छतीसगढ़ के रायपुर जिला मुख्यालय पर पहाड़ ताज के समान है। इसी पहाड़ के नीचे कंकालीन देवी लोगों की मन्नतें पूरी करती हैं। यहां स्थित कंकालीन देवी की शक्तिपीठ रियासत काल से ही लोगों की आस्था का केंद्र है। इस पीठ को देवी की 51 शक्तिपीठों में माना जाता है। मान्यता है कि यहां पर देवी सती का कंगन गिरा था। नवरात्र के दिनों में तो यहां दूर-दूर से लोग देवी का दर्शन करने आते हैं।
पौराणिक कथानुसार कनखल (हरिद्वार) में राजा प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया लेकिन अपने जमाता व देवी सती के पति भगवान शंकर को निमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती ने इसका कारण पूछा तो भगवान शंकर के बारे में भला बुरा कहा जिससे आहत होकर देवी सती ने यज्ञ अग्निकुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये। सती के वियोग में भगवान शंकर व्यथित हो गए। उनके तांडव से तीनों लोकों में प्रलय के आसार हो गए। भयभीत देवताओं ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को खंड-खंड करते गये। जहां-जहां देवी के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ बनीं।
कहा जाता है कि सोमवंश के पतन के बाद चौदहवीं सदी में कंड्रा वंश के शासक पद्मदेव के कार्यकाल में यहां मंदिर की स्थापना की गई।
कंकालीन मंदिर के वर्तमान पुजारी अभिषेक सोनी के अनुसार उनके पूर्वज स्वर्णकार सुखदेव प्रसाद को राजा ने आभूषण बनाने के लिए यहां बुलाया था। कुछ दिनों के पश्चात मां कंकालीन देवी ने उन्हें स्वपन में कहा कि वे जोगी गुफा पहाड़ के नीचे चट्टानों से ढ़की हैं। सुखदेव ने राजा को यह बात बताई जिस पर शुरुआत में तो राजा को विश्वास नहीं हुआ। लेकिन स्वपन फिर से आया तो राजा ने शर्त रखी कि यदि कुछ नहीं मिला तो उन्हें 100 कोड़े लगाए जांएगें। इसके बाद हुई खुदाई में मां कंकालीन और भैरों नाथ की मूर्तियां निकली जिनकी राजा ने विधिवत स्थापना करवाई। आज भी सुखदेव के परिवार की पांचवी पीढ़ी के लोग ही जो कि मूल रुप से उत्तर प्रदेश लखनऊ के पास स्थित कड़ा मानिकपुर से हैं मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं।
ऐसा कहा जाता है, कि पहले इस मंदिर में महिलाएं प्रवेश करते ही बेहोश हो जाती थी या उनके साथ कोई अनहोनी हो जाती। इसलिए यहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। 1990-91 में माता की विशेष पूजा-अर्चना के बाद महिलाओं का प्रवेश कराया गया।
मंदिर परिसर में चट्टान पर कुछ लिखा हुआ है। यह लिपि आज भी एक रहस्य बनी हुई है। किसी के द्वारा इस लिपि को पढ़े जाने के प्रमाण नहीं हैं। हालांकि यह मान्यता है कि जो इस लिपि को पढ़ लेगा उसे खजाने की प्राप्ति होगी। साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस लिपि में 84 लाख जीव-जंतुओं के भोजन के खर्च का ब्यौरा लिखा हुआ है।
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