क्यों वास्तु शास्त्र के अनुसार प्लॉट चुनना ज़रूरी है?

Tue, Aug 05, 2025
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क्यों वास्तु शास्त्र के अनुसार प्लॉट चुनना ज़रूरी है?

क्या आप सिर्फ लोकेशन, कीमत और आसपास की सुविधाओं को देखकर प्लॉट खरीदने का फैसला कर रहे हैं? अगर हां, तो ज़रा ठहरिए! क्या आपने कभी सोचा है कि जिस ज़मीन पर आप घर या ऑफिस बनाना चाहते हैं, वो आपके जीवन की ऊर्जा, समृद्धि और शांति को कैसे प्रभावित कर सकती है? भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार प्लॉट का चुनाव महज़ एक जमीन का सौदा नहीं है, बल्कि यह आपकी ज़िंदगी की दिशा तय करने वाला फैसला हो सकता है। सही दिशा और ऊर्जा संतुलन वाले प्लॉट में रहने से जीवन में पॉज़िटिव वाइब्स, अच्छा स्वास्थ्य और तरक्की मिलती है, जबकि गलत प्लॉट कई तरह की परेशानियों का कारण बन सकता है। तो अगली बार जब आप कोई प्लॉट देखें, तो सिर्फ उसकी कीमत नहीं, उसका वास्तु भी ज़रूर देखें।

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वास्तु के अनुसार सही प्लॉट चुनने के 10 टिप्स

नया घर या ऑफिस बनाने से पहले सही प्लॉट का चुनाव बेहद जरूरी होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार चुनी गई ज़मीन न केवल सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत बनती है, बल्कि जीवन में स्थिरता, समृद्धि और मानसिक शांति भी लाती है। जानिए ऐसे 10 जरूरी वास्तु टिप्स जो मददगार साबित होंगे।

1. दिशा और अभिविन्यास (Orientation)

वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर मुखी और पूर्व मुखी प्लॉट सबसे शुभ माने जाते हैं। ये दिशाएं प्रकाश, ऊर्जा और ज्ञान का प्रतीक हैं और मानसिक शांति व समृद्धि प्रदान करती हैं।

इसके विपरीत दक्षिण और पश्चिम मुखी प्लॉट, यदि उचित वास्तु उपायों के बिना हों, तो जीवन में बाधाएं और असंतुलन ला सकते हैं।

चारों दिशाओं से सड़क से घिरा प्लॉट अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इसमें सभी दिशाओं से ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रहता है।

2. प्लॉट का आकार (Shape)

  • वर्गाकार (Square) प्लॉट सबसे आदर्श होता है। इसमें चारों कोनों का संतुलन होता है जिससे ऊर्जा का संचार समान रूप से होता है।

  • आयताकार (Rectangular) प्लॉट भी शुभ होते हैं, विशेषकर जब उनका अनुपात लगभग 1:2 हो और लंबाई उत्तर की ओर हो।

कुछ विशेष आकृतियाँ:

  • गायमुखी प्लॉट (सामने से संकीर्ण, पीछे से चौड़ा): यह घर के लिए शुभ माना जाता है यदि इसका चौड़ा भाग उत्तर-पूर्व दिशा में हो।

  • शेरमुखी प्लॉट (सामने से चौड़ा, पीछे से संकीर्ण): व्यापारिक स्थलों के लिए उत्तम माना जाता है जब इसका चौड़ा भाग उत्तर या पूर्व दिशा में हो।

त्रिकोणाकार, गोलाकार या असामान्य आकृति वाले प्लॉटों से बचना चाहिए क्योंकि इनमें ऊर्जा असंतुलन की संभावना रहती है।

3. भूमि की ढलान और ऊंचाई (Slope and Elevation)

  • समतल भूमि सबसे उत्तम मानी जाती है।

  • यदि ढलान हो, तो उत्तर-पूर्व की ओर ढलान और दक्षिण-पश्चिम की ओर ऊंचाई शुभ होती है। यह ऊर्जा के सही प्रवाह को बनाए रखती है।

  • दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर ढलान वास्तु दोष ला सकता है और इससे परिवार में तनाव और आर्थिक हानि हो सकती है।

4. मिट्टी की गुणवत्ता (Soil Quality)

