Shiv Ji Ke 108 Naam: भगवान शिव के 108 नाम और उनके लाभ

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Shiv Ji Ke 108 Naam: भगवान शिव के 108 नाम और उनके लाभ

Shiv Ji Ke 108 Naam: क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव को महादेव, भोलेनाथ और शंकर के नाम से क्यों जाना जाता है? क्या आप जानते हैं कि वे सिर्फ त्रिदेवों में से एक नहीं बल्कि सृष्टि के रक्षक, संहारक और योगियों के आदर्श भी हैं? शिव जी की पूजा क्यों हर भक्त के जीवन में मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा लाती है?

क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के 108 नामों का जाप क्यों इतना खास माना जाता है? क्या यह सिर्फ नामों का संग्रह है या इनमें कुछ और भी गहरा अर्थ छुपा है? शिव स्तोत्र और 108 नामावलि के माध्यम से हम शिव जी की अद्वितीय शक्ति और उनके दिव्य गुणों को अपने जीवन में कैसे अनुभव कर सकते हैं?

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शिव जी के 108 नाम (Shiv Ji Ke 108 Naam)

  1. शिव - कल्याण स्वरूप
     
  2. महेश्वर - माया के अधीश्वर
     
  3. शम्भू - आनंद स्वरूप वाले
     
  4. पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले
     
  5. शशिशेखर - सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
     
  6. वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
     
  7. विरूपाक्ष - विचित्र आंख वाले (शिव के तीन नेत्र हैं)
     
