चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान राम का प्राकट्य हुआ तो माता सीता वैशाख शुक्ल नवमी को प्रकट हुई थी। यही कारण है कि हिंदू धर्मानुयायी विशेषकर वैष्णव संप्रदाय इस दिन को व्रत उपवास कर माता सीता, प्रभु श्री राम की आराधना करते हैं और वैशाख शुक्ल नवमी को रामनवमी की तर्ज पर सीतानवमी के रूप में मनाया जाता है। अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार वर्ष 2021 में सीता नवमी 21 मई को है। आइये जानते हैं सीता नवमी व्रतकथा व पूजा विधि के बारे में। सीता नवमी पर प्रभु श्री राम व माता सीता की कृपा कैसे मिलेगी? एस्ट्रोयोगी पर पायें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से गाइडेंस
जनक दुलारी प्रभु राम की प्यारी माता सीता का जन्म वैशाख शुक्ल नवमी को माना जाता है। उन्हें जानकी भी कहा जाता है क्योंकि उनके पिता राजा जनक बताये जाते हैं। पौराणिक ग्रंथों में माता सीता के प्राक्ट्य की कथा कुछ इस प्रकार है।
एक बार मिथिला में भयंकर अकाल पड़ा उस समय मिथिला के राजा जनक हुआ करते थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा थे, धर्म कर्म के कार्यों में बढ़ चढ़ कर रूचि लेते। ज्ञान प्राप्ति के लिये वे आये दिन सभा में कोई न कोई शास्त्रार्थ करवाते और विजेताओं को गौदान भी करते। लेकिन इस अकाल ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया, अपनी प्रजा को भूखों मरते देखकर उन्हें बहुत पीड़ा होती। उन्होंने ज्ञानी पंडितों को दरबार में बुलवाया और इस समस्या के कुछ उपाय जानने चाहे। सभी ने अपनी-अपनी राय राजा जनक के सामने रखी। कुल मिलाकर बात यह सामने आयी कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाकर भूमि जोते तो अकाल दूर हो सकता है। अब अपनी प्रजा के लिये राजा जनक हल उठाकर चल पड़े। वह दिन था वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी का। जहां पर उन्होंने हल चलाया वह स्थान वर्तमान में बिहार के सीतामढी के पुनौरा राम गांव को बताया जाता है। तो राजा जनक हल जोतने लगे। हल चलाते-चलाते एक जगह आकर हल अटक गया, उन्होंने पूरी कोशिश की लेकिन हल की नोक ऐसी धंसी हुई थी कि निकले का नाम ही न लें। लेकिन वह तो राजा थे उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि यहां आस पास की जमीन की खुदाई करें और देखें कि हल की फाली की नोक (जिसे सीता भी कहते हैं) कहां फंसी है। सैनिकों ने खुदाई करनी शुरु की तो देखा कि बहुत ही सुंदर और बड़ा सा कलश है जिसमें हल की नोक उलझी हुई है। कलश को बाहर निकाला तो देखा उसमें एक नवजात कन्या है। धरती मां के आशीर्वाद स्वरूप राजा जनक ने इस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। बताते हैं कि उस समय मिथिला में जोर की बारिश हुई और राज्य का अकाल दूर हो हुआ। जब कन्या का नामकरण किया जाने लगा तो चूंकि हल की नोक को सीता कहा जाता है और उसी की बदौलत यह कन्या उनके जीवन में आयी तो उन्होंने इस कन्या का नाम सीता रखा जिसका विवाह आगे चलकर प्रभु श्री राम से हुआ।
प्रभु श्री राम व माता सीता का विवाह कैसे हुए? पढ़ें
जिस प्रकार राम नवमी को बहुत शुभ फलदायी पर्व के रूप में मनाया जाता है उसी प्रकार सीता नवमी भी बहुत शुभ फलदायी है क्योंकि भगवान श्री राम स्वयं विष्णु तो माता सीता लक्ष्मी का स्वरूप हैं। सीता नवमी के दिन वे धरा पर अवतरित हुई इस कारण इस सौभाग्यशाली दिन जो भी माता सीता की पूजा अर्चना प्रभु श्री राम के साथ करता है उन पर भगवान श्री हरि और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
सीता नवमी व्रत तिथि - 21 मई 2021
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