ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य के जीवन को ग्रहों की चाल संचालित करती है। व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की जो दशा होती है उसी के आधार पर उसके भविष्य का आकलन किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन ग्रहों की उत्पति कैसे हुई। या फिर ये एक दूसरे के शत्रु या मित्र कैसे हैं? विज्ञान के पास तो इन सवालों के जवाब आपको नहीं मिलेंगें लेकिन हमारे धार्मिक ग्रंथों में ऐसी अनेक कथाएं मौजूद हैं जो इनकी उत्पति व आपसी संबंध को विस्तार से बयां करती हैं। बुध को बुद्धि का कारक माना जाता है तो इन्हें गंधर्वों का प्रणेता भी। बुद्धि का स्वामी बृहस्पति को माना जाता है तो गंधर्व विशेषज्ञ चंद्रमा को कहा जाता है। अब बुध में ये दोनों गुण कैसे आये? इस बारे में एक बड़ी रोमांचक कथा है आइये जानते हैं बुध की कहानी क्या कहती है।
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बृहस्पति को देवताओं का गुरु माना जाता है। समस्त देवता उनसे परामर्श लेते थे। चंद्रमा भी बृहस्पति के शिष्य थे। बृहस्पति पत्नी थीं तारा जो कि बहुत ही सुंदर थी। चंद्रमा को तो सभी सुंदर मानते ही हैं बल्कि उन्हें तो सुंदरता का ही दूसरा रूप माना जाता है। अब तारा चंद्रमा पर मोहित हो गई और उनके प्रेम में पड़ गई। चंद्रमा भी गुरु पत्नी के प्रेमपाश में बंध गये। यहां तक कि वे तारा ने बृहस्पति को छोड़कर चंद्रमा के साथ रहना शुरु कर दिया। बृहस्पति ने उन्हें बहुत समझाया और वापस आने की कही लेकिन वे नहीं मानी नतीजन बृहस्पति क्रोधित हो गये और चंद्रमा के साथ युद्ध करने की ठान ली। वे देवताओं के गुरु थे इसलिये सभी देवता बृहस्पति के पक्ष में खड़े हो गये। उधर शत्रु के शत्रु को मित्र मानकर दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने चंद्रमा का साथ देने का मन बना लिया। युद्ध छिड़ गया और सृष्टि में भारी तबाही होने लगी। तारा की कामना के लिये हुए इस युद्ध को तारकाम्यम युद्ध कहा गया। अब सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी परेशान हो गये कि इस अनर्थ को कैसे रोका जाये। जैसे-तैसे वे बीच में कूदे और तारा को समझा-बुझाकर वापस बृहस्पति को सौंप दिया गया। कुछ समय पश्चात ही तारा ने एक पुत्र को जन्मदिया नाम रखा गया बुध। बुध बहुत ही सुंदर थे इतने कि कोई भी उसे अपना कहने लगे। बृहस्पति चूंकि तारा के पति थे उनका उसे अपना कहना स्वाभाविक था लेकिन चंद्रमा ने भी बुध को अपना पुत्र होना का दावा किया। बृह्सपति और चंद्रमा के बीच एक बार फिर स्थिति तनावपूर्ण होने लगी। बृहस्पति और चंद्रमा के दावे के बीच तारा शांत खड़ी देखती रही यह सब देखकर बुध भी भन्ना गये और क्रोधित होकर अपनी माता से सत्य बताने को कहा कि मेरा पिता कौन है। तब तारा ने कहा कि तुम चंद्रमा के पुत्र हो। मान्यता है कि गंभीर बुद्धि का बालक होने के कारण ही ब्रह्मा जी ने इनका नाम बुध रखा था।
एक और अन्य कहानी है तो इसी तरह लेकिन उसके अनुसार चंद्रमा अपने गुरु की पत्नी तारा पर मोहित हो गये और उसका अपहरण कर लिया। चंद्रमा और तारा के संबंध से बुध उत्पन्न हुए। अब चंद्रमा ने अपना पुत्र घोषित करते हुए बुध का जातकर्म संस्कार करना चाहा तो बृहस्पति बिफर गये। बुध की सुंदरता उसकी कांति को देख बृहस्पति उसे अपना पुत्र मानने को तैयार थे लेकिन विवाद बढता गया और ब्रह्मा जी के हस्तक्षेप के बाद तारा ने स्वीकार किया की बुध चंद्रमा का पुत्र है। इस प्रकार चंद्रमा ने उसका नामकरण संस्कार किया और उसे बुध का नाम दिया गया। अब चंद्रमा ने बुध का लालन पालन अपनी प्रिय पत्नी रोहिणी को सौंपा दिया। इसी कारण बुध को रौहिणेय भी कहा जाता है। चंद्रमा के गुण बुध में जन्मजात थे तो बृहस्पति ने उसे अपना पुत्र स्वीकार किया इस कारण बृहस्पति के गुण भी बुध में सम्मलित हैं। इसी कारण बुध को गंधर्व विद्या का प्रणता तो बुद्धि का कारक माना जाता है। लेकिन चंद्रमा ने तारा के साथ छल किया इस कारण बुध को अपने पिता से ये नकारात्मक प्रभाव भी विरासत में मिले। विशेषकर जब सप्तम स्थान में बुध स्थित हों बुध को छल कपट करवाने वाला माना जाता है।