  • पीली, लाल या सफेद मिट्टी सबसे अनुकूल मानी जाती है। ये रंग उपजाऊ और स्थिर भूमि का संकेत देते हैं।

  • काली, चिकनी या पथरीली मिट्टी में नमी अधिक होती है और यह नींव को कमजोर बना सकती है, इसलिए ऐसे प्लॉट से बचना चाहिए।

5. सड़कों की स्थिति (Road Placement)

  • सड़क यदि पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा से आती हो तो यह सबसे शुभ होता है।

  • तीन या चार दिशाओं से सड़क से घिरा प्लॉट ऊर्जा प्रवाह के लिए उत्कृष्ट माना जाता है।

  • सड़क यदि दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व दिशा से आए तो यह नकारात्मक ऊर्जा का संकेत दे सकता है।

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6. कट-आउट और एक्सटेंशन (Corner Cuts and Extensions)

  • उत्तर-पूर्व दिशा का कट बेहद अशुभ माना जाता है। इससे मानसिक अस्थिरता और विकास में बाधा आती है।

  • उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व दिशाओं के कट भी स्वास्थ्य, संबंध और धन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

  • उत्तर-पूर्व में किया गया विस्तार शुभ होता है, जबकि अन्य दिशाओं में एक्सटेंशन से बचना चाहिए।

7. ऊर्जा परीक्षण (Energy Flow Tests)

  • प्लॉट पर खड़े होकर हल्कापन और सकारात्मकता महसूस होनी चाहिए। यदि वहां भारीपन, डर या बेचैनी महसूस हो, तो वह स्थान वास्तु के अनुसार उचित नहीं है।

  • जल परीक्षण: ज़मीन में गड्ढा करके पानी डालें—यदि पानी जल्दी अवशोषित हो और घड़ी की दिशा में घूमे, तो यह सकारात्मक संकेत है।

  • बीज परीक्षण: तुलसी या अन्य शुभ बीज बोकर देखना—यदि वे अंकुरित हो जाएं तो भूमि उपजाऊ और शुभ है।

  • मिट्टी की गंध और रंग: मिट्टी में मधुर गंध और जीवनदायी रंग हो तो भूमि सकारात्मक मानी जाती है।

8. प्रवेशद्वार और चारदीवारी (Entrance & Boundary Wall)

  • प्रवेशद्वार उत्तर या पूर्व दिशा में होना अधिक शुभ होता है।

  • चारदीवारी दक्षिण-पश्चिम दिशा में ऊँची और उत्तर-पूर्व दिशा में नीची होनी चाहिए ताकि ऊर्जा संतुलन बना रहे और सुरक्षा बनी रहे।

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9. आस-पास का वातावरण (Surroundings)

  • प्लॉट के पास कब्रिस्तान, अस्पताल, कारखाने या धार्मिक संस्थानों का होना नकारात्मक माना जाता है।

  • हरी-भरी भूमि, जल स्रोत (कुआं, झील, नहर आदि) यदि उत्तर या पूर्व दिशा में हों, तो यह अत्यंत शुभ माना जाता है।

10. जब आदर्श प्लॉट न मिले

हर बार पूरी तरह वास्तु-अनुकूल प्लॉट मिलना संभव नहीं होता। ऐसे में कुछ उपाय अपनाए जा सकते हैं:

  • अनियमित आकार के प्लॉट को चारदीवारी बनाकर वर्गाकार या आयताकार रूप दिया जा सकता है।

  • विशेष आकृति जैसे गायमुखी या शेरमुखी प्लॉट में ऊर्जा संतुलन के लिए वृक्षारोपण, यंत्र स्थापना और सीमा रेखा संरचना जैसे उपाय किए जा सकते हैं। किसी वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श लेना उचित होगा।

प्लॉट का चुनाव करते समय वास्तु शास्त्र को नज़रअंदाज़ करना भविष्य की परेशानियों को न्योता देना हो सकता है। एक सही दिशा, संतुलित मिट्टी, सकारात्मक ऊर्जा और अनुकूल वातावरण से भरा प्लॉट न केवल भवन की नींव को मजबूत करता है, बल्कि जीवन को भी स्थिरता और समृद्धि की ओर ले जाता है।

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