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हिंदू धर्म में सर्वप्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश हैं जिन्हें जैन और बौद्ध धर्म में भी पूजा जाता है। भगवान गणेश (lord ganesha) भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के पुत्र हैं और उनके भाई कार्तिकेय हैं। गणेश जी अपने हाथी के सिर और मानव शरीर के साथ अत्यधिक पहचानने योग्य हैं। उनका सिर (आत्मा) और मानव शरीर (माया) का प्रतिनिधित्व करता हैं। वह लेखकों, यात्रियों, छात्रों, वाणिज्य, और नई परियोजनाओं (जिसके लिए वह किसी के मार्ग से बाधाओं को हटाता है) के संरक्षक हैं। वहीं भारतवर्ष में गणेश चुतर्थी के रूप में भगवान गणपति की 10 दिनों तक पूजा-अर्चना की जाती है।
वैसे तो गणपति के जन्म की कई कथाएं प्रचलित हैं लेकिन सबसे प्रचलित कथा पार्वती और शिव जी की है। एक बार देवी पार्वती स्नाने के लिए जा रही थी तो उन्होंने अपने उबटन से एक मानव रूपी बालक तैयार किया और उसमें प्राण डालकर उसे स्नानागार के बाहर खड़ा कर दिया। माता पार्वती ने आदेश दिया कि जब तक वह स्नान करके बाहर नहीं आ जाती हैं तब तक किसी को भी अंदर आने की अनुमति नहीं देना।
वहीं जब बालक मुख्य द्वार की रखवाली कर रहे थे तब भगवान शिव अपनी तपस्या करके हिमालय वापस लौट आए। बालक ने उन्हें माता पार्वती से मिलने के लिए अंदर नहीं जाने दिया तो शिव जी ने गुस्से में आकर अपने त्रिशूल से उसका मस्तक छिन्न कर दिया और स्नानागार में प्रवेश कर गए। जब माता पार्वती बाहर आईं और उन्होने अपने पुत्र को मृत देखा तो वह रोने लगीं और शिवजी से उसे वापस से जीवन देने की बात कही।
पार्वती जी के कहने पर शिव जी ने प्राण वापस लाने के लिए हां तो कर दी लेकिन बालक का मुख वापस लाना असंभव था। ऐसे में बालक के लिए नए सिर की खोज के लिए शिव ने नंदी को पुकारा और आदेश दिया कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सो रही हो उस बच्चे का सिर ले आना। नंदी जब पृथ्वीलोक पर गए तो उन्हें सबसे पहले एक हाथी का बच्चा दिखा और वह उसका सिर ले आए।
भगवान भोलेनाथ ने बालक को जीवनदान दिया। हालांकि पार्वती जी अपने बेटे को देखकर काफी प्रसन्न थी लेकिन उन्हें डर था कि सभी लोग उनके पुत्र का मजाक उड़ाएंगे। उनके पुत्र को देवताओं के बीच में जगह नहीं मिलेगी। शिव जी जानते थे कि पार्वती जी परेशान हैं। इसलिए उन्होने सभी देवताओं का आह्वान किया और पुत्र गणेश को आशीर्वाद देने के लिए कहा। भगवान शिव ने बालक को गणेश या गणपति का नाम दिया। गणपति का अर्थ है प्राणियों या गणों के सभी वर्गों में उच्च। वहीं देवताओं ने आशीर्वाद दिया कि किसी भी अनुष्ठान की शुरुआत गणेश जी की पूजा से ही होगी उनकी पूजा के बिना कोई भी कार्य अधूरा ही रहेगा।
पौराणिक कथानुसार भगवान गणेश का विवाह दो जुड़वां बहनों रिद्धि (समृद्धि की देवी) और सिद्धि (बुद्धि की देवी) से हुआ था, जिन्होंने उनके दो पुत्रों शुभ (शुभ) और लाभ (लाभ) को जन्म दिया था। लेकिन दक्षिण भारत में, यह माना जाता है कि गणेश एक ब्रह्मचारी हैं।
गणपति का स्वरूप : प्रथमपूज्य गणपति के स्वरूप की बात करें तो उनका मुख गज के समान है यह बड़ा सिर बड़ी सोच का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं उनके बड़े कान गौर से सदैव सुनने की ओर इशारा करते हैं। गणपति के चेहरे पर छोटी-छोटी आंखें पैनी नजर और एकाग्रता की इंगित करती हैं।
गणेश जी के चार हाथ हैं जिसमें से एक में कुल्हाड़ी है जो सभी बंधनों से आजाद होने की ओर इशारा करता है। दूसरे में रस्सी है जो आपको मुश्किल लक्ष्यों को पाने और अपनों को करीब लाने को दर्शाता है। वहीं मोदक मेहनत का फल है और चौथे हाथ से वह अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
पौराणिक कथानुसार, महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनकर उनसे लिखने का आग्रह किया था। तब गणपति ने शर्त रखी थी कि वह बिना रुकावट के लिखेंगे लेकिन कहा जाता है कि लिखते- लिखते बीच में मोर का पंख टूट गया था तब गजानन ने अपने एक हाथीदांत को तोड़कर उससे लिखना शुरू कर दिया था। तब से गजानन को हम एकदंत भी कहते हैं। इसके अलावा गणपति को दूर्वा चढ़ाई जाती है और तुलसी अर्पित करना वर्जित है। माना जाता है एक बार तुलसी देवी ने गणेश जी से शादी करने के लिए कहा तो गणपति ने उनसे कहा कि वह हमेशा ब्रह्मचारी ही रहेंगे। यह सुनकर तुलसी क्रोधित हो गईं और उनकी जल्द शादी होने की बात कही यह सुनकर गणेश जी भी क्रोधित हो उठे और उन्होंने तुलसी को हमेशा के लिए एक पौधा होने का श्राप दिया।
वैसे, यह कहानी पश्चिम बंगाल में मानी जाती है और यह कहानी कहती है कि एक बार देवी दुर्गा भोजन कर रही थीं। गणेश ने अपनी मां से इस स्थिति के बारे में पूछा। इस पर, देवी दुर्गा ने उत्तर दिया; "क्या होगा यदि आपकी पत्नी आपकी शादी के बाद खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं देती है?" तब, गणेश जी एक केले के पेड़ को काटने गए और अपनी माँ को यह कहते हुए दे दिया; "यह आपकी बहू है"। इसलिए, आज भी दुर्गा पूजा के दौरान, एक साड़ी में लिपटे हुए केले के पेड़ और सिंदूर से सजी भगवान गणेश को उनकी पत्नी के दाईं ओर रखा जाता है।
अन्य धर्मों में उनके पदचिह्न
भगवान गणेश की पूजा न केवल हिंदुओं बल्कि बौद्धों द्वारा भी की जाती है। बौद्ध धर्म में, गणेश को विनायक के रूप में जाना जाता है और तिब्बत, चीन और जापान जैसे देशों में उनकी पूजा की जाती है। उनकी बुद्धि, ज्ञान और विचारधारा हर जगह से भक्तों द्वारा पूजनीय हैं।
गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए बुधवार के दिन गिनकर 5 दूर्वा और हरी घास अर्पित करें।
गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए गीला चावल अर्पित करें और उनके माथे पर लाल सिंदूर अवश्य लगाएं।
गणपति को प्रसाद के रूप में मोदक का भोग लगाएं।
प्रत्येक बुधवार को गणेश गायत्री मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का रोजाना 108 बार जप करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है।
“ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।”
यदि आप भगवान गणपति की कृपा पाना चाहते हैं तो किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्य से अपनी राशिनुसार पूजा विधि जानकर पूजा-अर्चन करें।