अमावस्या चंद्रमास के कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन माना जाता है इसके पश्चात चंद्र दर्शन के साथ ही शुक्ल पक्ष की शुरूआत होती है। पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार यह मास के प्रथम पखवाड़े का अंतिम दिन होता है तो अमावस्यांत पंचांग के अनुसार यह दूसरे यानि अंतिम पखवाड़े का अंतिम दिन होता है। धर्म-कर्म, स्नान-दान, तर्पण आदि के लिये यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। ग्रह दोष विशेषकर काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर ही ज्योतिषीय उपाय भी अपनाये जाते हैं। वैशाख हिंदू वर्ष का दूसरा माह होता है। मान्यता है कि इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था इस कारण वैशाख अमावस्या (Vaisakh Amavsya 2024) का धार्मिक महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। दक्षिण भारत में तो अमावस्यांत पंचांग का अनुसरण करने वाले वैशाख अमावस्या को शनि जयंती के रूप में भी मनाते हैं। आइये जानते हैं वैशाख अमावस्या की व्रत कथा व इसके महत्व के बारे में।
वैशाख अमावस्या (Vaisakh Amavsya 2024) की तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, 08 मई 2024, दिन बुधवार को है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन विष्कुम्भ और प्रीति योग बन रहा है। प्रीति योग को शुभ कार्य और यात्रा पर जाने के लिए शुभ माना गया है। वहीं दूसरी ओर विष्कुम्भ योग ऐसा योग है जिसमें धन और सम्पति के लिए उत्तम माना जाता है।
अमावस्या तिथि -08 मई 2024, गुरुवार
अमावस्या प्रारम्भ - सुबह 11:40 से (07 मई 2024)
अमावस्या समाप्त - सुबह 08:51 तक (08 मई 2024)
वैशाख अमावस्या के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। कथा कुछ यूं है कि बहुत समय पहले की बात है। धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति के थे। व्रत-उपवास करते रहते, ऋषि-मुनियों का आदर करते व उनसे ज्ञान ग्रहण करते। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। अन्य युगों में जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता था उससे कहीं अधिक पुण्य फल इस घोर कलियुग में भगवान का नाम सुमिरन करने से मिल जाता है।
धर्मवर्ण ने इसे आत्मसात कर लिया और सांसारिकता से विरक्त होकर सन्यास लेकर भ्रमण करने लगा। एक दिन भ्रमण करते-करते वह पितृलोक जा पंहुचा। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई है क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करे। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। तत्पश्चात धर्मवर्ण अपने सांसारिक जीवन में वापस लौट आया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।
ये भी पढ़े : इस शनि जयंती पर इन खास उपायों से करें शनि देव को प्रसन्न ! जानें सही तिथि और मुहूर्त।
वैशाख अमावस्या पर ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिये।
फिर नित्यकर्म से निवृत होकर पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान करें।
गंगा, यमुना आदि नदियों में स्नान का बहुत अधिक महत्व बताया जाता है। पवित्र सरोवरों में भी स्नान किया जा सकता है।
स्नान के पश्चात सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते जल में तिल प्रवाहित करें।
इस दिन आप अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर सकते हैं।
इस दिन दान का भी बहुत महत्व है इसलिए दान करना आवश्यक है।
ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और स्वयं भी सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
इस दिन देर तक सोना वर्जित है।
इस दिन मास मदिरा का सेवन करना वर्जित है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन वाद-विवाद से बचना चाहिए।
खासतौर पर बड़ों का अपमान नहीं करना चाहिए।