यजुर्वेद - यज्ञ की विधि बताने वाला वेद

Mon, Feb 19, 2018
टीम एस्ट्रोयोगी
 टीम एस्ट्रोयोगी के द्वारा
Mon, Feb 19, 2018
Team Astroyogi
 टीम एस्ट्रोयोगी के द्वारा
article view
480
यजुर्वेद - यज्ञ की विधि बताने वाला वेद

हिंदू धर्म की बुनियाद वेदों के ज्ञान पर टिकी बताई जाती है। यह अलग बात है कि वैदिक युग के हिंदू धर्म और वर्तमान के हिंदू धर्म में काफी अंतर आ चुका है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि समय के साथ हर चीज़ बदलती है। लेकिन जो चीज़ नहीं बदलती वह है वेदों का ज्ञान जो स्वयं ईश्वर से प्रकट हुआ है। अभी तक हमने वेद के बारे में बताते हुए ऋग्वेद पर भी संक्षिप्त जानकारी अपने पाठकों को दी है। इस लेख में यजुर्वेद के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

 

यजुर्वेद क्या है?

यजुर्वेद को चारों वेदों में ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है। मान्यता है कि ऋग्वेद व अथर्ववेद के मंत्र भी यजुर्वेद में शामिल मिलते हैं लेकिन फिर भी इसे ऋग्वेद से भिन्न ग्रंथ माना जाता है। हालांकि कुछ पौराणिक व प्राचीन ग्रंथों में यह भी गया है कि त्रेतायुग में केवल एक ही वेद था यजुर्वेद। इसी कारण इस दौर में हर कार्य के लिये चाहे वह पुत्र प्राप्ति हो या फिर युद्ध सबसे पहले यज्ञ व हवन करवाये जाते थे।

इसकी खास बात यह है कि अन्य वेदों में मंत्र जहां पद्यात्मक हैं वहीं यजुर्वेद के मंत्र गद्यात्मक शैली में है।

यह वेद मुख्यत: यज्ञ करने की सही प्रक्रिया व उसके महत्व के बारे में बताता है। इसी कारण इसे कर्मकांड प्रधान ग्रंथ भी कहते हैं। यजुर्वेद की दो शाखाएं शुक्ल यजुर्वेद व कृष्ण यजुर्वेद मिलती हैं। कुछ विद्वान शुक्ल यजुर्वेद में केवल मूल मंत्र होने से इसे शुक्ल यानि शुद्ध वेद कहते हैं तो कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ-साथ विनियोग, मंत्र व्याख्या आदि मिश्रित होने के कारण कृष्ण यजुर्वेद कहते हैं।

शुक्ल यजुर्वेद की वर्तमान में दो शाखाएं वाजसनेयि माध्यन्दिन संहिता व काण्व संहिता मौजूद बताते हैं। दोनों में अध्यायों की संख्या भी चालीस मिलती है। काण्व संहिता का चालीसवां अध्याय ईशोपनिषद् के रूप में भी प्रसिद्ध है। हालांकि कुछ विद्वान शुक्ल यजुर्वेद की काण्व, माध्यंदिन, जाबाल, बुधेय, शाकेय, तापनीय, कापीस, पौड्रवहा, आवर्तिक, परमावर्तिक, पाराशरीय, वैनेय, बौधेय एवं गालव ये पंद्रह शाखाएं भी बताते हैं। वहीं कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय, मैत्रायणी, काठक एवं कठ कपिष्ठल ये चार शाखाएं मिलती हैं। दोनों में से शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा को मूल शाखा माना जाता है। महर्षि दयानंद ने इसी का भाष्य भी किया है।


क्यों कहते हैं यजुर्वेद

यजुष् एवं वेद शब्दों की संधि से यजुर्वेद बना है। यज् का अभिप्राय होता है समर्पण, हवन को भी यजन यानि की समर्पण की क्रिया कहते हैं। यजुष का अभिप्राय भी यज्ञ से लिया जाता है। जैसा कि इस वेद का नाम है इसी को सार्थक करते हुए इसमें हमें यज्ञ हवन के नियम व विधान मिलते हैं। इतना ही नहीं आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर भी इस वेद से जानकारी मिलती है। पौराणिक कथाओं में अश्वमेध, राजसूय, वाजपेय, अग्निहोत्र आदि अनेक यज्ञ करने, करवाने की कहानियां हैं। इन सब यज्ञों की विधि, इनसे संबंधित कर्मकांड यजुर्वेद में मिलते हैं। इस वेद में 40 अध्याय, 1975 कण्डिकाएं (जिसमें कई भागों व योगों में कई मंत्र दिये गये हैं।) एवं 3988 मंत्र मिलते हैं। गायत्री एवं महामृत्युजंय मंत्र यजुर्वेद में भी मिलते हैं।

एस्ट्रोयोगी को बनाएं अपनी लाइफ का GPS और पायें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से गाइडेंस।


यह भी पढ़ें

वेद क्या हैं और कैसे हुआ वेदों का विस्तार?   |   ऋग्वेद – क्या है महत्व?

article tag
Hindu Astrology
Spirituality
Vedic astrology
article tag
Hindu Astrology
Spirituality
Vedic astrology
नये लेख

आपके पसंदीदा लेख

अपनी रुचि का अन्वेषण करें
आपका एक्सपीरियंस कैसा रहा?
facebook whatsapp twitter
ट्रेंडिंग लेख

ट्रेंडिंग लेख

और देखें

यह भी देखें!