गंगा दशहरा पर कब करें माँ गंगा की पूजा, जानें

Wed, Jun 08, 2022
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गंगा दशहरा पर कब करें माँ गंगा की पूजा, जानें

Ganga Dussehra 2022: गंगा दशहरा का पर्व हिन्दुओं का पवित्र त्यौहार है जो हर साल बेहद आस्था से मनाया जाता है। गंगा दशहरा पर कैसे और किस मुहूर्त में करें पूजन? कब मनाया जाएगा गंगा दशहरा 2022? जानने के लिए पढ़ें।  

हिमालय की पर्वत श्रृंखला से निकली गंगा की पवित्र धारा युगों-युगों से मानव जीवन का कल्याण करती आयी है। गंगा मैया ने भारत देश को अपने चरण कमलों से पवित्र कर दिया है। हमारे देश में गंगा सिर्फ नदी नहीं हैं, बल्कि आस्था का केंद्र है। हिन्दुओं का कोई भी धार्मिक अनुष्ठान गंगा जल के बिना पूरा नहीं माना जाता हैं, और इस दिन पवित्र जल में डुबकी इंसान को उसके समस्त पापों से मुक्ति प्रदान करती हैं। इस पवित्र नदी को समर्पित हैं गंगा दशहरा है, आइये जानते हैं इस त्यौहार के बारे में।  

2022 में कब है गंगा दशहरा?

देवी गंगा के प्रति श्रद्धा एवं आस्था व्यक्त करने के लिए भारत में हिन्दुओं द्वारा मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह दिन गंगावतरण के रूप में भी अत्यंत लोकप्रिय है। हिंदू पंचांग 2022 के अनुसार, हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि या दसवें दिन गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह दिन प्रतिवर्ष मई या जून के महीने में आता है।

2022 गंगा दशहरा पूजा तारीख व समय 

गंगा दशहरा 2022 की तिथि: 9 जून, गुरुवार

  • दशमी तिथि का प्रारंभ: 09 जून को प्रातःकाल 08 बजकर 21 मिनट
  • दशमी तिथि की समाप्ति: 10 जून को प्रातःकाल 07 बजकर 25 मिनट
  • हस्त नक्षत्र का प्रारंभ: 09 जून को प्रातःकाल 04 बजकर 31 मिनट 
  • हस्त नक्षत्र की समाप्ति:10 जून को प्रातःकाल 04 बजकर 26 मिनट
  • व्यतीपात योग का प्रारंभ: 09 जून को प्रातःकाल 03 बजकर 27 मिनट
  • व्यतीपात योग की समाप्ति: 10 जून को प्रातः काल 01 बजकर 50 मिनट 

क्यों है गंगा दशहरा का विशेष महत्व?

  • हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, गंगा दशहरा के अवसर पर गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ था। यही वजह है कि गंगा दशहरा के दिन को महापुण्य कारी पर्व के रूप में मनाने का प्रचलन पौराणिक काल से ही चला आ रहा है। 
  • गंगा दशहरा के पर्व पर मोक्षदायिनी मां गंगा की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। गंगा दशहरा पर किसी भी पवित्र नदी में स्नान और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व माना गया है। 
  • गंगा दशहरा का दिन पवित्र गंगा की क्षमता से मनुष्य के पापों को शुद्ध करने को दर्शाता है जो भाषण, कार्यों और विचारों से जुड़ा हुआ हैं। 
  • ऐसा मान्यता है कि जब भक्त गंगा दशहरा के दिन देवी गंगा की आराधना करते हैं, तो उन्हें इस जन्म और पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति मिलने के साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती हैं। 
  • गंगा दशहरा के दिन को नया घर खरीदने, वाहन, निवेश करने आदि खरीदने और नए घर में प्रवेश करने के लिए अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।

कैसे करें माँ गंगा की पूजा?

