लड़की हो या लड़का, युवा अवस्था में आते ही दोनों के मन में यही प्रश्न उठता है कि मेरी शादी कब होगी? तो हम आपको बता दें कि शादी होेना भी आपके ग्रह स्थिति व कुंडली में विवाह योग होने पर निर्भर करता है। इस लेख में हम विवाह योग कुंडली में कैसे बनता है, किन ग्रहों के मेल से कुंडली में विवाह योग दिखाई देता है तथा विवाह न होने के कारण क्या हो सकते हैं? इसके अलावा किन ग्रहों के मेल व स्थिति से मैरिड लाइफ सुखमय होती है? इस बारे में जानेंगे, तो आइए जानते हैं विवाह योग के बारे में –
हिंदू धर्म में विवाह संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार है। इस संस्कार के बाद ही लड़का व लड़की अपनी मैरिड लाइफ की शुरूआत करते हैं और प्रकृति के चक्र को सुचारू रूप से चलाने में अपना योगदान देते हैं। हर लड़का व लड़की युवा अवस्था में पहुंचने के बाद शादी के सपने सजोने लगते हैं। कब उसकी सपनों की परी उसके जीवन में आएगी। लड़कियां भी आस लगाए प्रतीक्षा करती हैं कि कब उसके सपनों का राजकुमार उसे लेने आएगा और वह घर छोड़ अपने पार्टनर के घर जाएगी। लेकिन कई ऐसे भी जातक हैं जो इस रस्म व संस्कार से वंचित रह जाते हैं।
हिंदू धर्म व ज्योतिष में विवाह योग को ग्रहों का योग माना जाता है। ज्योतिष की माने तो बिना योग के विवाह संभव नहीं। वर्तमान में युवक-युवती उच्च शिक्षण व एक सफल करियर बनाने के लिए विवाह को देरी से करने का फैसला लेते हैं। इस फैसले को उनके माता-पिता भी मानते हैं। जिसके चलते विवाह में देरी होती है। इसके अलावा भी यदि कुंडली में विवाह योग बना हो और तब शादी न की जाए तो इस स्थिति में भी विवाह के योग दोबारा बनने में देरी होती है। ऐसे में एक कुशल ज्योतिषाचार्य से कुंडली का आकलन करवा कर विवाह योग के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहिए।
विवाह के योग अनेक कुंडलियों में अलग-अलग प्रकार से बनते हैं। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में लग्नेश गोचर सप्तम भाव में होता है तो विवाह का योग बनता है जिससे जातक की शादी होने के आसार बढ़ जाते हैं। विवाह का कारक ग्रह जिन ग्रहों को माना गया है वे शुक्र व बृहस्पति ग्रह हैं। इन्हीं के चलते विवाह का योग बनता है। कुंडली में लग्नेश की महादशा व अंतरदशा चलने पर भी विवाह का योग बनता है। इसके अलावा सप्तमेश की महादशा व अंतरदशा में भी शादी की संभावनाएं प्रबल होती हैं। किसी जातक के कुंडली में यदि गुरू बृहस्पति व शुक्र की महादशा व अंतरदशा चल रही है तो जातक के पत्रिका में विवाह का योग बनता है।
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इसके इतर सप्तमेश शुक्र और गुरू की दशा में भी विवाह योग बनता है। किसी कुंडली में गुरू बृहस्पति व शनि का लग्नेश व सप्तमेश पर दृष्टि होने पर भी विवाह योग बनता है। अगर कुंडली में लग्नेश शुक्र है और महादशा व अंतरदशा में भी शुक्र है तो विवाह के पूर्ण योग बनते हैं। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तम भाव के साथ गुरू बृहस्पति का संबंध होना तथा गुरू का महादशा या अंतरदशा का होना भी विवाह का योग बनाता है। सप्तमेश व लग्नेश गोचर में चंद्र गुरू के साथ आए या फिर गुरू महादशा या अंतरदशा चले तो विवाह का योग बनता है। लग्नेश और भाग्येश की महादशा या अंतरदशा में भी यह योग बनता है।
कुंडली में मांगलिक दोष तब बनता है जब मंगल कुंडली के पहले,छठे, आठवें और बारहवें भाव में उपस्थित हो। विद्वानों का मत है कि द्वितीय भाव में मंगल के होने से भी मांगलिक दोष बनता है। कहा गया है कि कुंडली में मंगल दोष होने पर शादी में देरी होती है। वर या वधु में से किसी एक के कुंडली में पूर्ण मांगलिक दोष है तो दाम्पत्य जीवन में परेशानियां आती हैं। कभी–कभी तो यह दोष शादी के टूटने का कारण भी बन जाता है। मंगल दोष के लिए शास्त्रों में उपाय बताएं गए हैं। जिनमें कुंभ विवाह प्रमुख है।