Pradosh Vrat 2022: इस व्रत को उत्तर भारत में प्रदोष व्रत तथा दक्षिण भारत में प्रदोषम के नाम से जाना जाता है। व्रत में भगवान शिव की स्तुति की जाती है। मान्यताओं कि माने तो शुक्रवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत अधिक फलदायी होता है। आगे प्रदोष व्रत क्या है, व्रत का क्या महत्व है, व्रत की पूजा विधि क्या है, जिससे साधक उचित फल पा सकें। इसके अलावा इस वर्ष किन तिथियों पर प्रदोष व्रत पड़ रहा है, इसकी जानकारी इस लेख में दी जा रही है।
प्रदोष व्रत का सर्वोत्तम फल पाने के लिए, परामर्श करें देश के जाने माने ज्योतिषाचार्यों से
शुक्र प्रदोष व्रत (वैशाख, शुक्ल त्रयोदशी) | 13 मई, 2022 (शुक्रवार) |
शुक्र प्रदोष व्रत (ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी) | 27 मई, 2022 (शुक्रवार) |
रवि प्रदोष व्रत (ज्येष्ठ, शुक्ल त्रयोदशी) | 12 जून, 2022 (रविवार) |
रवि प्रदोष व्रत (आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी) | 26 जून, 2022 (रविवार) |
सोम प्रदोष व्रत (आषाढ़, शुक्ल त्रयोदशी) | 11 जुलाई, 2022 (सोमवार) |
सोम प्रदोष व्रत (श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी) | 25 जुलाई, 2022 (सोमवार) |
भौम प्रदोष व्रत (श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी) |
09 अगस्त, 2022 (मंगलवार) अधिक ज्योतिष जानकारी के लिए |
बुध प्रदोष व्रत (भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी) | 24 अगस्त, 2022 (मंगलवार) |
गुरु प्रदोष व्रत (भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी) |
08 सितंबर, 2022 (बृहस्पतिवार) |
शुक्र प्रदोष व्रत (आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी) |
23 सितंबर, 2022 (शुक्रवार) |
शुक्र प्रदोष व्रत (आश्विन, शुक्ल त्रयोदशी) | 07 अक्टूबर, 2022 (शुक्रवार) |
शनि प्रदोष व्रत (कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी) | 22 अक्टूबर, 2022 (शनिवार) |
शनि प्रदोष व्रत (कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी) | 05 नवंबर, 2022 (शनिवार) |
सोम प्रदोष व्रत (मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी) | 21 नवंबर, 2022 (सोमवार) |
सोम प्रदोष व्रत (मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी) |
05 दिसंबर, 2022 (सोमवार) |
बुध प्रदोष व्रत (पौष, कृष्ण त्रयोदशी) |
21 दिसंबर, 2022 (बुधवार) |
वैसे तो हर वार के अनुसार प्रदोष व्रत कथा का श्रवण किया जाता है। परंतु एक बहुत ही प्रचलित कथा है जिसे हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। एक गांव में एक निर्धन विधवा ब्राह्मणी रहती थी और ब्राह्मणी का एक पुत्र भी था। भरण पोषण के लिए दोनों प्रति दिन भिक्षा मांगते और जो मिलता उसी से अपनी क्षुधा शांत करते। ब्राह्मणी कई वर्षों से प्रदोष व्रत का पालन कर आ रही थी। एक बार ब्राह्मणी का पुत्र त्रयोदशी तिथि पर गंगा स्नान करने के लिए निकला। स्नान कर जब वह घर की ओर लौट रहा था तो रास्ते में उसका सामना लुटेरों के एक दल से हुआ। लुटेरों ने उससे उसका सारा सामान छीन कर आगे बढ़ गए। कुछ समय बाद वहां पर राज्य के कुछ सैनिक पहुंचे। उन्होंने ब्राह्मणी पुत्र को लुटेरों में से एक समझकर राजा के सामने प्रस्तुत किया। जहां राजा ने बिना ब्राह्मण युवक की दलील सुने उसे कारागार में डालवा दिया। रात्रि में राजा के स्वप्न में भगवान शिव आए और ब्राह्मण युवक को मुक्त करने का आदेश देकर अंतर्ध्यान हो गए।
राजा नींद से उठकर सीधे कारागार पहुंचे और युवक को मुक्त करने का आदेश दिया। राजा युवक को साथ लेकर महल लौटे जहां उन्होंने युवक का सम्मान किया और उसे दान मांगने के लिए कहां युवक ने राजा से दान स्वरूप सिर्फ एक मुठ्ठी धान मांगा। राजा उसकी मांग को सुनकर अचरज में पड़ गए। राजा ने युवक से प्रश्न किया कि सिर्फ एक मुठ्ठी धान से क्या होगा और भी कुछ मांग लो, ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलता है। युवक ने बड़ी ही विनम्रतापूर्वक राजा से कहा कि हे राजन इस समय यह धान मेरे लिए संसार का सबसे अनमोल धन है। इसे मैं अपनी माता को दूंगा जिससे वे खीर बना कर भगवान शिव को भोग लगाएंगी। फिर हम इसे ग्रहण कर अपनी क्षुधा को शांत करेंगे। राजा युवक की बातों को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मंत्री को आदेश दिया कि ब्राह्मणी को सह सम्मान दरबार में लाया जाए। मंत्री ब्राह्मणी को लेकर दरबार पहुंचे। राजा ने सारा प्रसंग ब्राह्मणी को सुनाया और उनके पुत्र की प्रशंसा करते हुए ब्राह्मणी पुत्र को अपना सलाहकार नियुक्त किया और इस प्रकार निर्धन ब्राह्मणी और उसके पुत्र का जीवन बदल गया।
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✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी