भारत में कई ऐसे मंदिर एवं धार्मिक स्थल हैं जो आज भी रहस्यमयी बने हुए हैं। वैज्ञानिक से लेकर पुरातत्व ज्ञाता भी इन मंदिरों के रहस्योद्घाटन नहीं कर पाएं हैं। ऐसा ही एक मंदिर, जिसे देवी की 51 शक्तिपीठों में विशेष माना जाता है। जो तंत्र सिद्धी के लिए सर्वोच्च स्थान माना जाता है। जहां अंबूवाची पर्व के दौरान देश विदेश के तांत्रिकों का जमावड़ा लगता है। आपको बताते हैं असम के गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर ( Kamakhya Mandir ) के बारे में।
पौराणिक कथा
पंडितजी का कहना है कि पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु भगवान ने देवी सती के वियोग में तांडव कर रहे शिव को शांत करने के लिए देवी सती के शरीर को खंड-खंड कर भू लोक पर बिखरा दिया। इक्यावन जगहों पर देवी के शरीर के अंग, वस्त्र व आभूषण गिरे, जहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आयीं। यहां पर देवी की महामुद्रा (योनि-कुंड) स्थित है।
किंवदंती
कहा जाता है कि घमंडी असुरराज नरकासुर ने मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी बनाने का दुस्साहस किया। मां भगवती की माया से विष्णु भगवान ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरुप का राजा बना। भगदत्त के वंशालोप के कारण राज्य अलग-अलग टुकड़ों में बंट गया व सांमत राज करने लगे।
एक अन्य कथा के अनुसार
ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू पर स्थित मध्यांचल पर्वत पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत कर दिया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने कामदेव को भस्म कर दिया। माना जाता है कि नीलांचल पर्वत पर मां भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) पर ही कामदेव को पुन: जीवनदान मिला इसलिए इस क्षेत्र को कामरुप भी कहा जाता है।
मंदिर से जुड़ा रहस्य
माना जाता है कि साल में एक बार अंबूवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती है, और मां भगवती की गर्भगृह में महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से लगातार 3 दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। इसलिए मंदरि के कपाट तीन दिनों तक बंद रहते हैं। इसके बाद देवी की विशेष पूजा की जाती है। अंबूवाची पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पहले गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढाए जाते हैं, जो बाद में रक्तवर्ण हो जाते हैं। मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार 51 शक्तिपीठों में सबसे विशेष मानी जाने वाली इस पीठ में त्रिपुरासुंदरी, मतांगी और कमला की प्रतिमाएं स्थापित हैं। दूसरी ओर 7 अन्य रुपों की प्रतिमा अलग-अलग मंदिरों में स्थापित की गई हैं। यहां भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है।
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