भगवान गणेश की महिमा तो सभी जानते हैं, यह भी आप सब जानते ही हैं किसी भी मांगलिक कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश को ही पूजा जाता है और यह भी भली भांति आप जानते होंगे की भगवान गणेश बुद्धि और विद्या के अधिष्ठाता देवता हैं। तार्किक विश्लेषण करने में उनका कोई सानी नहीं हैं। भगवान गणेश लंबोधर हैं वे शरीर से विशालकाय हैं लेकिन उनकी सवारी एक मूषक है क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है। क्यों बनाया एक मूषक को भगवान श्री गणेश ने अपनी सवारी। आइये जानते हैं क्या धारणाएं, मान्यताएं व पौराणिक कहानियां हैं इस संदर्भ में।
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पुराण शास्त्रों के अध्ययनकर्ता मानते हैं कि जिस प्रकार भगवान श्री गणेश तर्क-वितर्क करने में माहिर हैं, लाजवाब हैं जिस प्रकार वह हर चीज की तह में जाकर उसका विश्लेषण कर निष्कर्ष पर पंहुचते हैं उसी तरह मूषक भी हर चीज को कांट-छांट कर रख देता है। मूषक गजब के फुर्तीले भी होते हैं इसलिये संभव है कि भगवान गणेश ने मूषक के इन्हीं गुणों को देखते हुए अपनी सवारी बनाया हो।
एक बार की बात है कि गजमुखासुर नाम का एक दैत्य हुआ करता। अपने बल से उसने देवताओं की नाक में दम कर दिया। वह हर समय उन्हें परेशान करता रहता। उसे यह वरदान प्राप्त था कि वह किसी शस्त्र से पराजित नहीं हो सकता ना ही उसकी शस्त्र के प्रहार से मृत्यु हो सकती है। देवताओं को उसे हराने की कोई युक्ति नहीं सूझी तो उन्होंनें भगवान गणेश की शरण ली। गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने के लिये भगवान गणेश ने उससे युद्ध किया। अब शस्त्र से वह हार नहीं सकता था तो भगवान गणेश ने अपने एक दांत को तोड़कर उससे उस पर प्रहार करना चाहा। अब गजमुखासुर को अपनी मृत्यु दिखाई देने लगी। वह चूहा बनकर भागने लगा लेकिन भगवान गणेश ने उसे मूषक रूप में ही अपना वाहन बना लिया।
इसी संदर्भ में एक कथा और मिलती है जिसके अनुसार एक बहुत ही बलशाली मूषक ने ऋषि पराशर के आश्रम में भयंकर उत्पात मचा रखा था। उसने ऋषि के अन्न भंडार को नष्ट कर दिया, मिट्टी के पात्रों (बर्तनों) को तबाह कर दिया। यहां तक कि सभी वस्त्र, ग्रंथ आदि भी उसने कुतर डाले। महर्षि ने भगवान गणेश से प्रार्थना की, तब भगवान गणेश ने अपना पाश फेंका जो पाताल से मूषक घसीटा हुआ भगवान गणेश के सामने ले आया। अब मूषक भगवान गणेश की आराधना करते हुए उनसे अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। भगवान गणेश ने कहा तुमने ऋषि को बहुत परेशान किया है इसकी सजा तुम्हें मिलनी चाहिये लेकिन चूंकि तुम मेरी शरण में हो इसलिये तुम्हारी रक्षा भी मैं करूंगा मांगो क्या मांगते हो। इससे मूषक का अंहकार फिर से जाग गया और बोला मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिये बल्कि आप मुझसे कुछ भी मांग सकते हो। भगवान गणेश उसका अंहकार देखकर थोड़ा हंसे और बोले चलो ठीक है फिर तुम मेरे वाहन बन जाओ। मूषक ने तथास्तु कह दिया फिर क्या था अपनी विशालकाय देह के साथ भगवान गणेश उस पर बैठ गये। मूषक उनके भार को सह न सका उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ और श्री गणेश से प्रार्थना की कि वे उसकी क्षमता के अनुसार ही अपने शरीर का भार बना लें तब उसके अंहकार को चूर होता देख भगवान गणेश ने उसके अनुसार ही अपना वजन कम किया।
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इन्हीं कथाओं से मिलती जुलती इस संदर्भ की एक कथा में मूषक को पूर्व जन्म में क्रोंच नामक गंधर्व माना गया है। इसके अनुसार एक बार देवराज इंद्र की सभा में क्रोंच का पैर गलती से मुनि वामदेव को लग गया। मुनि ने समझा यह क्रोंच की शरारत है उन्होंनें क्रोध में आकर उसे चूहा बनने के शाप दे दिया। अब यह चूहा भी विशालकाय बन गया और जो कुछ भी इसके रास्ते में आता वह नष्ट कर देता। एक बार वह ऋषि पराशर के आश्रम तक पंहुच गया जहां उसने आश्रम में रखे सारे सामान को नष्ट कर दिया। आगे की कथा इससे पहली वाली कथा के समान है।
एक और संदर्भ में आता है कि सुमेरु या महामेरु पर्वत पर ऋषि सौभरि का बहुत ही सुंदर आश्रम था। उनकी पत्नी मनोमयी थी जो बहुत ही रुपवान थी। एक दिन की बात है कि ऋषि वन में लकड़ियां लेने गये हुए थे तो क्रोंच नामक गंधर्व वहां आ धमका। मनोमयी को देखकर वह बहुत व्याकुल हो उठा और उसने कामवश ऋषि पत्नी का हाथ पकड़ लिया। मनोमयी उससे दया की भीख मांगने लगी लेकिन उसने एक न सुनी तभी वहां ऋषि सौभरि पंहुच गये। उन्होंने क्रोंच को शाप दिया कि तुमने चोर की तरह मेरी पत्नी का हाथ पकड़ा है तुम चूहा बनकर तमाम उम्र चोरी करके ही अपनी उदरपूर्ति करोगे। इससे वह घबरा गया और अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हुआ और ऋषि से क्षमा याचना करने लगा। ऋषि ने कहा कि मेरा श्राप व्यर्थ नहीं जा सकता लेकिन द्वापर युग में जब महर्षि पराशर के यहां भगवान गणेश गजमुख पुत्र के रुप में प्रकट होंगें तब तू उनका वाहन बन सकेगा जिससे देवगणों में भी तुम्हारा पुन: सम्मान होने लगेगा।
अब यह तो सभी जानते हैं कि मूषक भगवान गणेश की सवारी है। इस लेख के जरिये यह भी जान चुकें हैं कि मूषक श्री गणेश के वाहन कैसे बनें लेकिन पुराणों में हर युग के अनुसार गणेश जी के अलग अलग वाहन बताये गये हैं। कथाओं के जरिये बताया गया है सतयुग में भगवान गणेश सिंह पर सवार होते हैं तो त्रेता में मयूर उनका वाहन होता है। वहीं कलयुग में वे घोड़े पर सवार रहते हैं। लेकिन आम जन में मूषक ही भगवान गणेश के वाहन के रुप में प्रचलित हैं।
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