देश में छठ पूजा का महाव्रत शुरू होने वाला है। यह त्योहार दीपावली के छ दिन बाद शुरू होता है। हिंदू धर्म से जुड़े इस त्योहार को बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। दीपावली के बाद देशभर में छठ के महापर्व की तैयारियां जोर शोर से शुरू हो जाती हैं। छठ हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व में सूर्य भगवान और छठी माता की उपासना की जाती है। यह त्योहार विशेष रूप से स्त्रियों के लिए बेहद खास होता है। सभी स्त्रियां इस दिन अपने बच्चों की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।
यह हिंदू धर्म के सबसे कठिन उपवासों में से एक है। छठ महापर्व पूरे चार दिन का त्योहार है और इसमें महिलायें 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखती हैं। यह त्योहार पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड आदि राज्यों में उत्साह के साथ मनाया जाता है। आस्था से जुड़े इस पर्व में बहुत सारे कठिन नियमों का भी पालन करना होता है। ऐसी मान्यता है कि अगर आप उचित विधि-विधान से छठी माता की पूजा करते हैं तो आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। ये व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति और संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। आइये जानते हैं, छठ के व्रत से जुड़ी कुछ मुख्य बातें, जरूरी नियम और शुभ मुहूर्त ।
छठ व्रत के चार दिनों में नहाय खाय, खरना, संध्या अर्घ और उषा अर्घ्य का विशेष महत्व होता है। सभी लोग इन चार दिनों में सूर्य भगवान और माता छठी की अराधना करते हैं। सूर्य भगवान अपने भक्तों को सुखी परिवार और अच्छी सेहत का आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही यह व्रत माता षष्ठी को भी प्रसन्न करता है जो अपने भक्तों को संतान सुख के साथ-साथ समृद्धि का वरदान देती हैं।
व्रत में कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नहाय खाय होता है। इस दिन, जिन लोगों ने व्रत रखा होता है, वो नदी या तालाब में नहाते हैं। साथ ही अपने व्रत की शुरुआत भी करते हैं। इसके बाद सभी लोग अपने घर में कद्दू की सब्जी, चने की दाल या लौकी की सब्जी बनाते हैं।
व्रत में कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन खरना होता है। इस दिन सुबह अपने शरीर को शुद्ध किया जाता है और शाम को पूजा के बाद गुड़ की खीर का प्रसाद बनाया जाता है। इस दौरान सबसे पहले गुड़ की खीर व पूड़ी का भोग, छठी माता को अर्पित किया जाता है। भोग लगाने के बाद ही यह प्रसाद अन्य लोगों को खिलाया जाता है। इस तरह प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटों का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानि व्रत के तीसरे दिन बिना भोजन किये रहा जाता है। लोग अपने घरों में तरह-तरह के पकवान बनाते हैं और लकड़ी के सूप में रख लेते हैं। इसके बाद सभी लोग शाम को घाट पर एकत्रित होते हैं और नदी में स्नान करते हैं। स्नान के बाद सभी लोग हाथों में सूप लेकर पानी में खड़े होते हैं और सूर्य भगवान व छठी माता को अर्घ्य देते हैं।
कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि के दिन पूजा का चौथा और आखिरी दिन होता है। इस दिन भी लोग अपने-अपने सूपों में पकवान और फल आदि भरकर घाट पर जमा हो जाते हैं। ध्यान रहे कि आप सारी तैयारी सूर्योदय होने से पहले ही कर लें। इस दौरान जिन लोगों ने व्रत रखा होता है, वे पानी में खड़े होकर उगते हुए सूरज को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद लोग छठ पूजा की कथा सुनकर अपना व्रत खोलते हैं।
छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। साल 2022 में छठ पूजा का महापर्व 28 अक्टूबर से शुरू होने जा रहा है।
इस त्योहार में पूजा के लिए कुछ जरूरी सामग्रियों का विशेष ध्यान रखा जाता है। जिसमें बांस की लकड़ी के सूप, दक्षिणा, पूजा थाली, गिलास, माचिस, कपूर, जोतबत्ती, अगरबत्ती, धूपबत्ती, चंदन, दीपक, घी, दूध, जल, चावल, सिंदूर, कुमकुम, चावल, नारियल, हल्दी, सुथनी, पान, सुपारी, अनाज, सफेद फूल, व्रत कथा की किताब और फलों में मीठा नींबू, शरीफा, केला, खजूर, नाशपाती रखा जाता है। इसके साथ ही पकवानों में ठेकुआ, मालपुआ, मिठाई, सूजी का हलवा, पूड़ी और लड्डू आदि रखे जाते हैं।
छठ पर्व के दौरान कुछ ऐसे मंत्र पढ़ें जाते हैं जो आपकी पूजा को सफल बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। इन मंत्रों के उच्चारण से उपासक की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यदि आप अपने घर और परिवार की कुशलता की कामना के लिए छठ का व्रत रखते हैं तो इन मंत्रों का उच्चारण जरूर करें।
अर्घ्य के समय का सूर्य मंत्र
ओम ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर: । ।
ओम सूर्याय नम :, ओम आदित्याय नम :, ओम नमो भास्कराय नम : । अर्घ्य समर्पयामि । ।
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोःस्तु ते। ।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस व्रत से कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि यह त्योहार त्रेतायुग से मनाया जा रहा है। इस त्योहार की शुरुआत भगवान राम और माता सीता द्वारा मानी जाती है। जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद घर लौटे थे, तब उन्होंने माता सीता के साथ सरयू नदी के किनारे जा कर सूर्य देव की उपासना की थी। तब से ही ये त्योहार हमारी परंपरा का अटूट हिस्सा है।
इसके अलावा इस व्रत का महत्व द्वापर युग से भी जुड़ा हुआ है। महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाठ हार गए थे, तब रानी द्रौपदी ने भी षष्ठी माता का उपवास रखा था। द्रौपदी की उपासना से षष्ठी माता ने प्रसन्न होकर उन्हें उनका राजपाठ लौटा दिया था।
इस महापर्व से जुड़ी एक और कथा काफी प्रचलित है। जिसके अनुसार प्रियवर्त नाम के एक राजा हुआ करते थे। उनकी रानी मालिनी की कोई संतान नहीं थी। यह बात राजा को दुखी करती थी। इस कारण राजा ने महर्षि कश्यप से संतान प्राप्ति के लिए एक यज्ञ करवाया। जिसके फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गयीं। परंतु नौ महीने बाद रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस खबर ने राजा को इतना उदास कर दिया कि वह अपने प्राण त्यागने चले गए। उस दौरान राजा के सामने देवी षष्ठी प्रकट हुईं और उन्होंने राजा को समझाया। देवी षष्ठी ने कहा कि यदि वे राजा पूरी श्रद्धा और विधि-विधान के साथ उनकी पूजा करेंगे तो उन्हें जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होगी। देवी की यह बात सुनकर राजा ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि पर देवी षष्ठी की उपासना की। देवी षष्ठी ने प्रसन्न होकर राजा को आशीर्वाद दिया, जिसके फलस्वरूप राजा को एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से ही लोग अपनी संतान की खुशी और लंबी आयु के लिए इस व्रत को धूम-धाम से मनाते हैं।
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✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी