गंगा मैया देती हैं जीवात्मा को मोक्ष

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गंगा मैया देती हैं जीवात्मा को मोक्ष

भारत एक ऐसा देश है जहां प्रकृति की किसी न किसी रुप में पूजा होती है। प्राकृतिक स्त्रोतों को यहां देवी देवता की संज्ञा ही नहीं दी जाती बल्कि पौराणिक कथाओं के जरिये उनकी पूजा करने को न्यायसंगत भी बनाया गया है। हर देवी-देवता का अपना पौराणिक इतिहास है। ऐसा ही इतिहास मोक्षदायिनी, पापमोचिनी मां गंगा का भी है। गंगा हिंदूओं धर्म के मानने वालों के लिये आस्था का एक मुख्य केंद्र तो है साथ ही गंगा नदी आर्थिक रुप से भी भारतवर्ष की जीवनरेखा भी मानी जाती है। आइये जानते हैं गंगा नदी की कहानी कैसे धरती पर अवतरित हुई गंगा मैया।

 


गंगा का जन्म

गंगा के जन्म को लेकर मुख्यत:  दो बातें प्रचलित हैं। जिसमें एक के अनुसार मान्यता है कि वामन रुप में राक्षस बलि से जब भगवान विष्णु ने मुक्ति दिलाई तो उसके बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु का चरण धोया और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया जिससे गंगा पैदा हुई और ब्रह्मा के पास रहने लगी। दूसरे के अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि ब्रह्मदेव एवं भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में भर लिया। बाद में इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वह ब्रह्मा के संरक्षण में स्वर्ग में रहने लगी।


गंगा अवतरण की पौराणिक कथा

वैसे तो गंगा की महिमा अनेक पौराणिक ग्रंथों में बतायी गयी है। लेकिन गंगा को धरती पर लाने का श्रेय भगीरथ को दिया जाता है। जिसकी प्रचलित कथा कुछ इस प्रकार है।

भगवान श्री राम के पूर्वज और ईक्ष्वाकु वंश के राजा सगर की दो पत्नियां थी लेकिन लंबे अर्से तक संतान का सुख नहीं मिला तो राजा सगर पत्नियों सहित तपस्या के लिये हिमालय चले गये। वहां ब्रह्मा के पुत्र भृगु ऋषि के आशीर्वाद से रानी सुमति ने एक तुंबी जैसे आकार के गर्भ पिंड को जन्म दिया तो केशनी ने एक पुत्र को। राजा सगर निराश होकर उस तुंबी को फोड़ने ही वाले थे की आकाशवाणी हुई जिसमें कहा कि इसमें 60 हजार बीज हैं जिन्हें घी से भरे मटके में अलग-अलग रखने पर कालांतर में 60 हजार पुत्रों की प्राप्ति होगी। जब राजा सगर के 60 हजार पुत्र हुए तो  तो दूसरी को एक पुत्र हुआ। ऋषि ने कहा कि वंश को बढाने वाला केवल एक पुत्र होगा। जब राजा सगर के पुत्र जवान और शक्तिशाली हो गये। अब राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करवाया और घोड़े की सुरक्षा में अपने 60 हजार पुत्र तैनात कर दिये लेकिन इंद्र ने बड़ी चालाकी से घोड़ा चुराकर बहुत दूर कपिल मुनि की गुफा में उसे बांध दिया मुनि हजारों सालों से तपस्या में लीन थे। अब घोड़े को ढूंढते-ढूंडते राजा सगर के पुत्र मुनि की गुफा तक आ पंहुचे वहां घोड़े को बंधा देखकर वे मुनि को चोर समझ बैठे और उन्हें अपमानित करने लगे। जैसे ही मुनि की आंख खुली तो उनकी क्रोधाग्नि से सगर से सभी पुत्र भस्म हो गये। जब वे वापस नहीं लौटे तो सगर को काफी चिंता हुई। कुछ दिन बाद उन्हें सूचना मिली की आखिरी बार उन्हें एक गुफा में अंदर जाते हुए देखा था वहां से लौटकर नहीं आये। इसके बाद राजा सगर ने अपने पौत्र अशुंमान को उनकी तलाश में भेजा। अंशुमान सीधे उस गुफा में पहुंचे और राख की ढेरियां देखकर सारा माजरा समझ गये उन्होंने कपिल मुनि से विनती की कोई उपाय बताएं कि इस अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए मेरे चाचाओं को मुक्ति कैसे मिल सकती है। मुनी ने उन्हें बताया कि गंगा जी धरती पर आयें तो उनके जल ही ये मुक्ति को पा सकते हैं। फिर क्या था अंशुमान ने गंगा को धरती पर लाने का संकल्प किया अंशुमान ने कपिल मुनी के बताये अनुसार ब्रह्मा को खुश करने की बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली इसके बाद इनके बेटे दिलीप ने भी कठोर तप किया लेकिन ब्रह्मा का दिल नहीं पसीजा। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। अब भगीरथ भी कठोर तप करने लगे। देवताओं को चिंता सताने लगी कि कहीं गंगा स्वर्ग से भू लोक पर न चली जाएं उन्होंने भगीरथ के तप को भंग करने की कोशिश भी की लेकिन नाकाम रहे। अंतत: ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और गंगा को धरती पर भेजने के लिये राजी हो गये।  उधर गंगा स्वर्ग लोक छोड़ना नहीं चाहती थी उन्होंने कहा कि मेरा वेग धरती सह नहीं पाएगी। तब ब्रह्मा ने भगीरथ को भगावन शिव को प्रसन्न कर उन्हें गंगा को धारण करने की कही। भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की। भोलेनाथ भगीरथ के तप से प्रसन्न हुए और गंगा को धारण करने को राजी हो गए। गंगा पूरे आवेग से क्रोधित होकर आकाश से उतरी लेकिन शिव की जटा में उलझ कर रह गई। भगीरथ ने फिर से भगवान शिव की स्तुति की और उन्हें मनाया तब तक गंगा का अंहकार भी चूर-चूर हो गया था। फिर भगवान शिव ने गंगा के वेग को नियंत्रित कर धरती पर छोड़ा हिमालय से होते हुए भगीरथ के पिछे-पिछे गंगा चल पड़ी। जिस कारण इसका राम भगीरथी हुआ। रास्ते में जाह्नु ऋषि तपस्या में लीन थे उनकी तपस्या भंग हो गई तो क्रोध में आकर उन्होंने गंगा के पानी को पी लिया। भगीरथ ने फिर उन्हें मनाया तो ऋषि ने गंगा को अपने कान से निकाल दिया इस कारण वह जाह्नवी भी कही जाती हैं। कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा फिर सागर में मिल गई।