  8. कपर्दी - जटाजूट धारण करने वाले
     
  9. नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले
     
  10. शंकर - सबका कल्याण करने वाले
     
  11. शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
     
  12. खटवांगी - खटिया का एक पाया रखने वाले
     
  13. विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अति प्रिय
     
  14. शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले
     
  15. अंबिकानाथ - देवी भगवती के पति
     
  16. श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले
     
  17. भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
     
  18. भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले
     
  19. शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले
     
  20. त्रिलोकेश - तीनों लोकों के स्वामी
     
  21. शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले
     
  22. शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय
     
  23. उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले
     
  24. कपाली - कपाल धारण करने वाले
     
  25. कामारी - कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले
     
  26. सुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले
     
  27. गंगाधर - गंगा जी को धारण करने वाले
     
  28. ललाटाक्ष - ललाट में आंख वाले
     
  29. महाकाल - कालों के भी काल
     
  30. कृपानिधि - करूणा की खान
     
  31. भीम - भयंकर रूप वाले
     
  32. परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले
     
  33. मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले
     
  34. जटाधर - जटा रखने वाले
     
  35. कैलाशवासी - कैलाश के निवासी
     
  36. कवची - कवच धारण करने वाले
     
  37. कठोर - अत्यंत मजबूत देह वाले
     
  38. त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर को मारने वाले
     
  39. वृषांक - बैल के चिह्न वाली ध्वजा वाले
     
  40. वृषभारूढ़ - बैल की सवारी वाले
     
  41. भस्मोद्धूलितविग्रह - सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
     
  42. सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले
     
  43. स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले
     
  44. त्रयीमूर्ति - वेदरूपी विग्रह करने वाले
     
  45. अनीश्वर - जो स्वयं ही सबके स्वामी हैं
     
  46. सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले
     
  47. परमात्मा - सब आत्माओं में सर्वोच्च
     
  48. सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले
     
  49. हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले
     
  50. यज्ञमय - यज्ञस्वरूप वाले
     
  51. सोम - उमा के सहित रूप वाले
     
  52. पंचवक्त्र - पांच मुख वाले
     
  53. सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाले
     
  54. विश्वेश्वर - सारे विश्व के ईश्वर
     
  55. वीरभद्र - वीर होते हुए भी शांत स्वरूप वाले
     
  56. गणनाथ - गणों के स्वामी
     
  57. प्रजापति - प्रजाओं का पालन करने वाले
     
  58. हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले
     
  59. दुर्धुर्ष - किसी से नहीं दबने वाले
     
  60. गिरीश - पर्वतों के स्वामी
     
  61. गिरिश्वर - कैलाश पर्वत पर सोने वाले
     
  62. अनघ - पापरहित
     
  63. भुजंगभूषण - सांपों के आभूषण वाले
     
  64. भर्ग - पापों को भूंज देने वाले
     
  65. गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
     
  66. गिरिप्रिय - पर्वत प्रेमी
     
  67. कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले
     
  68. पुराराति - पुरों का नाश करने वाले
     
  69. भगवान् - सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न
     
  70. प्रमथाधिप - प्रमथगणों के अधिपति
     
  71. मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले
     
  72. सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले
     
  73. जगद्व्यापी - जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले
     
  74. जगद्गुरू - जगत् के गुरु
     
  75. व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले
     
  76. महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता
     
  77. चारुविक्रम - सुंदर पराक्रम वाले
     
  78. रूद्र - भयानक
     
  79. भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
     
  80. स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
     
  81. अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी को धारण करने वाले
     
  82. दिगम्बर - नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
     
  83. अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले
     
  84. अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाले
     
  85. सात्त्विक - सत्व गुण वाले
     
  86. शुद्धविग्रह - शुद्धमूर्ति वाले
     
  87. शाश्वत - नित्य रहने वाले
     
  88. खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
     
  89. अज - जन्म रहित
     
  90. पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले
     
  91. मृड - सुख स्वरूप वाले
     
  92. पशुपति - पशुओं के स्वामी
     
  93. देव - स्वयं प्रकाश रूप
     
  94. महादेव - देवों के भी देव
     
  95. अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले
     
  96. हरि - विष्णुस्वरूप
     
  97. पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाले
     
  98. अव्यग्र - कभी भी व्यथित न होने वाले
     
  99. दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले
     
  100. हर - पापों व तापों को हरने वाले
     
  101. भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले
     
  102. अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
     
  103. सहस्राक्ष - हजार आंखों वाले
     
  104. सहस्रपाद - हजार पैरों वाले
     
  105. अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले
     
  106. अनंत - देशकालवस्तु रूपी परिछेद से रहित
     
  107. तारक - सबको तारने वाले
     
  108. परमेश्वर - परम ईश्वर’

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शिव जी के नाम जपने का महत्व (Shiv Ji Ke Naam Japne ka Mahatav)

शिव जी के 108 नामों का जप केवल पूजा का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी मार्ग है। कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति नियमित रूप से इन नामों का स्मरण करता है, तो उसके जीवन में शांति, सुख और आंतरिक शक्ति का प्रवाह होता है।

भक्तों का विश्वास है कि सोमवार या महाशिवरात्रि के दिन इन नामों का पाठ करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। यह जप न केवल कष्टों का नाश करता है बल्कि मन को स्थिर और चिंतनशील बनाता है।

शिव जी के 108 नामों का जाप कैसे करें? (How to Chant Shiv Ji Ke 108 Naam)

भगवान शिव के 108 नामों का जाप करना अत्यंत शुभ और पवित्र साधना मानी जाती है। यह न केवल मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का मार्ग है, बल्कि जीवन में संतुलन, सुख और ऊर्जा का संचार भी करता है। इसे करने का तरीका बहुत सरल है:

  1. समय और वातावरण: सुबह ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से पहले) या संध्या के समय जाप करना सबसे शुभ माना जाता है। शांत और स्वच्छ वातावरण में बैठें ताकि मन पूर्णतः एकाग्र रहे।
     
  2. माला का प्रयोग: 108 दानों की rudraksha माला या स्फटिक माला का प्रयोग करें। हर दाने पर शिव जी के एक नाम का जप करें। इससे ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रहता है।
     
  3. भावना: हर नाम का अर्थ समझते हुए शिव जी के दिव्य स्वरूप की कल्पना करें—जटाओं में गंगा, त्रिशूल धारण किए और शांत, करुणामयी रूप में विराजमान। भावनाओं की सच्चाई ही भक्ति को प्रभावशाली बनाती है।
     
  4. नियमितता: प्रतिदिन जाप करना उत्तम है, लेकिन यदि संभव न हो तो सोमवार, महाशिवरात्रि या किसी विशेष शिव पूजन के दिन अवश्य करें।
     
  5. स्थान: अपने घर के पूजा स्थल या किसी शांत स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके जाप करें। दीपक जलाएं और धूप का प्रयोग कर वातावरण को पवित्र करें।

शिव जी के 108 नाम जप के लाभ (Benefits of Chanting 108 names of lord shiva in hindi )

  • जीवन में मानसिक शांति, शक्ति और संतुलन का वास होता है।
     
  • तनाव, भय और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
     
  • घर और कार्यस्थल में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
     
  • कार्यों में सफलता और निर्णय लेने की क्षमता मजबूत होती है।
     
  • आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है।

यह भी पढ़ें: शिवलिंग पर चढ़ाएं ये एक काली चीज़, करियर की रुकावटें होंगी दूर

नियमित रूप से शिव जी के 108 नामों का जप करने से न केवल भौतिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है, बल्कि व्यक्ति के मन और आत्मा को भी स्थिर और संतुलित किया जा सकता है। भगवान शिव के हर नाम में शक्ति, करुणा और ज्ञान का सार छिपा है। यदि श्रद्धा और विश्वास के साथ इन नामों का जप किया जाए, तो शिव जी अवश्य प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

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