Chhath Puja Vidhi: जानें सूर्य देव और छठी मैया से जुड़ी छठ पूजा की पूरी विधि और नियम

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Chhath Puja Vidhi: जानें सूर्य देव और छठी मैया से जुड़ी छठ पूजा की पूरी विधि और नियम

Chhath Puja Vidhi: क्या आप जानते हैं कि छठ पूजा क्यों भारत के सबसे पवित्र और अनुशासनपूर्ण त्योहारों में गिनी जाती है? यह पर्व सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि श्रद्धा, तपस्या और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में इसे बड़े उत्साह और भक्ति भाव से मनाया जाता है।

क्या आपने कभी सोचा है कि छठ पूजा चार दिनों तक क्यों मनाई जाती है? यह व्रत केवल शारीरिक तपस्या का माध्यम नहीं है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी मार्ग है। इस दौरान व्रती सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करते हैं।

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छठ पूजा विधि (Chhath Puja Vidhi)

क्या आप जानना चाहते हैं कि छठ पूजा की विधि और नियम कैसे जीवन में समृद्धि और सुख ला सकते हैं? हर दिन की अलग-अलग परंपराएं और पूजा विधि व्रती के स्वास्थ्य, मानसिक स्थिरता और आस्था को मजबूत बनाती हैं। आइए विस्तार से जानते हैं छठ पूजा की पूरी विधि और क्रम।

पहला दिन: नहाय-खाय

छठ पूजा का पहला दिन 'नहाय-खाय' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती शुद्धता और सात्विकता के नियमों का पालन करते हुए दिनचर्या शुरू करते हैं।

  1. साफ-सफाई और स्नान: व्रती सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करते हैं। यह स्नान न केवल शारीरिक शुद्धि के लिए होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक तैयारी भी है।

  2. सात्विक भोजन: स्नान के बाद व्रती सात्विक भोजन करते हैं। इसमें लौकी, चावल और हल्का पका हुआ भोजन शामिल होता है। लहसुन, प्याज और मांसाहार का पूर्ण त्याग किया जाता है।

  3. परिवार की तैयारी: घर को साफ-सुथरा करना और पूजा स्थल को सजाना भी इस दिन की प्रमुख क्रियाओं में से है। यह सुनिश्चित करता है कि छठ पूजा की पवित्रता और अनुशासन बना रहे।

नहाय-खाय का दिन व्रती को मानसिक और शारीरिक रूप से उपवास के लिए तैयार करता है। यह दिन भोजन का नियम पालन, आत्मसंयम और स्वच्छता का प्रतीक है।

यह भी पढ़ें: कब किया जाएगा उषा अर्घ्य? जानें महत्व और पूजा-विधि।

दूसरा दिन: खरना

छठ पूजा का दूसरा दिन 'खरना' कहलाता है। यह दिन व्रती के लिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन से निर्जला उपवास की शुरुआत होती है।

  1. निर्जला व्रत का आरंभ: दिनभर व्रती बिना भोजन के रहते हैं। इस दिन पानी भी विशेष नियमों के अनुसार लिया जाता है।

  2. गुड़ और चावल की खीर: शाम को मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाना जरूरी है। इसके साथ रोटी भी तैयार की जाती है।

  3. छठी मैया को भोग: तैयार किए गए प्रसाद को छठी मैया को अर्पित किया जाता है। इसके बाद व्रती स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं।

  4. 36 घंटे का निर्जला व्रत: इस दिन के अंत में 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है, जिसे तीसरे और चौथे दिन तक रखा जाता है।

खरना व्रत व्रती के लिए संयम और तपस्या का प्रतीक है। गुड़ की खीर और रोटी का भोग न केवल शरीर को ऊर्जा देता है, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्व रखता है।

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य

छठ पूजा का तीसरा दिन सबसे चुनौतीपूर्ण और पवित्र माना जाता है। इस दिन व्रती सूर्यास्त से पहले छठ घाट पर पहुंचकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।

  1. निर्जला उपवास: पूरे दिन व्रती पानी और भोजन से परहेज करते हैं। शरीर और मन की शुद्धि के लिए यह उपवास महत्वपूर्ण है।

