गणेश चतुर्थी की व्रत कथा

Wed, Sep 01, 2021
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गणेश चतुर्थी की व्रत कथा

हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैसे तो भाद्रपद मास को भगवान श्री कृष्ण की पूजा का महीना माना जाता है लेकिन भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के बाद तो यह मास विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा का माह होता है। मान्यता है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय श्री गणेश का अवतरण हुआ था। इसी कारण इस दिन को गणेश चतुर्थी के रुप में मनाया जाता है। गणेश जी का यह जन्मोत्सव चतुर्थी तिथि से लेकर दस दिनों तक चलता है। अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी की प्रतिमा विसर्जन के साथ यह उत्सव संपन्न होता है। महाराष्ट्र में यह त्यौहार विशेष रूप से लोकप्रिय होता है।

कब है गणेश चतुर्थी?

गणेश चतुर्थी भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है जो कि इस वर्ष 7 सितंबर को है। शुक्ल चतुर्थी से शुरु होने वाला गणेशोत्सव अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है जो कि 17 सितंबर को है। अत: विघ्नहर्ता गणपति बप्पा का यह उत्सव 7 सितंबर से लेकर 17 सितंबर तक चलेगा। गणेश मूर्ति विसर्जन के पश्चात अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशोत्सव का समापन होगा।

गणेश चतुर्थी की कथा

गणेश चतुर्थी पर कई कथाएं प्रचलित हैं जो उनके जन्म को दर्शाती हैं लेकिन थोड़े बहुत परिवर्तन के बाद सभी कथाओं का सार लगभग समान ही है। यहां दो प्रचलित कथाएं एस्ट्रोयोगी पाठकों के लिये प्रस्तुत हैं।

हुआं यूं कि माता पार्वती को स्नान करना था लेकिन तब उनकी सेवा और द्वार पर पहरे के लिये वहां कोई मौजूद नहीं था। माना जाता है कि तब उन्होंनें अपनी मैल से (कुछ कथाओं में उबटन से भी कहा गया है) एक बालक को उत्पन्न किया जिसका नाम उन्होंनें गणेश रखा। बालक गणेश को द्वारपाल बनाते हुए माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करुं तब तक किसी को भी अंदर मत आने देना। अब बालक गणेश देने लगे पहरा और माता करने लगी स्नान। जब भगवान शिव शंकर द्वार पर पंहुचे और अंदर प्रवेश करने लगे तो बालक गणेश ने उनका रास्ता रोक लिया। भगवान शिव ने बालक को बहुत समझाया लेकिन बालक माता के आदेश पर अडिग रहे। फिर शिवगण उन्हें रास्ते से हटाने का प्रयास करने लगे लेकिन माता के आशीर्वाद से बालक में इतनी शक्ति तो थी की सभी गण उनसे परास्त हो गये लेकिन भगवान शिव के क्रोध से कोई न बच सका फिर इस छोटे से बालक की क्या बिसात।

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क्रोधवश आव देखा न ताव भगवान शिव बालक गणेश के सिर को धड़ से अलग कर अंदर प्रवेश कर चुके थे। उधर माता पार्वती ने स्नानोपरांत देखा कि भगवान शिव आये हुए हैं तो वे जल्द ही दो थालियों में भोजन परोस लायी। भगवान शिव को आश्चर्य हुआ और दो थालियों का कारण पूछा तब उन्होंनें बालक गणेश के बारे में बताया। इस भगवान शिव को क्रोधवश हुई अपनी गलती का भान हुआ और उन्होंने पूरा वृतांत माता पार्वती को कह सुनाया। पुत्र की मृत्यु के बाद माता पर जो बितती है वही उनके साथ भी बीती पर भगवान तो भगवान कोई इंसान थोड़े हैं उन्होंने कहा मुझे मेरा गणेश जीवित चाहिये तो चाहिये। तब भगवान शिव ने हाथी के बच्चे के मस्तक को काटकर बच्चे के धड़ पर लगाकर उसमें प्राणों का संचार किया।

