देवी सीता और प्रभु श्री राम सिर्फ महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण की कहानी के नायक नायिका नहीं थे, बल्कि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वे इस समस्त चराचर जगत के कर्ता-धर्ता भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी का रुप थे जिन्होंनें धर्म की पुनर्स्थापना और मनुष्य जाति के लिये एक आदर्शवादी और मर्यादित जीवन की मिसाल कायम करने के लिये धरती पर मानव अवतार लिया। गृहस्थ जीवन में जब भी आदर्श पति-पत्नी का जिक्र होता है तो आज भी प्रभु श्री राम और माता सीता की मिसाल दी जाती है। माता सीता और प्रभु श्री राम के विवाह के दिन को आज भी उत्सव के रूप में मनाया जाता है। पंडितजी का कहना है कि मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पंचमी ही वह तिथि थी जब प्रभु श्री राम मिथिला में आयोजित सीता स्वयंवर को जीतकर माता सीता से विवाह किया था। इसीलिये इस दिन को विवाह पंचमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2021 में विवाह पंचमी का पर्व 08 दिसंबर को बुधवार के दिन मनाया जाएगा।
यह तो सभी जानते हैं कि प्रभु श्री राम और माता सीता का विवाह स्वयंवर के जरिये हुआ था जिसमें भगवान श्री राम ने शिव धनुष को न सिर्फ उठाया बल्कि प्रत्यंचा चढ़ाते हुए वह टूट भी गया था। लेकिन स्वयंवर का यह किस्सा रामचरित मानस में हैं वाल्मिकी रचित रामायण में स्वंयवर का कोई जिक्र नहीं है। वाल्मिकी रामायण में जो लिखा है उसे सुनकर तो आप चौंक जायेंगें। दरअसल प्रभु श्री राम और माता सीता के विवाह के समय सीता की उम्र केवल 6 वर्ष की थी। वाल्मिकी रामायण में एक जगह माता सीता कहती हैं कि वह विवाह के पश्चात 12 वर्ष तक अयोध्या में सुख चैन से रहीं उसके बाद श्री राम को वनवास मिला तो उस समय प्रभु श्री राम की आयु 25 वर्ष तो उनकी आयु 18 वर्ष की थी।
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इसमें से 12 वर्ष विवाह के पश्चात अयोध्या में बिताये यानि की जब माता सीता और प्रभु श्री राम का विवाह हुआ तो उनकी उम्र 6 साल थी और प्रभु श्री राम 13 वर्षीय किशोर राजकुमार थे। वाल्मिकी ने किसी स्वयंवर का जिक्र नहीं किया है। वाल्मिकी रामायण के अनुसार महर्षि विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण मिथिला पंहुचें थे। विश्वामित्र ने ही महाराजा जनक से प्रभु श्री राम को शिव धनुष दिखाने की कही थी। खेल खेल में प्रभु श्री राम ने वह धनुष उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। महाराजा जनक ने यह प्रण ले रखा था कि जो भी इस धनुष को उठा लेगा सीता का विवाह वह उसी के साथ करेंगें तो इस घटना के पश्चात जनक ने महाराजा दशरथ को बुलावा भेजा और विधिपूर्वक राम और सीता का विवाह संपन्न करवाया।
विवाह पंचमी का दिन धार्मिक दृष्टि से वैसे तो बहुत शुभ माना जाता है लेकिन कई क्षेत्रों में खासकर नेपाल के मिथिला में क्योंकि माता सीता वहीं प्रकट हुई थी, इस दिन बेटियों का विवाह करना शुभ नहीं माना जाता। इसके पीछे लोगों की यही मान्यता है कि विवाहोपरांत सीता को बहुत कष्ट झेलने पड़े थे। वनवास समाप्ति के पश्चात भी उन्हें सुख नहीं मिला और गर्भवती अवस्था में जंगल में मरने के लिये छोड़ दिया गया था। महर्षि वाल्मिकी के आश्रम में ही तमाम दुख:सुख सहते उनकी उम्र बीती। इसी कारण लोग सोचते हैं कि उनकी बेटियों को भी माता सीता की तरह कष्ट न उठाने पड़ें तो इस दिन विवाह नहीं करते। इतना ही नहीं विवाह पंचमी के पर्व को मनाने के लिये यदि कोई कथा का आयोजन भी करता है तो कथा सीता स्वयंवर और प्रभु श्री राम और माता सीता के विवाह संपन्न होने के साथ ही समाप्त कर दी जाती है। इससे आगे की कथा दुखों से भरी है इसलिये इस दिन कथा का सुखांत ही किया जाता है और विवाहोपरांत की कथा नहीं कही जाती।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम-सीता के शुभ विवाह के कारण ही विवाह पंचमी का पर्व अत्यंत पवित्र माना जाता है। भारतीय संस्कृति में राम-सीता आदर्श दम्पत्ति माने गए हैं। इस पावन दिन सभी को राम-सीता की आराधना करते हुए अपने सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए प्रभु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
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