
Diwali Puja Vidhi: क्या आपने कभी सोचा है कि दीपावली की रात सिर्फ दीपों की रोशनी भर नहीं, बल्कि दिव्य ऊर्जाओं का स्वागत भी होती है? जब घर के हर कोने में दिया जलता है, तो वह न केवल अंधकार मिटाता है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर, देवी लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त करता है।
कार्तिक अमावस्या की यह रात हर गृहस्थ के लिए विशेष होती है क्योंकि इस दिन लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा करने से स्थिर धन, सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
साल 2025 में दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई जा रही है, और इस बार का योग बेहद शुभ माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, प्रदोषकाल में स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करने से दीर्घकालिक सुख-समृद्धि मिलती है। आइए जानते हैं — दिवाली की संपूर्ण लक्ष्मी गणेश कुबेर पूजा विधि, आवश्यक सामग्री और मंत्र।
पूजा से पहले सभी आवश्यक सामग्रियों को एकत्र कर लें ताकि विधि में कोई बाधा न आए।
कलावा, रोली, कुमकुम, सिंदूर
एक नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र
फूल, पांच सुपारी, लौंग, पान के पत्ते
घी, कलश, आम का पल्लव, चौकी
हवन सामग्री, समिधा, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल)
फल, बताशे, मिठाई, दीपक, रूई, अगरबत्ती, इत्र
आरती थाली, कुशा, रक्तचंदन, श्रीखंड चंदन
पूजा स्थल की सफाई कर लें और उसे रंगोली से सजाएं।
जिस चौकी पर पूजन करना है, उसके चारों कोनों पर दीपक जलाएं।
चौकी पर कच्चे चावल रखें और उस पर गणेश जी, लक्ष्मी जी और कुबेर जी की प्रतिमाएं विराजमान करें।
यदि आपके पास सरस्वती या काली माता की प्रतिमाएं हैं, तो उन्हें भी साथ में रखें।
याद रखें — लक्ष्मी जी की पूजा, भगवान विष्णु के बिना अधूरी मानी जाती है। इसलिए भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को उनके साथ रखें।
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पूजन शुरू करने से पहले स्वयं को शुद्ध करें और यह मंत्र बोलें:
“ऊं अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥”
इसके बाद तीन बार जल छिड़कें, फिर आचमन करें:
“ऊं केशवाय नमः, ऊं माधवाय नमः, ऊं नारायणाय नमः।”
अब आसन शुद्धि मंत्र बोलें:
“ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥”
संकल्प लिए बिना कोई भी पूजन अधूरा माना जाता है। इसलिए हाथ में फूल, अक्षत और जल लेकर यह मंत्र बोलें:
“ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया...
(यहां अपने गोत्र, नाम और नगर का नाम लें)...
सर्वमंगलकामनया स्थिर लक्ष्मी पूजनं करिष्ये।”
कलश पर मौली (राखी) बांधें और उसके ऊपर आम के पत्ते रखें।
कलश में सुपारी, दूर्वा, अक्षत और एक सिक्का डालें।
नारियल पर लाल वस्त्र लपेटकर कलश पर रखें।
अब वरुण देव का आह्वान करें —
“ओम् भूर्भुवः स्वः वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ, स्थापयामि पूजयामि।”
सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें, क्योंकि वे विघ्नहर्ता हैं।
ध्यान मंत्र:
“गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थजम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं, नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्॥”
इसके बाद आवाहन मंत्र बोलें:
“ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।”
फिर गणेश जी को चंदन, सिन्दूर, दूर्वा और लाल वस्त्र अर्पित करें।
