हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। अलग अलग क्षेत्रों में अलग-अलग देवी देवताओं की पूजा की जाती है उत्सव मनाये जाते हैं। उत्तर भारत में जहां सावन व फाल्गुन में शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का पर्व कई दिनों तक चलता है तो भाद्रपद माह में महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की धूम होती है। गुजरात, राजस्थान और लगभग पूरे उत्तरी भारत में जहां चैत्र एवं आश्विन मास में नवरात्रि पूजा का आयोजन होता है तो वहीं बंगाली क्षेत्र में आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी से दशमी तक दुर्गा पूजा का उत्सव चलता है। जिस प्रकार गणेश प्रतिमा की स्थापना कर दस दिनों के पश्चात उसका विसर्जन किया जाता है इसी प्रकार दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन भी किया जाता है। वैसे दुर्गा पूजा का यह उत्सव प्रसिद्ध तो पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों में है लेकिन वर्तमान में लगभग पूरे देश में ही इस उत्सव को मनाया जाता है। आइये जानते हैं दुर्गा पूजा के इस पर्व के बारे में।
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पंडितजी की माने तो दुर्गा पूजा बंगाल में हिंदूओं का खास व काफी बड़े स्तर पर मनाया जाने वाला उत्सव है। दुर्गा पूजा की तैयारियां महीने भर पहले से ही शुरु होने लगती हैं। इस पर्व में पंडाल लगाकर उन्हें सजाया जाता है इसमें मां दुर्गा की प्रतिमा भी रखी जाती हैं। इसके पश्चात अलग-अलग पंडालों का आकलन किया जाता है व सबसे रचनात्मक, सबसे बेहतर, सजावटी पंडाल को पुरुस्कृत किया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं। इस अवसर पर समस्त महिला पुरुष अपने पारंपरिक परिधान पहनते हैं। मान्यता है कि राजा-महाराजाओं के समय तो यह पूजा और भी बड़े स्तर पर आयोजित की जाती थी।
दुर्गा पूजा के समय उत्तरी भारत में नवरात्र मनाये जाते हैं तो साथ ही दशमी के दिन रावण पर श्री राम की विजय का त्यौहार दशहरा या कहें विजयदशमी मनाया जाता है। उत्तर भारत में इन दिनों में रामलीलाओं के मंचन किये जाते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों का नज़ारा अलग ही होता है। दरअसल यहां भी इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के कारण ही इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इस बारे में कथा भी मिलती है जो कुछ इस प्रकार है।
बहुत समय पहले की बात है। देवताओं और असुरों में स्वर्ग के राज्य को लेकर युद्ध होते रहते थे। देवता हर बार असुरों को हराने का कोई न कोई उपाय निकाल लेते थे। लेकिन एक बार महिषासुर नामक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा की कड़ी तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने वरदान मांगने को कहा। इस पर महिषासुर ने अमरदा प्रदान करने का वरदान देने की इच्छा जताई। लेकिन ब्रह्मा जी बोले कि मैं तुम्हें अमरता तो प्रदान नहीं कर सकता लेकिन इतना कर सकता हूं कि तुम्हारी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों हों। अब महिषासुर यह सुनकर भी खुश हो गया और ब्रह्मा जी के इस वरदान को स्वीकार कर लिया उसने अनुमान लगाया कि ऐसी कोई स्त्री संसार में नहीं है जो मुझसे बलिष्ठ हो या जो मुझे हरा सके। जैसा कि असुर अक्सर करते थे वरदान पाकर निश्चिंत हो जाते और देवताओं पर चढ़ाई कर देते। महिषासुर ने भी वैसा ही किया जल्द ही समस्त देवताओं पर विपदा आन पड़ी। सभी त्रिदेव के पास अपना संकट लेकर पंहुचे। तब भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश ने अपनी शक्तियों से शक्ति की देवी दुर्गा को जन्म दिया और महिषासुर का संहार करने को कहा। तब महिषासुर और दुर्गा में भयंकर युद्ध चला आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को महिषासुर को मां दुर्गा ने मार गिराया। तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के उत्सव और शक्ति की उपासना के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
दुर्गा पूजा का उत्सव प्रतिपदा से लेकर दशमी तिथि तक मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष विजयादशमी 25 अक्तूबर 2020 को मनाया जाएगा। अत: दुर्गा पूजा का उत्सव 17 अक्तूबर, 2020 से 25 अक्तूबर 2020 तक मनाया जायेगा।
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