पुराणों में कहा गया है कि सृष्टि की रचना करने से पहले, ब्रह्मा जी को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मन्त्र की प्राप्ति हुई थी। इस सृष्टि को बनाने की शक्ति ब्रह्मा जी को इसी मन्त्र से प्राप्त हुई। बाद में हमारे हिन्दू शास्त्र यजुर्वेद और ऋग्वेद में इस मन्त्र महत्त्व साफ़-साफ़ लिखा गया है।
गायत्री मन्त्र-
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र से सभी सनातनी लोग भली-भांती परिचित होते हैं। बचपन में स्कूल के दिनों से ही इस मन्त्र का जाप शुरू करवा दिया जाता है और जीवन के अंतिम पड़ाव ‘बुढ़ापे’ तक यह जप चलता रहता है। हिन्दू धर्म का सबसे सरल मन्त्र यही है और वेदों में इस मन्त्र को ईश्वर की प्राप्ति का मन्त्र बताया गया है।
यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से गायत्री मन्त्र का निर्माण हुआ है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है, इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसके उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।
गायत्री मन्त्र का शाब्दिक अर्थ-
ॐ - सर्वरक्षक परमात्मा
भू: - प्राणों से प्यारा
भुव: - दुख विनाशक
स्व: - सुखस्वरूप है
तत् -उस
सवितु: - उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक
वरेण्य - वरने योग्य
भुर्ग: - शुद्ध विज्ञान स्वरूप का
देवस्य - देव के
धीमहि - हम ध्यान करें
धियो - बुद्धियों को
य: - जो
न: - हमारी
प्रचोदयात - शुभ कार्यों में प्रेरित करें।
भावार्थ : उस सर्वरक्षक प्राणों से प्यारे, दु:खनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें तथा वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
गायत्री मन्त्र का लाभ-
गायत्री मंत्र के निरंतर जाप से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। यदि घर का कोई सदस्य बीमार है या घर में सुख-शांति नहीं आ रही है तो प्रतिदिन घंटा-आधा घंटा इस मन्त्र का जाप किया जाए। बीमार व्यक्ति को दवा देने से पहले, (व्यक्ति के पास बैठकर एवं दवा को हाथ में लेकर) इस मन्त्र के जाप से लाभ प्राप्त हो सकता है। दैवीय कृपा प्राप्त करने और धन प्राप्त करने के लिए भी यह मन्त्र शुभ बताया गया है।
अगर आप विद्यार्थी हैं तो इस मन्त्र के जाप से आपकी स्मरण शक्ति भी बढ़ सकती है। ब्रह्मचार्य की रक्षा के लिए भी गायत्री मन्त्र उपयोगी बताया गया है। अब क्योकि इस मन्त्र की शुरुआत ही ॐ से होती है तो मस्तिष्क के शान्ति के लिए यह मन्त्र अच्छा रहता है। आप बेशक किसी भी ईष्ट देव की पूजा करते हैं, पूजा के प्रारंभ में आप गायत्री मन्त्र का जाप कर सकते हैं। यह शुरूआती बीज मन्त्र भी माना जाता है।
ध्यान रखें कि गायत्री मंत्र का जाप हमेशा रुद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए।
गायत्री मन्त्र को कैसे जपें-
गायत्री उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है। हर स्थिति में यह लाभदायी है। शौच-स्नान से निवृत्त होकर प्रातः काल (ब्रह्म महूर्त या सूर्य उदय से पहले) नियत स्थान, नियत समय पर, सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिए। ‘रुद्राक्ष’ की तीन माला सुबह और तीन ही शाम को गायत्री मंत्र के जाप से लाभ प्राप्त होता है।
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