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हिंदू धर्म में त्रिदेव के रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को पूजा जाता है। उन्हीं में से चतुरानन यानि ब्रह्मा जी (lord brahma) को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। उन्होंने धऱती और उस पर उगने वाली हर चीज को बनाया है। उनकी दिव्य संरक्षिका देवी सरस्वती उन्हें ब्रह्मांड को चलाने के लिए ज्ञान प्रदान करती हैं जो सृष्टि की प्रक्रिया के लिए आवश्यक है।
भगवान ब्रह्मा को मनु के पिता के रूप में जाना जाता है जिनसे सभी प्राणी अस्तित्व में आए। भगवान ब्रह्मा को अक्सर प्रजापति के रूप में माना जाता है, जो एक वैदिक परमात्मा है। उन्हें भाषण और ध्वनि का भगवान भी माना जाता है। हालांकि उनकी पूजा हर जगह नहीं की जाती है, वह हिंदू धर्म और पौराणिक कथाओं में एक प्रमुख दिव्य व्यक्ति है।
प्रचलित मान्यता है कि ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती नहीं थी बल्कि सरस्वती उनकी पुत्री थी। लेकिन हम आपको बता दें कि ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती का विवाह श्रीहरि से हुआ था जबकि चतुरानन की पत्नी सरस्वती अपरा विद्या की देवी थीं जिनकी माता का नाम महालक्ष्मी और भाई का नाम विष्णु था। माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा की 5 पत्नियां(सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती) थी। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के 17 पुत्र और शतरूपा नाम की पुत्री थी।
भगवान ब्रम्हा की उत्पत्ति:
भगवान ब्रम्हा को भगवान सदाशिव और मां अम्बिका का पुत्र कहा जाता है। एक और कथा है जिसमें कहा गया है कि भगवान विष्णु की नाभि से भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई थी। भगवान ब्रम्हा ने बाद में मानव जाति के पिता बनने के लिए प्रजापति के रूप में मानस पुत्रों का निर्माण किया। यहां तक कि धर्म और अधर्म, क्रोध, लोभ भी भगवान ब्रम्हा की ही देन हैं।
भगवान ब्रह्मा और उसके प्रतीक का स्वरूप:
भगवान ब्रह्मा हमेशा लाल कपड़े पहने होते हैं और उन्हें चार सिर, चार चेहरे और चार भुजाओं वाले देवता के रूप में चित्रित किया जाता है। जैसा कि वह सृष्टि के निर्माता हैं, वह अपने किसी भी हाथ में हथियार नहीं रखते हैं। उन्हें चित्रों में अक्सर सफेद दाढ़ी में देखा गया है, जो उनके अस्तित्व की प्रकृति का प्रतीक है। ऊपरी दाहिने हाथ में एक माला है जिसके माध्यम से सृष्टि का निर्माण हुआ और ऊपरी बाएं हाथ में एक पुस्तक है जो ज्ञान का प्रतीक है, निचले बाएँ में कमंडल या जल-पात्र है, जो प्रकृति औऱ जीवन के सार को दर्शाता है। उनके चार मुख जो चार वेदों को दर्शाते हैं - ऋग्वेद, यजुर्व, साम और अथर्व का निरंतर जप करते हैं, वे सभी पवित्र ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं। आपने चित्र में देखा होगा कि ब्रह्मा जी कमल के पुष्प पर विराजमान रहते हैं, जो पवित्रता और शुभता का प्रतिनिधित्व करता है।
भगवान ब्रह्मा की पूजा:
एक बात और है कि इस संसार में भगवान विष्णु और शिव जी के तो आपको कई मंदिर मिल जाएंगे लेकिन दुनिया में ब्रह्मा जी के केवल 3 ही मंदिर हैं, जिसमें एक भारत के राजस्थान राज्य के पुष्कर में स्थित हैं। पौराणिक कथानुसार, एक बार ब्रह्मा जी ने यज्ञ की जगह चुनने के लिए कमल को धरती पर भेजा। जिस स्थान पर कमल गिरा वजह जगह राजस्थान का पुष्कर था। इसके बाद ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए पु्ष्कर पहुंचे उनकी पत्नी सावित्री उनके साथ नहीं गई। यज्ञ में सभी देवी-देवता समय पर पहुंच गए लेकिन सावित्री समय पर नहीं पहुंची।
जब ब्रह्मा जी को लगा कि सावित्री की वजह से मुहूर्त निकल जाएगा तो उन्होंने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह करके अपना यज्ञ संपन्न किया। जब सावित्री यज्ञ समारोह में पहुंची और ब्रह्मा के बगल में किसी अन्य स्त्री को देखा तो उन्होंने चतुरानन को श्राप दिया कि तुम्हारी कभी भी पृथ्वीलोक में पूजा नहीं होगी। लेकिन जब सावित्री को पूरी आपबीती पता चली तो उन्होंने कहा कि केवल पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा की जाएगी।
कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा भी काफी दयालु और उदार स्वभाव के देवता है। भक्तों की जरा सी भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं। ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्म गायत्री मंत्र का जाप करने काफी उत्तम होता है। इस मंत्र का जाप करने से यश और धन की प्राप्ति होती है। साथ ही यह मंत्र आपको दुनियादारी से दूर रखता है और मोक्ष की तरफ आपका मार्ग प्रशस्त करता है।
“ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥”
“ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥”
“ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥”