वैदिक ज्योतिष में शुक्र को प्रेम का कारक ग्रह माना जाता है। कहा जाता है कि शुक्र ही किसी जातक के जीवन में प्रेम रस भरने का कार्य करते हैं। शुक्र ग्रह के स्वामित्व वाले जातक अन्य जातक से प्रेम के मामले में अलग होते हैं। इस लेख में शुक्र का लव सीक्रेट दिया जा रहा है। यानि की शुक्र जातक की कुंडली में किस भाव में विराजे हैं उसका जातक के प्रेम संबंध पर क्या प्रभाव होगा। लेख में शुक्र की स्थिति के अनुसार जातक के प्रेम प्रसंग पर इनका कैसा असर होगा इस बारे में जानकारी दी जा रही है। इसके साथ ही शुक्र का किन राशियों पर स्वामित्व है इस तथ्य को भी हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
शुक्र ग्रह को दो राशियों का अधिपति बनाया है। ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह वृषभ व तुला राशि के स्वामी हैं। इन राशियों के जातकों पर इनका गहरा प्रभाव होता है। जिसके चलते जातक सुंदर व आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होते हैं। इन्हें कला व प्रकृति से प्रेम होता है। प्रेम के मामले में अधिक रूचि रखते हैं। यह बात तो हो गई इस राशि के जातकों व शुक्र की प्रभाव की। अब बात करते हैं शुक्र की स्थिति के अनुसार इनकी प्रभाव की।
ज्योतिष के अनुसार प्रेम का कारक शुक्र ग्रह जातक की कुंडली में जिस भाव में उपस्थित होगा उसके अनुसार ही फल देगा। ज्योतिष के मुताबिक शुक्र यदि किसी जातक की पत्रिका में पहले भाव यानि की मेष राशि के घर में बैठा है तो प्रेम का कारक उस जातक के प्रेम प्रसंग में उत्साह और ऊर्जा का अधिक संचरण करता है। तो वहीं शुक्र यदि कुंडली में दूसरे भाव वृष राशि में बैठा है तो यह जातक के जीवन में प्रेम के साथ ही धन का भी आगमन करवाता है। जिससे जातक को प्रेम के साथ ही धन सुख की प्राप्ति होती है। लेकिन शुक्र अगर पत्रिका के तीसरे घर तथा मिथुन राशि में विराजमान है तो इस स्थिति में जातक के पराक्रम में वृद्धि होता है साथ ही जातक का अपने भाईयों के साथ संबंध बेहतर बनता है और रिश्ते में मजबूती आती है।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र अगर कुंडली में चौथे भाव में सुख के स्थान में बैठा हो तो यह जातक को जीवन में सभी प्रकार के सुख देता है। चाहे वह प्रेम रूपी सुख हो या धन रूपी। कुल मिलाकर जातक का जीवन सुखमय रहता है। लेकिन यही शुक्र यदि पत्रिका में पांचवें भाव यानी की प्रेम के घर में विराजमान हो तो यह जातक के जीवन में प्रेम भरता है। प्रेमी व प्रेमिका को संबंध को नये दिशा में ले जाने के लिए प्रोत्साहीत करता है। दोनों नवयुगलों में प्रेम का संचार करता है। परंतु कभी-कभी देखने में आया है कि इस भाव में शुक्र, मंगल व चंद्रमा तीनों ग्रह जब एक साथ आ जाते हैं तो प्रेमी युगल अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं और सारी सीमाएं तोड़कर संबंध में आगे बढ़ जाते हैं। जब शुक्र कुंडली में छठे भाव में विराजमान होता है तब जातक बहुतों को अपना दुश्मन बना लेता है। परंतु यही शुक्र अगर पत्रिका के सातवें भाव में जिसे ज्योतिष पति-पत्नी का घर भी कहते हैं यदि इसमें बैठा हो तो जातक को अपने वैवाहिक जीवन में सुख की प्राप्ति होती है। साथी की ओर से जातक को खूब प्यार मिलता है।
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शुक्र अगर अष्टम हो तो यह प्रेमी युगल को त्वचा संबंधी समस्या देने वाला बन जाता है। यदि शुक्र जातक की कुंडली में भाग्य स्थान में हो तो ऐसे में जातक का प्रेमी के द्वारा भाग्योदय होता है। शुक्र यदि दशम स्थान में स्थिति है तो करियर के साथ-साथ ये प्रेम को भी बढ़ाने का काम करता है। तो वहीं ग्यारहवें स्थान में होने से जातक के कार्य में वृद्धि, लाभ तथा प्रेमी-प्रेमिका के बीच प्रेम संबंध को प्रबल बनाता है। बारहवें स्थान में शुक्र का होना ज्योतिष के अनुसार प्रेम प्रसंग के लिए शुभ होता है। साथ ही यह विदेश से लाभ का योग भी बनाता है।