  1. गंगा दशहरा के दिन सूर्योदय से पूर्व प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत्त करने के बाद गंगा के पवित्र जल में स्नान करना चाहिए।
  2. अगर आप गंगा नदी में स्नान करने में असमर्थ है, तो आप अपने घर के पास किसी नदी या तालाब में स्नान कर सकते है।  
  3. सुबह स्नान करने के बाद सूर्योदय के समय एक लोटे में जल लेकर थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। 
  4. अब देवी गंगा का ध्यान करते समय माँ गंगा के मंत्रों का जाप करना चाहिए। 
  5. "ॐ श्री गंगे नमः" मंत्र का उच्चारण करते हुए मां गंगा का ध्यान करें। 
  6. देवी गंगा की पूजा और मंत्र जाप के बाद मां गंगा की आरती करें। 
  7. ब्राह्मण, निर्धन और जरूरतमंद लोगों को अपनी क्षमता के अनुसार दान करना चाहिए। 

कौनसे रीति-रिवाज किये जाते है गंगा दशहरा के दिन?

गंगा दशहरा के दिन भक्तों एवं श्रद्धालुओं द्वारा अनेक प्रकार के रीति-रिवाज और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जाते हैं जैसे

  • इस दिन पवित्र गंगा नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता हैं।
  • संध्या के समय, सभी भक्त देवी के आशीर्वाद के लिए गंगा आरती भी करते हैं। 
  • गंगा दशहरा के अवसर पर पवित्र नदी को फूल, दीया, सुपारी, फल और मिठाई आदि अर्पित की जाती हैं।
  • इस दिन गंगा के तट पर भक्त ध्यान भी करते हैं।

गंगा दशहरा की कथा

प्राचीनकाल में राजा सगर ने अपनी उत्कृष्टता को साबित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। भगवान इंद्र यज्ञ के परिणामों से चिंतित हो गए और उन्होंने अश्वमेध यज्ञ के घोड़ों को चोरी कर लिया जिससे यज्ञ पूरा न हो सके। इंद्र ने महर्षि कपिला के आश्रम में घोड़ों को छोड़ दिया। जब राजा सगर और उनके पुत्रों को इस बात का पता चला, तो उन्होंने ऋषि कपिला को घोड़ों को चोरी करने वाला व्यक्ति समझ लिया। राजा के सभी पुत्र क्रोधित होकर ऋषि पर आक्रमण करने वाले थे, इससे पहले ही ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया जिसके परिणामस्वरूप, वे सभी भस्म हो गए।

इस पूरी घटना के बारे में जानने के बाद ऋषि कपिला ने राजा सगर के पौत्र आयुष्मान को घोड़े लौटा दिए। उन्होंने ऋषि से अपना श्राप वापस लेने का आग्रह किया। इसके लिए, ऋषि कपिला ने कहा कि वे अपने श्राप से तभी मुक्ति पा सकते हैं जब माता गंगा स्वयं धरती पर आकर सभी को अपने जल से शुद्ध करेगी।

इसके बाद, भागीरथ जो राजा के उत्तराधिकारियों में से एक थे, उन्होंने अपने पूर्वजों की आत्माओं की शुद्धि के लिए घोर तपस्या की। वह इस बारे में अच्छे से जानते थे कि सिर्फ माँ गंगा ही उन्हें पवित्र करने का सामर्थ्य रखती है। युगों तक, भागीरथ के कठोर तप करने के बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित होकर आपकी मदद करेंगी।

एक बड़ी समस्या ये थी कि देवी गंगा का वेग इतना प्रबल था कि यह पूरी धरती को नष्ट कर सकती थी। भागीरथ को ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से अपनी जटाओं में गंगा को धारण करने का अनुरोध करने के लिए कहा, क्योंकि समस्त संसार में वह एकमात्र ऐसे भगवान हैं जो गंगा के प्रवाह को नियंत्रित कर सकते हैं। भागीरथ की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव सहमत ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया, और इस प्रकार पृथ्वी पर देवी गंगा प्रकट हुई।

लेखक की दृष्टि से: माँ गंगा को जीवनदायिनी माना गया गया है जो अपने पवित्र जल से लाखों-करोड़ों प्राणियाँ, जीव-जंतुओं को जीवन प्रदान करती है। गंगा मैया के प्रति अपनी अपनी श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था प्रकट करने का उत्सव है गंगा दशहरा।  

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✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी

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