हिंदू पंचांग में अमावस्या एक नया चंद्र दिन है या कहे तो वैदिक पंचांग के अनुसार यह तिथि कृष्ण पक्ष की आखरी तिथि है। अमावस्या सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही विशेष तिथि है। जिसके बारे में हम आगे जानकारी देंगे। कहा जाता है कि अमावस्या यदि शनिवार के दिन पड़े तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस लेख में हम शनि अमावस्या व्रत क्या है, इस दिन का क्या महत्व है और 2015 में शनि अमावस्या किन तिथियों पर पड़ रहा है इस बारे में जानेंगे।
पंचाग के अनुसार तिथि की गणना सूर्योदय के समय से मानी जाती है। सूर्योदय जिस तिथि में होता है वही तिथि मानी जाती है।
भाद्रपद अमावस्या (शनि अमावस्या), 23 अगस्त 2025, शनिवार
चैत्र अमावस्या (शनि अमावस्या), 29 मार्च 2025, शनिवार
अमावस्या तिथि पर कुछ विशेष कार्य करने का विधान हिंदू धर्म शास्त्रों में बताया गया है। परंतु पूरे साल में पड़ने वाले सभी अमावस्या का महत्व इनके दिन के अनुसार बदल जाता है। लेकिन हम यहां बात करेंगे शनि अमावस्या की। मान्यता के मुताबिक शनिवार के दिन पड़ने वाले अमावस्या को शनि अमावस्या कहा जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है कि यह दिन न्याय के देव शनिदेव का है। जिसके चलते इसकी मान्यता हिंदू धर्म के मानने वालों में और भी बढ़ जाती है। बात करें वैदिक ज्योतिष शास्त्र की तो इस तिथि को ज्योतिष भी काफी महत्वपूर्ण मानते हैं।
पूरे साल में शनि अमावस्या ज्यादा से ज्यादा 2 से 3 बार ही आता है। जिसके कारण इस दिन कुछ महत्वपूर्ण कार्य करने का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन शनिदेव की उपासना करना सर्वोत्म है। ज्योतिष भी इस दिन शनि दोष से बचने हेतु उपाय करने की सलाह देते हैं। यदि किसी जातक पर शनि की महादशा, प्रत्यंतर या अंतरदशा चल रही है तो जातक इस तिथि पर शनि के प्रकोप से बचने के लिए पूजन कर सकता है। इसके अतिरिक्त जातक की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या ढ़ैया चल रही है तो शनि अमावस्या के दिन इस दोष के निवारण के लिए जातक उपाय करता है। जिससे जातक तो शनिदेव के कोप से राहत मिलती है। मान्यता है कि अमावस्या तिथि को पूजन व दान और तर्पण करना उपयुक्त होता है। इस दिन तर्पण करने से जातक के पितरों को मुक्ति मिलती है।
आमतौर पर सामान्य अमावस्या की तरह ही शनि अमावस्या की पूजा करने की सलाह दी जाती है लेकिन ऐसा नहीं है। वर्ष में पड़ने वाले सभी अमावस्या में से शनिवार को पड़ने वाला अमावस्या सबसे खास माना जाता है। इस दिन शनि की विधिवत उपासना करने से जातक शनि के कोप से बचने में काफी हद तक सफल होता है। इस तिथि पर भी साधक नित्य दिन की तरह प्रातः उठकर शुद्ध हो जाएं। इसके बाद साधक शनि मंदिर या घर पर ही शनिदेव की प्रतिमा पर काला तिल व सरसो का तेल चढ़ाएं या पीपल के पेड़ को तिल युक्त जल अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। इसके बाद साधक शनि को फूल व शहद चढ़ाकर, धूप- दीप जालाएं। फिर शनि अष्टक, शनि चालीसा का पाठ या शनि मंत्र का जाप करें। पाठ पूर्ण होने के बाद शनिदेव की आरती कर लोगों में प्रसाद बांट दें।
इस अमावस्या का महत्व इसलिये भी बढ़ा हुआ है क्योंकि जो जातक वर्तमान में शनि की चाल से नकारात्मक रूप से प्रभावित हैं। विशेषकर जिन जातकों की कुंडली में शनि की महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतरदशा चल रही है या फिर जिन पर शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढ़ैया चल रही है। या जिन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट शनि के कारण पंहुच रहा है वे जातक इस शनि अमावस्या पर शनिदेव की साधना कर उनके कोप से बच सकते हैं।
शनि के कोप से बचने के लिये शनि अमावस्या को शनिदेव की साधना करनी चाहिये। शनिदेव की शांति के लिये शनि सत्वराज का पाठ करें। शनि स्त्रोतम् या शनि अष्टक का पाठ भी कर सकते हैं। शनिदेव के बीज मंत्र का जप करने एवं शनिदेव संबंधी वस्तुओं का दान करने से भी शनि देव की कृपा प्राप्त हो सकती है।
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