हर मांगलिक कार्य पर जिस स्वस्तिक की रचना हल्दी कुमकुम और सिंदूर से की जाती है, जिसे सतिया भी कहा जाता है जिसे भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है और जिसमें समस्त देवी-देवताओं के वास की मान्यता है। हिंदू धर्म के लोगों की आस्था के इस प्रतीक को धन वैभव और सुख समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है।
वैसे तो दिशाएं दस मानी जाती हैं लेकिन मुख्य दिशाएं पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण ये चार ही हैं इन चारों दिशाओं के अधिपति देवता अग्नि, इंद्र, वरुण एवं सोम माने जाते हैं। दिशाओं के देवताओं के साथ-साथ सप्तऋषियों की हिंदूमें बहुत मान्यता है। इन सभी की पूजा और आशीर्वाद के लिये स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक की संरचना भी सभी दिशाओं के महत्व को दर्शाती है। इसलिये इसे दिशाओं का प्रतीक माना जाता है। स्वस्तिक की चार रेखाएं ऋग्, यजु, साम और अथर्व आदि चारों वेद, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारों सिद्धांत एवं ज्ञान, कर्म, योग और भक्ति आदि चारों मार्गों की भी प्रतीक हैं। इस प्रकार से मनुष्य के जीवन चक्र जिसमें शैशव, किशोरावस्था, जवानी और बुढापा या कहें जीवन के चारों आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास का प्रतीक भी स्वस्तिक माना जाता है। इतना ही नहीं प्राणी मात्र की गति जो कि नरक, त्रियंच, मनुष्य और देव आदि चार ही होती हैं इनका एवं सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग आदि चारों युगों का द्योतक भी स्वस्तिक को माना जाता है। स्वस्तिक की संरचना गणित के धन चिन्ह यानि जोड़ यानि योग को दर्शाती हैं इस तरह यह योग और जोड़ का प्रतीक भी माना जाता है।
ज्यादातर मौकों पर स्वस्तिक को हल्दी से ही बनाया जाता है। ईशान या उत्तर दिशा में दीवार पर यदि पीले रंग का स्वस्तिक बनाते हैं तो यह घर में सुख शांति बनाये रखने में लाभकारी होता है। इसी प्रकार मांगलिक कार्य के लिये लाल रंग का स्वस्तिक बनाना शुभ रहता है। सामग्री के तौर पर केसर, सिंदूर, रोली और कुंकुम का इस्तेमाल आप कर सकते हैं।
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