“इदं रक्त चंदनं लेपनं ऊं गं गणपतये नमः।”
मिठाई और नैवेद्य अर्पित करते हुए बोलें:
“इदं नैवेद्यं ऊं गं गणपतये नमः।”
अंत में पुष्प अर्पित करें:
“एषः पुष्पांजलिः ऊं गं गणपतये नमः।”
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गणेश पूजन के बाद भगवान कुबेर का आह्वान करें।
मंत्र:
“ऊं कुबेराय नमः, धनाध्यक्षाय नमः, वैश्रवणाय नमः।”
कुबेर जी को चावल, फूल और धूप-दीप अर्पित करें।
यह पूजा धन स्थिरता और व्यापार में वृद्धि के लिए की जाती है।
“ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुलकटितटी पद्मदलायताक्षी।
गम्भीरावर्तनाभिः, शुभ्रवस्त्रोत्तरीया, लक्ष्मीः मम गृहे वसतु सर्वमांगल्ययुक्ता॥”
“ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुहवासितैः, स्नानं कुरुष्व देवेशि।”
अब चंदन और सिन्दूर अर्पित करें —
“इदं रक्त चंदनं, इदं सिन्दूराभरणं ऊं लक्ष्म्यै नमः।”
फूल और माला अर्पित करते हुए कहें:
“ॐ मन्दारपारिजाताद्यैः कुसुमैः पूजयामि, कमलायै नमः।”
लाल वस्त्र समर्पित करें —
“इदं रक्त वस्त्रं ऊं महालक्ष्म्यै समर्पयामि।”
हाथ में अक्षत लेकर प्रत्येक अंग पर थोड़ा-थोड़ा अर्पण करें —
ऊं चपलायै नमः — पाद पूजन
ऊं कमलायै नमः — कटि पूजन
ऊं जगन्मातरे नमः — जठर पूजन
ऊं विश्ववल्लभायै नमः — वक्षस्थल पूजन
ऊं कमलपत्राक्ष्यै नमः — नेत्र पूजन
ऊं श्रियै नमः — शिर पूजन
अष्टसिद्धि मंत्र:
“ऊं अणिम्ने नमः, ऊं महिम्ने नमः, ऊं गरिम्णे नमः, ऊं लघिम्ने नमः, ऊं प्राप्त्यै नमः, ऊं प्राकाम्यै नमः, ऊं ईशितायै नमः, ऊं वशितायै नमः।”
अष्टलक्ष्मी मंत्र:
“ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नमः, ऊं विद्यालक्ष्म्यै नमः, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नमः, ऊं अमृत लक्ष्म्यै नमः, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नमः, ऊं भोग लक्ष्म्यै नमः, ऊं योग लक्ष्म्यै नमः।”
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लक्ष्मी पूजन के बाद नैवेद्य अर्पित करें —
“इदं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्म्यै समर्पयामि।”
फिर आचमन कराएं और पान-सुपारी चढ़ाएं।
“इदं ताम्बूलं ऊं महालक्ष्म्यै नमः।”
पूजन पूर्ण होने पर लक्ष्मी, गणेश और विष्णु जी की आरती करें। व्यापारी वर्ग अपने गल्ले या तिजोरी की पूजा भी इस समय करते हैं ताकि वर्षभर धन प्रवाह बना रहे।
दीवाली सिर्फ दीपक जलाने का पर्व नहीं, बल्कि एक आत्मशुद्धि का अवसर है। जब हम गणेश जी की पूजा करते हैं, तो बाधाओं को दूर करते हैं। लक्ष्मी जी की आराधना से सुख और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है, और कुबेर की कृपा से धन स्थिरता बनी रहती है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि सच्ची लक्ष्मी केवल धन नहीं, बल्कि संतुलित जीवन, परिवार का प्रेम, और आत्मसंतोष है। इसलिए पूजा के बाद परिवार के साथ समय बिताएं, दीपक जलाएं और घर में प्रेम का प्रकाश फैलाएं।
दिवाली की रात जब चारों ओर दीप जलते हैं, तो वह केवल रोशनी नहीं, बल्कि आशा का प्रतीक होती है। शास्त्रों में कहा गया है — “दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूतये।” अर्थात, दीपक अंधकार को नष्ट कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है।
इस दिवाली, केवल बाहरी दीप ही नहीं, अपने मन के भीतर भी एक दीप जलाएं — श्रद्धा, प्रेम और कृतज्ञता का। जब मन का अंधकार मिटेगा, तभी सच्ची लक्ष्मी आपके जीवन में स्थायी रूप से निवास करेंगी।