कंस वध – कब और कैसे हुआ कंस का अंत

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कंस वध – कब और कैसे हुआ कंस का अंत

मामा का रिश्ता देखता जाये तो बहुत ही सम्मान जनक रिश्ता होता है। मामा शब्द की ध्वनि में मां शब्द की ध्वनि का दो बार उच्चारण होता है। लेकिन हिंदूओं के पौराणिक इतिहास में दो मामा ऐसे हुए हैं जिन्होंनें इस रिश्ते को हमेशा के लिये उपहास व क्रूरता का पात्र बना दिया। एक मामा शकुनि तो एक मामा कंस और दोनों ही हुए भगवान श्री विष्णु के कृष्णावतार के समय। शकुनि जहां कौरवों के मामा थे तो कंस स्वयं भगवान श्री कृष्ण के। आइये जानते हैं क्यों इतने क्रूर हुए कंस और कैसे किया श्री कृष्ण ने कंस का वध।


कंस वध की पौराणिक कथा


कंस का जन्म

कंस का वध यह तो सभी जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने किया था लेकिन कंस पैदा कैसे हुए थे यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं। एक समय की बात है कि मथुरा नगरी में यदुवंशी राजा उग्रसेन राज किया करते थे। उनका विवाह विदर्भ के राजा सत्यकेतु की पुत्री पद्मावती के साथ हुआ। महाराज उग्रसेन विवाह के बाद अपनी पत्नी पद्मावती से बहुत प्रेम करने लगे यहां कि उन्हें खाना भी उनके बिना खाना अच्छा नहीं लगता। समय गुजरता रहा कि एक दिन महाराज सत्यकेतु को अपनी पुत्री की याद आने लगी। उसने दूत को उसे लाने के लिये भेज दिया। दूत ने जाकर महाराज उग्रसेन से कुशल क्षेम पूछी और महाराज सत्यकेतु की बेचैनी से अवगत करवाया। दिल तो नहीं माना पर उग्रसेन ने भी सोचा कि काफी दिन हो गये हैं पद्मावती को भी उसे भी पिता की याद तो आती ही है। अब पद्मावती दूत के साथ विदर्भ चली जाती है। वहां जाने के बाद क्या होता है कि एक दिन वह अपनी सहेलियों के साथ घूमते हुए एक पर्वत पर जा पंहुची, पर्वत की तलहटी में बहुत सुंदर वन था और उतना ही सुंदर तालाब बना वहां बना हुआ था। उस तालाब का नाम सर्वतोभद्रा था। सारी सखियां अठखेलियां करती हुई तालाब में नहाने लगीं। इसी समय आकाश मार्ग से गोभिल नाम दैत्य का वहां से गुजरना हो गया और उसकी नजर पद्मावती पर पड़ गई। वह उस पर मोहित हो गया और उसके बारे में जानकारी हासिल करके, महाराज उग्रसेन का रूप धारण कर पर्वत पर जाकर अपनी माया से मधुर आवाज़ में गीत गाने लगा। पद्मावती को स्वर उग्रसेन जैसा लगा और वह पर्वत की ओर दौड़ पड़ी। उग्रसेन को वहां देखकर वह हैरान हो गई और उसकी खुशी का ठिकाना न रहा उसने पूछा आप यहां कैसे आये तो, उग्रसेन बने गोभिल ने कहा कि उसके बिना उसका मन नहीं लग रहा था इसलिये चला आया। दोनों एक दूसरे में खोने लगे कि पद्मावती की उसके शरीर पर पड़ी उसने एक निशान देखा जो उग्रसेन के शरीर पर नहीं था। तब पद्मावति को गोभिल की सच्चाई मालूम हुई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दैत्य गोभिल ने उससे कहा कि हमारे इस मिलन से जो संतान होगी उसकी क्रूरता से पूरी दुनिया कांपेगी। समय बीता पद्मावती उग्रसेन के पास भी पंहुची, उग्रसेन ने इस सबके बाद भी पद्मावती से उतना ही प्रेम किया। दस साल तक गर्भ धारण करने के बाद पद्मावती ने संतान को जन्म दिया। जिसका नाम था कंस।


जब आकाशवाणी से कंस हुआ आतंकित

कंस की एक बहन भी थी, नाम था देवकी दोनों भाई बहनों में बहुत अधिक प्रेम था। देवकी को खरोंच भी लगती तो दर्द कंस को होता था। समय के साथ देवकी विवाह योग्य भी हुई। महाराज वासुदेव के साथ खुशी-खुशी देवकी का विवाह भी संपन्न हो गया लेकिन जब देवकी को विदा किया जा रहा तो कंस के लिये आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान ही उसका वध करेगी। इस पर कंस घबरा गया और जिस बहन से वह बहुत प्रेम करता था उसी की हत्या करने का विचार बनाया।


श्री कृष्ण का जन्म

देवकी की हत्या करने का विचार बना चुके कंस को वासुदेव ने सुझाव दिया कि वह अपनी हर संतान को जन्म लेते ही उसके हवाले कर देंगे इसलिये वह देवकी की हत्या न करे। कंस को वासुदेव का यह सुझाव उचित लगा और वासुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया गया। अब संतान के जन्म लेते ही उसे कंस को सौंप दिया जाता और कंस उसका वध कर देते। जब सातवीं संतान की बारी आई तो उसके जन्म से कुछ समय पूर्व ही भगवान विष्णु ने अपनी माया से देवकी के गर्भ को वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। रोहिणी के गर्भ से जिस संतान ने जन्म लिया वह थे बलराम। धीरे धीरे वह समय भी आया जब आठवीं संतान के रूप में श्री कृष्ण ने जन्म लिया। कंस के सारे सैनिक गहरी निद्रा में चले गये, वासुदेव की बेड़ियां खुल गई, जेलों के द्वार अपने आप खुलते चले गये। जैसे तैसे वासुदेव अपने श्री हरि भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री कृष्ण को मित्र नंद के यहां पंहुचाने में कामयाब हो गये।


कंस का वध

अब आठवीं संतान के बाद फिर आकाशवाणी हुई और कंस को पता चला कि उसे मारने वाला तो पैदा हो चुका है। उसने तमाम नवजात शिशुओं की हत्या के आदेश दे दिये। बालक कृष्ण की हत्या करने के भी काफी प्रयास किये लेकिन सफलता नहीं मिली। कृष्ण और बलराम बड़े होते गये। कृष्ण अपनी लीलाएं दिखाते रहे और वो दिन भी आ गया जब कंस ने श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा आने का निमंत्रण देकर अपनी मौत को बुलावा दिया। कंस ने कृष्ण और बलराम के लिये जाल तो बुना था लेकिन भगवान कब किसी के जाल में फंसे हैं। पागल हाथी को उनके पिछे छोड़ा तो उसका सूंड काटकर उसे मौत के घाट उतार दिया गया। इसके बाद मल्ल युद्ध के लिये उन्हें ललकारा गया तो एक-एक कर कंस के सारे महारथी मौत के घाट उतरते गये। अब श्री कृष्ण ने कहा कि कंस मामा तुम्हारे पाप का घड़ा भर चुका है। इसके पश्चात श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से कंस का सर धड़ से अलग कर दिया।

इस प्रकार कंस का वध कर भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी वासियों को एक अत्याचारी से मुक्ति दिलाई। जिस दिन दुनिया कंस के आतंक से मुक्त हुई वह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन माना जाता है।

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