
Ganesh ji ke 108 naam: क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान गणेश को आखिर इतने सारे नामों से क्यों पुकारा जाता है? कोई उन्हें श्री गणेश कहता है, तो कोई गजानन, लंबोदर या विनायक। असल में इनके हजारों नाम बताए गए हैं, लेकिन हर नाम में कोई न कोई खास रहस्य और महत्त्व छिपा है। परंतु हर भक्त के लिए इन सभी नामों का पाठ करना आसान नहीं होता, इसलिए परंपरा में 108 नामों का विशेष पाठ बताया गया है।
कहते हैं कि जब श्रद्धा और विश्वास के साथ इन 108 नामों का जाप किया जाता है, तो विघ्नहर्ता गणेश तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं और साधक को यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव और ऐश्वर्य का आशीर्वाद देते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, यह पाठ जीवन में सौभाग्य, सफलता, धन, धान्य और बुद्धि के साथ विवेक और ज्ञान भी प्रदान करता है। गणेश जी के इन नामों का स्मरण व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा भर देता है और हर कठिनाई को आसान बना देता है।
तो सवाल यह है कि क्या आपने कभी इन 108 गजानन नामों का पाठ किया है? अगर नहीं, तो अब समय है कि आप भी इस दिव्य साधना को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं और गणपति बप्पा का आशीर्वाद पाएं।
बालगणपति (Baalganapati) – बालक रूप में पूज्य गणेश।
भालचन्द्र (Bhalchandra) – मस्तक पर चंद्र धारण करने वाले।
बुद्धिनाथ (Buddhinath) – बुद्धि के स्वामी।
धूम्रवर्ण (Dhumravarna) – धुएँ के समान वर्ण वाले।
एकाक्षर (Ekakshar) – “ॐ” रूपी एक अक्षर वाले।
एकदंत (Ekdant) – एक दाँत वाले।
गजकर्ण (Gajkarn) – हाथी जैसे कान वाले।
गजानन (Gajaanan) – हाथी का मुख रखने वाले।
गजनान (Gajnaan) – हाथियों के स्वामी।
गजवक्र (Gajvakra) – हाथी जैसी वक्र सूँड वाले।
गजवक्त्र (Gajvaktra) – हाथी जैसे मुख वाले।
गणाध्यक्ष (Ganaadhyaksha) – गणों के अध्यक्ष।
गणपति (Ganapati) – सब गणों के स्वामी।
गौरीसुत (Gaurisut) – माता पार्वती के पुत्र।
लंबकर्ण (Lambakarn) – लंबे कानों वाले।
लंबोदर (Lambodar) – बड़े उदर (पेट) वाले।
महाबल (Mahaabal) – अत्यधिक बलशाली।
महागणपति (Mahaaganapati) – महान गणपति।
महेश्वर (Maheshwar) – महान स्वामी।
मंगलमूर्ति (Mangalmurti) – मंगलदायक स्वरूप।
मूषकवाहन (Mushakvaahan) – मूषक (चूहा) पर आरूढ़।
निदीश्वरम (Nidishwaram) – धन और निधियों के स्वामी।
प्रथमेश्वर (Prathameshwar) – प्रथम पूज्य देव।
शूपकर्ण (Shoopkarna) – पंखे जैसे कान वाले।
शुभम (Shubham) – कल्याणकारी स्वरूप।
सिद्धिदाता (Siddhidata) – सिद्धियाँ प्रदान करने वाले।
सिद्धिविनायक (Siddhivinaayak) – सिद्धियाँ देने वाले विनायक।
सुरेश्वरम (Sureshvaram) – देवताओं के स्वामी।
वक्रतुंड (Vakratund) – टेढ़ी सूँड वाले।
