
Nirjala Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी व्रतों का विशेष महत्व है। पूरे वर्ष में 24 एकादशी होती हैं, लेकिन निर्जला एकादशी को सबसे श्रेष्ठ और कठिन व्रत माना जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को रखा जाता है, जब तपती गर्मी अपने चरम पर होती है और जल ग्रहण तक वर्जित होता है। इसी कारण इसे निर्जला कहा जाता है—अर्थात् बिना जल के किया गया उपवास। वर्ष 2025 में यह पावन व्रत 6 जून, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
हालांकि शास्त्रों में जल न पीने का विधान है, फिर भी कुछ विशेष विधियों से यदि जल ग्रहण किया जाए तो व्रत का फल बना रहता है और नियम भंग नहीं होता। आइए विस्तार से जानते हैं निर्जला एकादशी का महत्व, जल पीने की शास्त्रीय विधि, दान-पुण्य और पौराणिक कथा।
व्रत तिथि: 6 जून 2025, शुक्रवार
एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जून को दोपहर 01:32 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 6 जून को दोपहर 11:58 बजे
पारण का समय: 7 जून शनिवार को सुबह 05:24 बजे से सुबह 10:00 बजे तक
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि इस व्रत का पालन महाबली भीम ने किया था। मान्यता है कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष की अन्य एकादशियों का व्रत नहीं कर पाता, यदि वह केवल निर्जला एकादशी का पूर्ण नियम से पालन करता है, तो उसे सभी एकादशियों के व्रतों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
इस दिन श्रीहरि विष्णु की उपासना, उपवास, दान और संयम का विशेष महत्व होता है। यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। यह व्रत आत्मनियंत्रण, धैर्य और भक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है।
यह व्रत अत्यंत कठिन होता है क्योंकि इसमें जल तक नहीं ग्रहण किया जाता। गर्मी के मौसम में व्रतियों को अत्यधिक प्यास लगती है और कभी-कभी स्थिति असहनीय हो जाती है। ऐसे में शास्त्रों में एक विशेष विधि बताई गई है, जिससे जल पीने पर भी व्रत भंग नहीं होता और व्रती को व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
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पहले 12 बार “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जप करें।
एक थाली में शुद्ध जल भर लें।
फिर घुटनों और भुजाओं को भूमि पर सटाकर, पशु की तरह थाली से जल पीएं—जैसे गाय या बकरी पीती है।
सीधे हाथ से गिलास उठाकर जल नहीं पीना चाहिए। इस प्रक्रिया से शरीर और मन दोनों में विनम्रता आती है।
इसके बाद आप पुनः व्रत को पूरी श्रद्धा से जारी रख सकते हैं।
यह विधि केवल उसी स्थिति में अपनानी चाहिए जब व्रती को ऐसा लगे कि अब जल न पीने पर जीवन संकट में आ सकता है।
बालक, वृद्ध, और बीमार व्यक्ति इस व्रत को न करें।
गर्भवती महिलाओं को भी इस कठिन उपवास से बचना चाहिए।
यदि आप शरीर से दुर्बल हैं तो केवल फलाहार करें और भगवान विष्णु का नामस्मरण करते रहें।
व्रत के दिन भजन-कीर्तन, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और भगवद्गीता का पाठ करें।
पूरे दिन श्रीहरि विष्णु की उपासना करें।
मानसिक, वाचिक और शारीरिक पवित्रता बनाए रखें।
द्वादशी तिथि में पारण से पूर्व ब्राह्मण या जरूरतमंद को जलदान और सात्विक भोजन कराएं।
इस दिन जलदान करने का विशेष महत्व है। गर्मी के मौसम में प्यासे जीवों की सहायता करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
जलदान की विधि:
एक पीतल या तांबे के कलश में शुद्ध जल भरें।
उसे सफेद कपड़े से ढक दें।
ऊपर कुछ चीनी, धातु के सिक्के और सात्विक अनाज रखें।
इस कलश को किसी योग्य ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान करें।
इसके अतिरिक्त आप पंखा, छतरी, वस्त्र, फल आदि भी दान कर सकते हैं। यह पुण्य कई जन्मों के पापों को मिटाता है।
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पौराणिक मान्यता के अनुसार, भीमसेन को व्रत रखने में कठिनाई होती थी क्योंकि उन्हें बहुत भूख लगती थी। उन्होंने महर्षि व्यास से पूछा कि क्या कोई ऐसा व्रत है जिससे वे सभी एकादशियों का पुण्य एक साथ प्राप्त कर सकें। तब व्यास मुनि ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत का उपदेश दिया।
भीम ने पूरी श्रद्धा और साहस से यह कठिन व्रत किया और बिना जल के एकादशी का पालन किया। फलस्वरूप उन्हें दस हज़ार हाथियों के बल की प्राप्ति हुई और वे युद्ध में विजयश्री प्राप्त करने में सफल हुए।
व्रत का पारण द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद किया जाता है।
इस वर्ष पारण का समय: सुबह 5:24 से सुबह 10:00 बजे तक।
पारण से पहले श्रीहरि विष्णु का पूजन करें, तुलसी पत्र चढ़ाएं और सात्विक भोजन बनाकर सबसे पहले किसी ब्राह्मण को अर्पण करें। इसके बाद स्वयं फलाहार करें या व्रत पूर्ण करें।
निर्जला एकादशी का व्रत केवल उपवास नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और संयम का प्रतीक है। यह व्रत भक्त को भीतर से दृढ़ बनाता है और ईश्वर के प्रति उसकी भक्ति को प्रकट करता है। यदि स्वास्थ्य के कारण जल पीना आवश्यक हो जाए, तो शास्त्रसम्मत विधि से जल ग्रहण कर व्रत को जारी रखा जा सकता है। इस दिन जलदान, अन्नदान, ब्राह्मण सेवा और ईश्वर भक्ति से पुण्य की प्राप्ति होती है।
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