
Ganesh Ji Sund Disha: भगवान गणेश को हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। किसी भी शुभ काम या पूजा की शुरुआत सबसे पहले गणपति बाप्पा की आराधना से होती है। ऐसा विश्वास है कि भगवान श्री गणेश की कृपा से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं और सफलता के द्वार खुलते हैं। यही कारण है कि अधिकतर लोग अपने घर के मंदिर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश जी की मूर्ति में सूंड किस दिशा में मुड़ी होनी चाहिए, यह भी बहुत मायने रखता है? आमतौर पर लोग बाईं ओर मुड़ी सूंड वाली मूर्ति ही घर में रखते हैं, लेकिन कुछ मूर्तियों में सूंड दक्षिण दिशा यानी दाईं ओर मुड़ी होती है। ऐसे में सवाल उठता है कि किस दिशा में सूंड होना शुभ होता है और किसमें अशुभ संकेत मिलते हैं? आइए जानते हैं गणेश जी की सूंड दिशा के महत्व के बारे में।
जब भी आप अपने घर में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उनकी सूंड बाईं ओर यानी बाएं हाथ की तरफ मुड़ी हो। मान्यता है कि इस प्रकार की मूर्ति से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। यह इड़ा नाड़ी से जुड़ी होती है जो चंद्रमा से प्रभावित होती है और शांति, स्थिरता, समृद्धि, रचनात्मकता और सुख-संपत्ति प्रदान करती है। ऐसी मूर्ति घर के वातावरण को सौम्य और शुभ बनाए रखती है। अगर आप चाहें तो सीधी सूंड यानी सामने की ओर मुड़ी सूंड वाली मूर्ति भी रख सकते हैं, जो रिद्धि-सिद्धि और मानसिक संतुलन में सहायक मानी जाती है।
गणेश जी की मूर्तियों में सूंड तीन दिशाओं में मुड़ी हुई मिलती है—बाईं ओर, दाईं ओर और सामने की ओर।
बाईं ओर सूंड: यह सबसे सामान्य और शुभ मानी जाती है। यह इड़ा नाड़ी का प्रतीक है और चंद्रमा से जुड़ी होती है। ऐसे स्वरूप की पूजा से शिक्षा, विवाह, संतान सुख, धन, व्यापार और पारिवारिक जीवन में सफलता मिलती है।
दाहिनी ओर सूंड: इसे पिंगला स्वर कहा जाता है और यह सूर्य से प्रभावित होता है। यह स्वरूप अधिक उग्र और शक्तिशाली होता है। इसकी पूजा बहुत विधिपूर्वक करनी चाहिए। सामान्यतः इसे मंदिरों में रखा जाता है क्योंकि घर में इसकी पूजा में गलती हो जाए तो दुष्परिणाम हो सकते हैं।
सीधी सूंड: इसे सुषुम्ना स्वर का प्रतीक माना गया है। यह मोक्ष, समाधि, कुंडलिनी जागरण और आत्मज्ञान का प्रतीक होता है। संत और तपस्वी इस स्वरूप की पूजा करते हैं।
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अगर गणेश जी की सूंड बाईं ओर हो तो यह सौम्यता और चंद्रमा से जुड़ी शीतलता का प्रतीक है। इड़ा नाड़ी का संबंध मानसिक शांति, स्थायित्व और गृह सुख से होता है। जब आप बाईं नाक से सांस लेते हैं, तो माना जाता है कि इड़ा नाड़ी सक्रिय है, जो दिन को शांतिपूर्ण बनाती है। ऐसी मूर्ति घर में रखने से सुख-शांति, संतुलन और सकारात्मकता बनी रहती है।
जब गणेश जी की मूर्ति की सूंड दाईं ओर होती है, तो इसे 'दक्षिणावर्ती' मूर्ति कहा जाता है। यह पिंगला नाड़ी का प्रतिनिधित्व करती है, जो सूर्य की ऊर्जा से प्रेरित होती है। दाहिने स्वर के जागरण का मतलब है कि व्यक्ति आज ऊर्जावान रहेगा। यह मूर्ति शक्ति, विजय, संकट निवारण और उग्र साधना के लिए उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन ध्यान रखें कि इस मूर्ति की पूजा विशेष नियमों के तहत ही करनी चाहिए, वरना इसके विपरीत परिणाम हो सकते हैं। यही कारण है कि सिद्धि विनायक मंदिर जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में ही इस स्वरूप की पूजा होती है।
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अगर आप अपने घर में गणेश जी की मूर्ति रखना चाहते हैं, तो बाईं ओर मुड़ी सूंड वाली मूर्ति सबसे उत्तम मानी जाती है। यह शांति, सुख और समृद्धि प्रदान करती है। यदि आप साधना या विशेष कार्यों के लिए मूर्ति स्थापित कर रहे हैं तो एस्ट्रोलॉजर से सलाह लेकर दाहिनी या सीधी सूंड वाली मूर्ति का चयन करें। गणेश जी की सूंड की दिशा केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि ऊर्जा और भावनाओं का संचार भी है। इसीलिए मूर्ति का चयन सोच-समझकर करें और विधिवत पूजा करें, ताकि भगवान गणेश की कृपा सदैव बनी रहे।
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