अखूरथ (Akhurath) – मूषक वाहन वाले।
अलंपत (Alampat) – जगत के स्वामी।
अमित (Amit) – असीम और अनंत।
अनंतचिदरुपम (Anantchidrupam) – अनंत चेतना के स्वरूप।
अवनीश (Avanish) – पृथ्वी के स्वामी।
अविघ्न (Avighn) – विघ्नों को दूर करने वाले।
भीम (Bheem) – अत्यंत शक्तिशाली।
भूपति (Bhupati) – भूमंडल के स्वामी।
भुवनपति (Bhuvanpati) – तीनों लोकों के स्वामी।
बुद्धिप्रिय (Buddhipriya) – बुद्धि को प्रिय रखने वाले।
बुद्धिविधाता (Buddhividhata) – बुद्धि प्रदान करने वाले।
चतुर्भुज (Chaturbhuj) – चार भुजाओं वाले।
देवदेव (Devdev) – देवताओं के देवता।
देवांतकनाशकारी (Devantaknaashkari) – देवों के शत्रुओं का नाश करने वाले।
देवव्रत (Devavrat) – देवताओं की आज्ञा मानने वाले।
देवेन्द्राशिक (Devendrashik) – देवराज इन्द्र के प्रिय।
धार्मिक (Dharmik) – धर्म का पालन करने वाले।
दूर्जा (Doorja) – असीम शक्ति से संपन्न।
द्वैमातुर (Dwemaatur) – दो माताओं से उत्पन्न।
एकदंष्ट्र (Ekdanshtra) – एक दंत वाले।
ईशानपुत्र (Ishaanputra) – भगवान शिव के पुत्र।
गदाधर (Gadaadhar) – गदा धारण करने वाले।
गणाध्यक्षिण (Ganaadhyakshina) – गणों का संचालन करने वाले।
गुणिन (Gunin) – गुणों से परिपूर्ण।
हरिद्र (Haridra) – हल्दी के समान पीतवर्ण।
हेरंब (Heramb) – अबलों के रक्षक।
कपिल (Kapil) – कपिल रंग के।
कवीश (Kaveesh) – कवियों के स्वामी।
कीर्ति (Kirti) – यश प्रदान करने वाले।
कृपाकर (Kripakar) – करुणा बरसाने वाले।
कृष्णपिंगाक्ष (Krishnapingaksh) – श्याम और ताम्र नेत्र वाले।
क्षेमंकरी (Kshemankari) – कल्याण करने वाले।
क्षिप्रा (Kshipra) – शीघ्र प्रसन्न होने वाले।
मनोमय (Manomaya) – मन के अधिपति।
मृत्युंजय (Mrityunjay) – मृत्यु को जीतने वाले।
मूढ़ाकरम (Mudhakaram) – अज्ञान का नाश करने वाले।
मुक्तिदायी (Muktidaayi) – मोक्ष देने वाले।
नादप्रतिष्ठित (Naadpratishthit) – नाद (ध्वनि) में स्थित।
नमस्तेतु (Namastetu) – सभी के वंदनीय।
नंदन (Nandan) – प्रिय पुत्र।
पाषिण (Pashin) – पाश (फंदा) धारण करने वाले।
पीतांबर (Pitaamber) – पीत वस्त्र धारण करने वाले।
प्रमोद (Pramod) – प्रसन्नचित्त।
पुरुष (Purush) – सर्वोच्च पुरुष।
रक्त (Rakta) – रक्तवर्ण।
रुद्रप्रिय (Rudrapriya) – भगवान रुद्र (शिव) के प्रिय।
सर्वदेवात्मन (Sarvadevatmana) – सभी देवताओं का आत्मस्वरूप।
सर्वसिद्धांत (Sarvasiddhanta) – सभी सिद्धांतों के ज्ञाता।
सर्वात्मन (Sarvaatmana) – समस्त आत्माओं में विद्यमान।
शांभवी (Shambhavi) – मां पार्वती के पुत्र।
शशिवर्णम (Shashivarnam) – चंद्र के समान वर्ण वाले।
शुभगुणकानन (Shubhagunakaanan) – शुभ गुणों का उद्यान।
श्वेता (Shweta) – श्वेतवर्ण।
सिद्धिप्रिय (Siddhipriya) – सिद्धियों को प्रिय रखने वाले।
स्कंदपूर्वज (Skandapurvaj) – कार्तिकेय से बड़े भाई।
सुमुख (Sumukha) – सुंदर मुख वाले।