कुछ कहानियों में यह भी वर्णन है कि जब माता पार्वती को पुत्र की मृत्यु का भान हुआ तो वे शोकाकुल हो गई जिसके कारण पूरी प्रकृति में शक्ति का संचार थम गया। ब्रह्मांड का विनाश होने को आ गया। देवताओं की जान पर बन आयी सभी एकत्रित हुए और माता पार्वती को शांत करने के लिये बालक गणेश को जीवित करने को लेकर मंत्रणा होने लगी। तब भगवान ब्रह्मा ने उपाय सुझाया कि मृत्युलोक (पृथ्वी) पर जाओ और जो भी पहला माता विहीन नवजात शीशु दिखाई दे उसका सिर ले आओ। तब शिव गण शिशु की तलाश करते हुए पृथ्वी पर पंहुचे बहुत प्रयास के बाद भी कोई माता विहीन शिशु मनुष्यों में उन्हें नहीं मिला तो उन्होनें एक माता से विहीन नवजात हाथी के बच्चे को देखा उन्होंनें जरा भी देर न की और धड़ से शीश को अलग कर ले गये। फिर भगवान श्री हरि विष्णु ने बालक में जीवन का संचार किया। मान्यता है कि यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को घटी थी।

गणेश चतुर्थी व्रत की कथा

गणेश जन्म के साथ ही चतुर्थी के व्रत के महत्व को दर्शाने वाली भी एक कथा है जो कि इस प्रकार है। होता यूं है कि माता पार्वती ने भगवान शिव से चौपड़ खेलने का प्रस्ताव किया। अब इस प्रस्ताव को भगवान शिव ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया लेकिन संकट की स्थिति यह थी कि वहां पर कोई हार-जीत का निर्णय करने वाला नहीं था। भगवान शिव ने जब यह शंका प्रकट की तो माता पार्वती ने तुरंत अपनी शक्ति से वहीं पर घास के तिनकों से एक बालक का सृजन किया और उसे निर्णायक बना दिया। तीन बार खेल हुआ और तीनों बार ही माता पार्वती ने बाजी मारी लेकिन जब निर्णायक से पूछा गया तो उसने भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। इससे माता पार्वती बहुत क्रोधित हुई और उन्होंनें बालक को एक पैर से अपाहिज होने एवं वहीं कीचड़ में दुख सहने का शाप दे दिया। बालक ने बड़े भोलेपन और विनम्रता से कहा कि माता मुझे इसका ज्ञान नहीं था मुझसे अज्ञानतावश यह भूल हुई, मेरी भूल माफ करें और मुझे इस नरक के जीवन से मुक्त होने का रास्ता दिखाएं।

बालक की याचना से माता पार्वती का मातृत्व जाग उठा उन्होंनें कहा कि जब यहां नाग कन्याएं गणेश पूजा के लिये आयेंगी तो वे ही तुम्हें मुक्ति का मार्ग भी सुझाएंगी। ठीक एक साल बाद वहां पर नाग कन्याएं गणेश पूजन के लिये आयीं। उन नाग कन्याओं ने बालक को श्री गणेश के व्रत की विधि बतायी। इसके पश्चात बालक ने 12 दिनों तक भगवान श्री गणेश का व्रत किया तो गणेश जी ने प्रसन्न होकर उसे ठीक कर दिया जिसके बाद बालक शिवधाम पंहुच गया। जब भगवान शिव ने वहां पंहुचने का माध्यम पूछा तो बालक ने भगवान गणेश के व्रत की महिमा कही। उन दिनों भगवान शिव माता पार्वती में भी अनबन चल रही थी। मान्यता है कि भगवान शिव ने भी गणेश जी का विधिवत व्रत किया जिसके बाद माता पार्वती स्वयं उनके पास चली आयीं। माता पार्वती ने आश्चर्यचकित होकर भोलेनाथ से इसका कारण पूछा तो भोलेनाथ ने सारा वृतांत माता पार्वती को कह सुनाया। माता पार्वती को पुत्र कार्तिकेय की याद आ रही थी तो उन्होंनें भी गणेश का व्रत किया जिसके फलस्वरुप कार्तिकेय भी दौड़े चले आये। कार्तिकेय से फिर व्रत की महिमा विश्वामित्र तक पंहुची उन्होंनें ब्रह्मऋषि बनने के लिये व्रत रखा। तत्पश्चात गणेश जी के व्रत की महिमा समस्त लोकों में लोकप्रिय हो गयी।

कुल मिलाकर उपरोक्त कथाओं का निष्कर्ष यही निकलता है कि भगवान श्री गणेश विघ्नहर्ता हैं और उनका विधिवत व्रत पालन किया जाये तो व्रती की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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