  2. छठ घाट की तैयारी: शाम को व्रती छठ घाट की ओर जाते हैं। घाट पर साफ-सफाई और पूजा स्थल को सजाना आवश्यक है।

  3. अर्घ्य की विधि: बांस या पीतल की टोकरी (सूप) में फल, फूल, मिठाई, पकवान आदि रखकर सिंदूर और नारियल के साथ डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

  4. सूर्य देव मंत्रों का उच्चारण: अर्घ्य देते समय सूर्य देव के मंत्रों का जप करना चाहिए। यह व्रती की मनोकामनाओं को पूरा करने और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने का माध्यम होता है।

  5. रातभर निर्जला उपवास: सूर्यास्त के बाद व्रती रातभर निर्जला उपवास रखते हैं। यह तपस्या छठ पूजा की सबसे महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है।

संध्या अर्घ्य व्रती के धैर्य और आस्था की परीक्षा है। इस दिन का पालन करने से जीवन में मानसिक स्थिरता, आत्मबल और समृद्धि प्राप्त होती है।

यह भी पढ़ें: जानें खरना पूजा की असली तिथि और पूजा विधि।

चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण

छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन 'उषा अर्घ्य' और व्रत का पारण होता है। यह दिन व्रती के लिए उत्सव और आत्मिक संतोष का दिन होता है।

  1. सूर्योदय से पहले उठना: व्रती सुबह सूर्योदय से पहले उठकर घाट की ओर जाते हैं।

  2. पवित्र स्नान: नदी या जलाशय में स्नान करना अनिवार्य है। यह स्नान शुद्धि और मानसिक ताजगी का प्रतीक है।

  3. अर्घ्य की विधि: उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए कच्चे गाय के दूध और गंगाजल का उपयोग किया जा सकता है। साथ ही फूल, फल और प्रसाद अर्पित किए जाते हैं।

  4. प्रसाद ग्रहण और व्रत खोलना: अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं। यह 36 घंटे के निर्जला व्रत का समापन होता है।

  5. दान और प्रसाद वितरण: व्रत खोलने के बाद प्रसाद को परिवार और जरूरतमंदों में बांटना शुभ माना जाता है। दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और समाज में भाईचारे की भावना बढ़ती है।

उषा अर्घ्य और पारण व्रती के जीवन में न केवल आध्यात्मिक संतोष लाता है, बल्कि समाज और परिवार के साथ सामंजस्य भी स्थापित करता है।

छठ पूजा की विधि के विशेष नियम और सावधानियां (Chhath Puja Ki Vidhi)

छठ पूजा केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मसंयम, तपस्या और आस्था का प्रतीक है। इसे पूर्ण श्रद्धा और नियमों के अनुसार करना चाहिए।

  • सात्विक भोजन का पालन: चारों दिन व्रती शुद्ध और सात्विक भोजन करें।

  • साफ-सफाई: घर और पूजा स्थल को स्वच्छ रखना अनिवार्य है।

  • उपवास का सही पालन: निर्जला व्रत को समय और नियमों के अनुसार रखें।

  • सुरक्षा का ध्यान: जलाशय या नदी किनारे विशेष सावधानी बरतें।

  • दान और सेवा: व्रत के बाद जरूरतमंदों को भोजन और प्रसाद बांटना पुण्यकारी माना जाता है।

छठ पूजा का प्रत्येक नियम और विधि जीवन में अनुशासन, धैर्य और श्रद्धा का संदेश देती है।

यह भी पढ़ें: जानें सूर्य देव भजन का महत्व और लाभ

छठ पूजा भारत की सबसे पवित्र परंपराओं में से एक है। यह चार दिवसीय पर्व व्रती के जीवन में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि लाता है। नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक की यह यात्रा आत्मसंयम, तपस्या और सूर्य देव के प्रति आस्था का प्रतीक है।

छठ पूजा का पालन करने से न केवल जीवन में सुख-समृद्धि आती है, बल्कि समाज और परिवार के बीच भाईचारे और सहयोग की भावना भी बढ़ती है। इस पर्व के दौरान सावधानी और नियमों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि व्रती अपनी श्रद्धा और भक्ति से पूर्ण रूप से लाभान्वित हो सके।

छठ पूजा विधि का पालन करने वाले व्रती अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और मानसिक शांति का अनुभव करते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान है।

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