हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है नवरात्रि का पर्व। यह हिन्दुओं का मुख्य त्यौहार है जो देवी आदिशक्ति माँ दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित होता है। शास्त्रों के अनुसार, वर्ष में नवरात्रि चार बार आती है और अधिकतर लोग चैत्र व शारदीय नवरात्रि के बारे में जानते हैं लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्रि हैं जो गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि को धूमधाम से मनाया जाता है, शरद ऋतु में शारदीय नवरात्रि आती है।
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नवरात्रि: शब्द का अर्थ होता है नौ रात्रि,इन्ही नौ रात्रि और दस दिनों के दौरान, माता दुर्गा की नौ शक्तियों की उपासना की जाती है और 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। शारदीय नवरात्रि का पर्व प्रतिपदा तिथि से दसवें दिन दशहरा तक मनाया जाता है।
वर्ष 2021 में शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर, गुरुवार से आरम्भ होने जा रहे है जो 15 अक्टूबर को समाप्त होगा। यह नवरात्रि विशेष है क्योंकि इस बार माता दुर्गा डोली पर सवार होकर अपने भक्तों के घर आएंगी। देवी भागवत पुराण में कहा गया है, जब नवरात्रि का प्रारंभ सोमवार या रविवार से होता है तो इसका अर्थ है कि माता गज पर सवार होकर पधारेंगी। शनिवार या मंगलवार को देवी अश्व पर सवार होकर आएंगी। गुरुवार या शुक्रवार से नवरात्रि शुरू होने पर देवी दुर्गा डोली पर सवार होकर आती हैं।
इस बार शारदीय नवरात्रि आठ दिन के होंगे। तृतीया और चतुर्थी नवरात्रि एक ही दिन है। नवरात्रि तिथियों का कम होना और श्राद्ध कर्म की तिथियों का बढ़ना अशुभ माना जाता है।
प्रथमा तिथि घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा 7 अक्टूबर 2021 बृहस्पतिवार
द्वितीया तिथि ब्रह्मचारिणी पूजा 8 अक्टूबर 2021 शुक्रवार
तृतीया तिथि चंद्रघंटा पूजा 9 अक्टूबर 2021 शनिवार
चतुर्थी तिथि कुष्मांडा पूजा 9 अक्टूबर 2021 शनिवार
पंचमी तिथि स्कंदमाता पूजा 10 अक्टूबर 2021 रविवार
षष्ठी तिथि कात्यायनी पूजा 11 अक्टूबर 2021 सोमवार
सप्तमी तिथि कालरात्रि पूजा 12 अक्टूबर 2021 मंगलवार
अष्टमी तिथि महागौरी पूजा 13 अक्टूबर 2021 बुधवार
नवमी तिथि सिद्धिदात्री पूजा 14 अक्टूबर 2021 बृहस्पतिवार
दशमी तिथि विजयदशमी 15 अक्टूबर 2021 शुक्रवार
आदिशक्ति दुर्गा की आराधना का उत्सव होता है शारदीय नवरात्रि। इन नौ दिनों के दौरान देवी शक्ति के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री आदि की उपासना विधिपूर्वक की जाती है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का आरम्भ होता है। शरद ऋतु में आने के कारण ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। शारदीय नवरात्रि के दौरान भक्तजन मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि के लिए अनेक तरह के व्रत, भजन, यज्ञ, पूजन और योग-साधना आदि करते हैं। नवरात्र की नौ रात्रियाँ तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा देवी दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा-अर्चना के लिए सर्वोत्तम होती है। सनातन काल से ही देवी शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र श्रद्धाभाव एवं भक्ति के साथ निरंतर मनाया जा रहा है।
नवरात्रि में आदिशक्ति माता दुर्गा के उपासक उनके सभी नौ रूपों की पूजा-अर्चना पूरी विधि-विधान से करते हैं। प्रथम नवरात्रि या प्रतिपदा तिथि पर घरों में कलश स्थापना की जाती है। इस समय कलश स्थापना करना अत्यंत शुभ माना जाता है, साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं। देशभर में पंडाल सजाकर देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और माता के विभिन्न शक्तिपीठों पर मेले का आयोजन किया जाता है।
शारदीय नवरात्रि से जुडी एक मान्यता है कि नवरात्रि के ही दौरान भगवान श्रीराम ने माता दुर्गा की आराधना कर विजयश्री का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस युद्ध में श्रीराम ने लंकापति राक्षस रावण का वध किया था और समाज को बुराई पर अच्छाई की जीत का सन्देश दिया था।
शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना करने की परंपरा रही है। इस वर्ष घटस्थापना या कलश स्थापना 7 अक्टूबर को गुरुवार के दिन की जाएगी। नवरात्रि का समय प्रत्येक कार्य को करने के लिए शुभ होता है। माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करना फलदायी सिद्ध होता है।
घटस्थापना मुहूर्त आरम्भ: सुबह 6:17 मिनट से
घटस्थापना मुहूर्त समाप्त: सुबह 7:07 मिनट तक
नवरात्रि में देवी दुर्गा का सानिध्य प्राप्त करने के लिए कलश स्थापना सदैव शुभ मुहूर्त में विधिविधान से करनी चाहिए। आगे हम आपको शारदीय नवरात्रि में घटस्थापना करने की सम्पूर्ण विधि बताने जा रहे हैं जो आपके लिए काफी सहायक सिद्ध होगी।
कलश स्थापना से पूर्व पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए।
सर्वप्रथम पूजा में सभी देवी-देवताओं का आवाहन किया जाता है।
इसके बाद कलश के ऊपर हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, मुद्रा आदि चढ़ाई जाती है, साथ ही पांच तरह के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। कलश के नीचे बालू की वेदी का निर्माण करके जौ को बोया जाता है।
जौ बोने की इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के द्वारा देवी अन्नपूर्णा की आराधना की जाती है जो धन-धान्य प्रदान करने वाली हैं।
देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र पूजास्थल पर स्थापित करके रोली, चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, आभूषण और सुहाग से माता का श्रृंगार करें। प्रातः काल माता दुर्गा को फल एवं मिठाई का भोग और रात्रि में दूध का भोग लगाना चाहिए।