शांतनु से हुआ था गंगा का विवाह

महाभारत काल की भी एक कथा का संबंध गंगा से बताया जाता है माना जाता है कि एक समय भरतवंश के प्रतापी राजा शांतनु को आखेट खेलते समय गंगा के तट पर गंगा देवी दिखाई दी जिसके सामने शांतनु ने विवाह का प्रस्ताव रखा। गंगा ने शांतनु के प्रस्ताव को सशर्त स्वीकार कर लिया। मुख्य शर्त यही थी कि शांतनु कभी उनसे किसी भी काम में कोई दखलंदाजी नहीं करेंगें और ना ही कोई सवाल करेंगें। जिस दिन शर्त टूटी उसी दिन विवाह भी समाप्त हो जायेगा। राजा शांतनु ने शर्त स्वीकार कर विवाह कर लिया साल दर साल गंगा और शांतनु की सात संतान पैदा हुई लेकिन गंगा हर बार जन्म के तुरंत बाद शीशु को जल में प्रवाहित कर देती। जब आठवीं संतान को गंगा ने जन्म दिया और उसे प्रवाहित करने को चलने लगी तो शांतनु से रहा नहीं गया और उन्होंने गंगा से सवाल कर लिया। इस पर विवाह की शर्त भंग हो गई और गंगा वापस स्वर्ग को गमन कर गई लेकिन जाते जाते गंगा ने शांतनु को वचन दिया कि वे स्वयं बच्चे का पालन-पोषण कर बड़ा होने के बाद इसे लौटा देंगी। कालांतर में उनकी यह संतान गंगापुत्र भीष्म पितामह के नाम से विख्यात हुई।


गंगा धार्मिक महत्व

गंगा के धार्मिक महत्व को इसी से देखा जा सकता है कि लगभग हर हिंदू परिवार में गंगाजल अवश्य मिलेगा। जीवन का प्रत्येक संस्कार गंगाजल से पूरा होता है यहां तक कि पंचामृत में गंगाजल भी एक अमृत के रुप में शामिल होता है। महापापी व्यक्ति भी गंगा के जल में स्नान कर पवित्र हो जाता है। जीवन के अंतिम क्षणों में गंगाजल की दो बूंद मुंह में डल जाएं तो माना जाता है व्यक्ति बिना किसी पीड़ा के प्राणत्याग कर मुक्ति को पाता है। हरिद्वार, काशी से लेकर प्रयाग तक भारतवर्ष के अधिकतर धार्मिक स्थलों का निर्माण गंगा के किनारे हुआ है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल को तीर्थराज की संज्ञा दी जाती है। काशी के घाटों पर होने वाली गंगा मैया की आरती का नजारा अलग ही आनंद देने वाला होता है।

तीज-त्यौहार हों या पवित्र माह में लगने वाले मेले, कुंभ, महाकुंभ से लेकर सिंहस्थ तक, ग्रहणों से लेकर पूर्णिमा, अमावस्या और एकादशियों तक गंगा स्नान के बिना पूजा, व्रत या उपवास का फल अपेक्षाकृत नहीं मिलता। गंगा मैया तक पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिये उनकी अस्थियों का विसर्जन, तर्पण तक गंगा मैया में किया जाता है। यहां तक कुछ लोग तो अपने जीवन के काल के अंतिम दिन तक गंगा मैया की गोद में बिताना चाहते हैं और यहीं अपने प्राण त्यागने की इच्छा रखते हैं। माना जाता है कि गंगा किनारे जिसका अंतिम संस्कार होता है वह धन्य हो जाता है उसका जीवन सफल हो जाता है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि धार्मिक दृष्टि से गंगा का स्थान हिंदूओं में सर्वोपरि माना जाता है।


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