स्वरुप (Swarup) – अपने सच्चे रूप में स्थित।
तरुण (Tarun) – सदैव युवा।
उद्दण्ड (Uddanda) – अजेय और बलवान।
उमापुत्र (Umaputra) – माता उमा (पार्वती) के पुत्र।
वरगणपति (Varganapati) – श्रेष्ठ गणपति।
वरप्रद (Varprada) – वरदान देने वाले।
वरदविनायक (Varadvinaayak) – वरदान देने वाले विनायक।
वीरगणपति (Veerganapati) – वीर स्वरूप गणपति।
विद्यावारिधि (Vidyavaaridhi) – विद्या का महासागर।
विघ्नहर (Vighnahar) – विघ्न हरने वाले।
विघ्नहर्ता (Vighnahartta) – सभी बाधाओं को दूर करने वाले।
विघ्नविनाशन (Vighnavinashan) – विघ्नों का संहार करने वाले।
विघ्नराज (Vighnaraaj) – विघ्नों के अधिपति।
विघ्नराजेन्द्र (Vighnaraajendra) – विघ्नों के राजा।
विघ्नविनाशाय (Vighnavinashay) – विघ्नों का नाश करने वाले।
विघ्नेश्वर (Vighneshwar) – विघ्नों के स्वामी।
विकट (Vikat) – विकट रूपधारी।
विनायक (Vinayak) – विघ्नों का नेता।
विश्वमुख (Vshvamukh) – विश्व का मुख स्वरूप।
यज्ञकाय (Yagyakaay) – यज्ञ स्वरूप।
यशस्कर (Yashaskar) – यश प्रदान करने वाले।
यशस्विन (Yashaswin) – सदैव यशस्वी।
योगाधिप (Yogadhi) – योग के अधिपति।
गणेश जी के नामों में सिर्फ उपासना का भाव नहीं है, बल्कि हर नाम उनके किसी विशेष गुण, स्वरूप या शक्ति का प्रतीक है। उदाहरण के लिए –
गजानन – हाथी के समान मुख वाले, जो बुद्धि और शक्ति का प्रतीक हैं।
वक्रतुंड – टेढ़ी सूंड वाले, जो हर बाधा को सरल बना देते हैं।
लंबोदर – विशाल उदर वाले, जो धैर्य और समर्पण का प्रतीक हैं।
इन नामों का जाप करने से मन शांत होता है और व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन मिलता है।
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संख्या 108 हिंदू धर्म, योग और ज्योतिष में अत्यंत पवित्र मानी जाती है।
108 उपनिषद बताए गए हैं।
सूर्य से पृथ्वी की दूरी सूर्य के व्यास की लगभग 108 गुना है।
जपमाला में 108 मनके होते हैं।
इसीलिए भगवान गणेश के 108 नामों को स्मरण करना विशेष फलदायी माना जाता है।
गणेश चतुर्थी पर यह जाप अत्यंत फलदायी होता है।
किसी नए कार्य की शुरुआत से पहले।
पढ़ाई, नौकरी, व्यापार या विवाह संबंधी अड़चनें दूर करने के लिए।
मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा पाने के लिए।
श्री गणेश के 108 नामों का जाप करना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना है जो जीवन को दिशा देती है। यह साधना व्यक्ति को यश, कीर्ति, पराक्रम, वैभव, ऐश्वर्य और बुद्धि से संपन्न बनाती है।
अगर आप भी अपने जीवन में सफलता, शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो प्रतिदिन या विशेष अवसरों पर गणेश जी के 108 नामों का स्मरण ज़रूर करें। विघ्नहर्ता गणपति बप्पा न केवल आपकी परेशानियाँ दूर करेंगे, बल्कि जीवन को नई ऊर्जा और सकारात्मकता से भर देंगे।