रामायण की इन 8 चौपाइयों का करें जप, मिलेगी सुख समृद्धि

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रामायण की इन 8 चौपाइयों का करें जप, मिलेगी सुख समृद्धि

Ramayan Chaupai: राम मंदिर अयोध्या में बनकर तैयार है। रामलला के प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम का आयोजन 22 जनवरी 2024 को होने वाला है। इस आयोजन में भारत के प्रधानमंत्री से लेकर असंख्य भक्त इस खास आयोजन के साक्षी बनने जा रहे हैं। भगवान श्री राम के इस मंदिर का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है क्योकिं शास्त्रों में उल्लेख है कि इसी जगह रामचंद्र जी का जन्म हुआ था। राम के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। श्री राम के जीवन पर आधारित है रामायण। जिसमें दी गई चौपाई हमारे जीवन में काफी बदलाव लाती हैं। 

हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख-समृद्धि चाहता है। हालांकि कभी-कभी काफी मेहनत करने के बाद भी घर पर दरिद्रता बनी रहती है और लोगों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। आर्थिक तंगी के वैसे कई कारण होते हैं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, घर में दरिद्रता तब आती है जब हमारे ग्रह-नक्षत्र खराब स्तिथि में हों। वास्तु शास्त्र के अनुसार, जिन घरों में साफ़ सफाई नहीं होती है वहां मां लक्ष्मी वास नहीं करती हैं और हमेशा उस घर की स्त्रियां दुःख का सामना करती हैं। अगर आप अपने घर की दरिद्रता को दूर करना चाहते हैं तो इन चौपाइयों का पाठ जरूर करें।

रामचरित मानस की इन 8 चौपाइयों का पाठ करेगा आपके जीवन में सुख-समृद्धि वास

हिन्दू धर्म की मानें तो रामचरितमानस से जीवन में काफी बदलाव लाये जा सकते हैं। वैसे तो पूरी रामचरितमानस ही हमारे जीवन के लिए जरूरी है। मगर कुछ खास चौपाई आपके परिवार में चल रही दरिद्रता को कम कर, घर का माहौल सकारात्मक करने में मदद कर सकती हैं। 

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।। 

भावार्थ:-श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।

चौपाई 1-

जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए।।

भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहि सुख बारी।।

भावार्थ:-जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आए, तब से (अयोध्या में) नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ सुख रूपी जल बरसा रहे हैं॥1॥

चौपाई 2-

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई।।

मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती।।

भावार्थ:- ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति रूपी सुहावनी नदियाँ उमड़-उमड़कर अयोध्या रूपी समुद्र में आ मिलीं। नगर के स्त्री-पुरुष अच्छी जाति के मणियों के समूह हैं, जो सब प्रकार से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं॥2॥

चौपाई 3-

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती।।

सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी।।

भावार्थ:- नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी श्री रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥3॥

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चौपाई 4-

मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली।।

राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ।।

भावार्थ:- सब माताएँ और सखी-सहेलियाँ अपनी मनोरथ रूपी बेल को फली हुई देखकर आनंदित हैं। श्री रामचन्द्रजी के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख-सुनकर राजा दशरथजी बहुत ही आनंदित होते हैं॥4॥

दोहा

सब कें उर अभिलाषु अस कहहिं मनाइ महेसु।

आप अछत जुबराज पद रामहि देउ नरेसु।।

भावार्थ:- सबके हृदय में ऐसी अभिलाषा है और सब महादेवजी को मनाकर (प्रार्थना करके) कहते हैं कि राजा अपने जीते जी श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद दे दें॥1॥ 

चौपाई 5-

एक समय सब सहित समाजा। राजसभाँ रघुराजु बिराजा।।

सकल सुकृत मूरति नरनाहू। राम सुजसु सुनि अतिहि उछाहू।।

भावार्थ:- एक समय रघुकुल के राजा दशरथजी अपने सारे समाज सहित राजसभा में विराजमान थे। महाराज समस्त पुण्यों की मूर्ति हैं, उन्हें श्री रामचन्द्रजी का सुंदर यश सुनकर अत्यन्त आनंद हो रहा है॥1॥

चौपाई 6-

नृप सब रहहिं कृपा अभिलाषें। लोकप करहिं प्रीति रुख राखें।।

वन तीनि काल जग माहीं। भूरिभाग दसरथ सम नाहीं।।

भावार्थ:- सब राजा उनकी कृपा चाहते हैं और लोकपालगण उनके रुख को रखते हुए (अनुकूल होकर) प्रीति करते हैं। (पृथ्वी, आकाश, पाताल) तीनों भुवनों में और (भूत, भविष्य, वर्तमान) तीनों कालों में दशरथजी के समान बड़भागी (और) कोई नहीं है॥2॥

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चौपाई 7-

मंगलमूल रामु सुत जासू। जो कछु कहिअ थोर सबु तासू।।

रायँ सुभायँ मुकुरु कर लीन्हा। बदनु बिलोकि मुकुटु सम कीन्हा।।

भावार्थ:- मंगलों के मूल श्री रामचन्द्रजी जिनके पुत्र हैं, उनके लिए जो कुछ कहा जाए सब थोड़ा है। राजा ने स्वाभाविक ही हाथ में दर्पण ले लिया और उसमें अपना मुँह देखकर मुकुट को सीधा किया॥3॥

चौपाई 8-

श्रवन समीप भए सित केसा। मनहुँ जरठपनु अस उपदेसा।।

नृप जुबराजु राम कहुँ देहू। जीवन जनम लाहु किन लेहू।।

भावार्थ:- (देखा कि) कानों के पास बाल सफेद हो गए हैं, मानो बुढ़ापा ऐसा उपदेश कर रहा है कि हे राजन्! श्री रामचन्द्रजी को युवराज पद देकर अपने जीवन और जन्म का लाभ क्यों नहीं लेते॥4॥ [ श्री रामचरितमानस: अयोध्या काण्ड: मंगलाचरण]

इन चौपाइयों का पाठ प्रतिदिन करने से दरिद्रता दूर होती है अथवा सुख, समृद्धि, शांति मिलती, इसका अर्थ यही है कि भक्त इसका सिर्फ गायन कर इसे अपने जीवन में उतारें।

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