Pooja Tips for Lord Shiva Jalabhishek: देवों के देव महादेव को अजर और अमर कहा गया है। प्राचीन काल से ही भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व रहा है। भगवान शिव की पूजा का एक विशेष चरण हैं शिवलिंग का जलाभिषेक करना हैं। शास्त्रों में जलाभिषेक का विशेष महत्व हैं क्योंकि महादेव को प्रसन्न करने में यह खास भूमिका निभाता है। शिवलिंग की पूजा से जातक को मनचाहा फल मिलता है। ऐसे में अगर आप भी शिवलिंग की नियमित पूजा करते हैं तो आपको शिवलिंग की पूजा के सही विधि-विधान के नियम के बारें में पता होने चाहिए।
धार्मिक मान्यता है कि जब सागर मंथन के बाद विष निकला, जिसे शिव जी ने सृष्टि के कल्याण के लिए अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने शिवजी पर जलाभिषेक किया। इस महीने को सावन का महीना माना जाता है। इस महीने में शिवजी के जलाभिषेक को बहुत उपयोगी माना जाता है।
महादेव का जलाभिषेक करते समय अक्सर हम अपनी कुछ गलतियों को समझ नहीं पाते हैं। आइए समझते हैं हमे क्या करना चाहिए क्या नहीं।
शास्त्रों में कहा गया है कि शिवलिंग को जलाभिषेक करने के लिए सदैव तांबे, पीतल या चांदी के पात्र का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे भगवान महादेव प्रसन्न होते हैं औऱ इससे जातक को सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। शिवलिंग को जल अर्पित करने के लिए कभी भी प्लास्टिक, लोहे, या स्टील के पात्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
जल हमेशा आप दक्षिण दिशा में खड़े होकर चढ़ाएं ताकि जल उत्तर दिशा की ओर शिवलिंग के ऊपर गिर सके। साथ ही इस बात का भी ख्याल रखें कि भगवान शिव को धीरे-धीरे जल चढ़ाना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग पर अर्पित किये जल को लांघना नहीं चाहिए। शिवलिंग पर जल चढ़ाते के बाद कभी भी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। जलाभिषेक हमेशा तांबे या पीतल के पात्र से ही करना चाहिए।
शिवलिंग पर दूध चढ़ाते समय, तांबे के लोटे का उपयोग नहीं करना चाहिए। साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि पूजा करने के बाद धूप या अगरबत्ती शिवलिंग के ऊपर नहीं रखनी चाहिए।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को जल अर्पित करते समय इन शक्तिशाली मंत्रो का जाप करना शुभ और लाभकारी माना जाता है।
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥
वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै"व" काराय नमः शिवायः॥
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ। शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
यहाँ शिव जी के जलाभिषेक के अलावा, रुद्राभिषेक के समय के बारें में बताया गया है। रुद्राभिषेक महाशिवरात्रि पर किया जाता है।
शिव की पूजा रात्रि में ही करने का विधान है। 24 घण्टे में कुल 8 प्रहर होते हैं। तीन घण्टे का एक प्रहर होता है। सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक के चार प्रहर और शाम 6 से दूसरे दिन प्रातः- के 6 बजे तक के 4 प्रहर होते हैं।
सूर्यास्त के बाद प्रथम पहर में अर्थात शाम 6 बजे से रात 9 बजे तक दूध से, दूसरे पहर रात 9 से 12 दही द्वारा, तीसरे पहर रात्रि 12 से 3 बजे तक शुद्ध देशी घी से तथा प्रातः ब्रह्म महूर्त में 3 से सुबह 6 बजे तक मधु पंचामृत द्वारा रुद्राभिषेक किया जाता है।
पहला अभिषेक दूध से करने पर पितृ प्रसन्न होते हैं। दूसरा दही के अभिषेक से सूर्य की कृपा मिलती है और आत्मबल बढ़ता है। तीसरा घी का अभिषेक अपने कुल की पितृमातृकाओं एवं मातृ मातृकाओं की मुक्ति तथा प्रसन्नता के लिए करने का विधान है।
अंतिम पहर सुबह 3 से 6 बजे तक रुद्राभिषेक शुद्ध मधु से करने पर राहु-केतु, शनि जैसे क्रूर ग्रहों की शांति होती है और कालसर्प-पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
मधु यानि शहद के अभिषेक से सभी टोन-टोटके, करा-धरा, मारण-मोहन, सम्मोहन, जादू आदि का नाश हो जाता है।
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