कहा जाता है कि गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई पू में कपिलवस्तु के लुम्बिनी में हुआ था। वर्तमान में यह स्थान नेपाल में है। बुद्ध ने महज 29 साल की उम्र में ही घर-गृहस्थी का त्याग कर दिया और दिव्य ज्ञान की खोज में निकल पड़े। बुद्ध ने दुनियाभर में लोगों के बीच अहिंसा, शांति, प्रेम, सद्भावना और त्याग का संदेश देकर समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।
बुद्ध पूर्णिमा पर, भक्त कई अनुष्ठानों और परंपराओं का पालन करते हैं, जैसे:
प्रार्थना और ध्यान: भक्त प्रार्थना और ध्यान में शामिल होते हैं, और बुद्ध की शिक्षाओं का जाप करते हैं।
प्रसाद: जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और भिक्षा दी जाती है।
दीप जलाना: आत्मज्ञान के प्रतीक के रूप में दीप जलाए जाते हैं।
भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है। उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की।
पंचशील सिद्धांत
प्राणिमात्र की हिंसा से विरत रहना
चोरी करने या जो दिया नहीं गया है, उसको लेने से विरत रहना
लैंगिक दुराचार या व्यभिचार से विरत रहना
असत्य बोलने से विरत रहना
मादक पदार्थों से विरत रहना
चार आर्य सत्य
संसार में दुख है
इस दुख का कारण है
इस दुख का कारण है मनुष्य की तृष्णा
तृष्णा को समाप्त करके दुख को दूर किया जा सकता है
आर्य अष्टांग मार्ग
गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए
सम्यक दृष्टि: चार आर्य सत्य में विश्वास करना
सम्यक संकल्प: मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना
सम्यक वाक: हानिकारक बातें और झूठ न बोलना
सम्यक कर्म: हानिकारक कर्म न करना
सम्यक जीविका: कोई भी हानिकारक व्यापार या कमाई न करना
सम्यक प्रयास: अपने आप को सुधारने की कोशिश करना
सम्यक स्मृति: स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना
सम्यक समाधि: निर्वाण प्राप्त करना
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कई बौद्ध बुद्ध पूर्णिमा पर उपवास रखते हैं। वे दोपहर से पहले केवल एक बार भोजन करते हैं और मांस और शराब से परहेज करते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा के पालन में ध्यान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसा माना जाता है कि यह मन को शुद्ध करता है और व्यक्ति को आत्मज्ञान के करीब लाता है।
बुद्ध की शिक्षाओं ने शांति, करुणा और अहिंसा के मूल्यों को बढ़ावा देते हुए लाखों लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला सकता है। बुद्ध पूर्णिमा बुद्ध की शिक्षाओं और उनके द्वारा संपूर्ण मानवता के लिए बनाए गए आत्मज्ञान के मार्ग की याद दिलाती है। बुद्ध पूर्णिमा दुनिया भर में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। श्रीलंका, नेपाल और थाईलैंड जैसे देशों में इसे सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है।