ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे जीवन पर ग्रहों की अनुकूलता व प्रतिकूलता का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि ग्रह कमजोर हैं तो इनके शुभ प्रभाव कम हो जाते हैं। ऐसे में कमजोर ग्रहों को शक्ति प्रदान करने के लिये अपनाये जाने वाले उपायों में ग्रहों से संबंधित रत्न धारण करने को कहा जाता है। लेकिन कई बार यदि रत्न विधिनुसार धारण न किये जायें तो इनका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है। ऐसे में रत्नों को धारण करने की सही विधि की जानकारी होना बहुत आवश्यक है। अपने इस लेख में हम आपको बतायेंगें कि रत्न धारण करने की सही विधि क्या है। c
विधि से पहले यह अच्छे से जांच परख कर लें कि आप जिस ग्रह का रत्न धारण करना चाहते हैं वह शुद्ध है या नहीं क्योंकि अशुद्ध रत्न से लाभ मिलने के स्थान पर हानि ही मिलेगी। वह आपके जीवन में सकारात्मक की जगह नकारात्मक प्रभाव छोड़ेगा। इसलिये विश्वस्त स्त्रोत से ही रत्न खरीदें। अब रत्न खरीदने के बाद सवाल आता है कि इसे धारण कैसे करें तो चलिये आपको बताते हैं।
रत्नों को अक्सर अंगूठी में जड़वाया जाता है कुछ एक रत्न ही ऐसे हैं जिन्हें आप गले में भी धारण कर सकते हैं। लेकिन रत्न के लिये किस तरह की अंगूठी सही रहेगी यह जानना भी जरूरी है। किसी भी रत्न का लाभ तभी मिलता है जब उस रत्न की सकारात्मक ऊर्जा आपके शरीर के अंदर प्रवेश करे और वह तभी प्रवेश कर पायेगी जब रत्न कहीं न कहीं आपके शरीर के किसी हिस्से को छूता हो। तो अपने रत्न को अंगूठी में जड़वाने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि अंगूठी खुले तले की हो जिसमें से रत्न का कुछ हिस्सा अंगूठी के छल्ले से थोड़ा नीचे की ओर निकला हो ताकि जब आप उसे अपनी ऊंगली में पहने तो रत्न का नीचला हिस्सा ऊंगली को छू सके। अंगूठी के साइज का विशेष ध्यान रखें बन जाने के बाद इसे पहन कर अच्छे से देंखें कहीं यह साइज से छोटी या बड़ी न हो।
अंगूठी में जड़वाने के पश्चात रत्न का शुद्धिकरण करना भी जरूरी होता है इसके लिये दो तरीके अपनाये जा सकते हैं। एक तो यह कि रत्न धारण करने से लगभग 24 से 48 घंटे पहले किसी कटोरी में गंगाजल डालकर रत्न जड़ित अंगूठी को उसमें डाल दें। दूसरा यह कि गंगाजल की अनुपलब्धा पर कच्ची लस्सी यानि कच्चे दूध में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर उसमें इस अंगूठी को डाल सकते हैं। ध्यान रखें कि कच्चा दूध वही माना जाता है जिसे उबाला न गया हो। इसके पश्चात इसे घर में किसी स्वच्छ स्थान पर रखें। मसलन घर में यदि पूजाघर है तो यह स्थान इसे रखने के लिये सबसे श्रेष्ठ है अन्यथा रसोईघर में भी किसी ऊंचे साफ-सुथरे स्थान पर इसे रख सकते हैं। शयनकश में तो भूलकर भी इसे न रखें। इस प्रकार रत्न का शुद्धिकरण होता है।
शुद्धिकरण के पश्चात रत्न धारण करने के दिन (ध्यान रहे प्रत्येक रत्न को धारण करने के लिये विशेष उक्त ग्रह संबंधित विशेष दिन धारण करना उचित रहता है।) प्रात:काल उठकर स्नानादि के पश्चात मंत्रोच्चारण के साथ इसे धारण करना चाहिये। वैसे तो सूर्योदय से पूर्व का समय इस क्रिया के लिये उचित माना जाता है लेकिन आप स्नान के समय भी इसे धारण कर सकते हैं। स्नान के पश्चात जिस कटोरी में रत्न जड़ित अंगूठी रखी है उसे किसी स्वच्छ स्थान पर अपने सामने रखकर बैठ जायें। अब संबंधित ग्रह के मंत्रों (मूल मंत्र, बीज मंत्र, वेद मंत्र आदि) का 108 बार जाप करें। हालांकि इसके लिये ग्रह के मात्र मूलमंत्र का जाप करना भी मान्य माना जाता है। मंत्र जाप के पश्चात ही आप इसे धारण कर सकते हैं। इस तरह मंत्र जाप करने से रत्न की प्राण-प्रतिष्ठा होती है।
हो सकता है कोई अल्पज्ञानी आपको यह सुझाव दे कि अमूक रत्न रात्रि के समय धारण करें। मसलन कुछ विद्वान नीलम को रात के समय धारण करने की सलाह देते हैं लेकिन आपको ऐसा नहीं करना चाहिये। इसका कारण यह है कि रत्न धारण करने से कई बार आपके शरीर में बदलाव महसूस होने शुरू हो जाते हैं ऐसे में यदि आपको किसी तरह की परेशानी आ रही है तो आपको इसे निकालना पड़ता है जो कि दिन में तो आप आसानी से कर सकते हैं लेकिन रात्रि में सोने के पश्चात यदि कोई बदलाव आता है और आप इसे निकाल नहीं पाते हैं तो इसके गंभीर परिणाम भी सामने आ सकते हैं। इसलिये रत्न प्रात:काल ही धारण करने चाहिये।
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