भारत एक विविध सभ्यताओं एवं संस्कृतियों वाला देश है जहां अनेक धर्मों के त्यौहार और पर्वों को अत्यंत उत्साह के साथ मनाया जाता है। ऐसे ही विशिष्ट पर्वों में से एक गुड़ी पड़वा है, जिसे लोग बहुत ही आस्था एवं श्रद्धाभाव से मनाते है। गुड़ी पड़वा मराठी और कोंकणी समाज के हिन्दुओं का पांरपरिक पर्व है। गुड़ी पड़वा का त्यौहार देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है अतः ये कहा जा सकता है ये पर्व अपना विशेष महत्व रखता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष चैत्र माह के प्रथम दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जब किसान रबी फसलों की कटाई करते हैं, तो इसे हिंदू नववर्ष का आरम्भ माना जाता हैं। गुड़ी पड़वा को चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है।
गुड़ी पड़वा की तिथि: 02 अप्रैल 2022 (शनिवार)
मराठी शक सम्वत 1944 प्रारम्भ
प्रतिपदा तिथि का आरम्भ: 01 अप्रैल 2022 को दोपहर 03:23 बजे
प्रतिपदा तिथि की समाप्ति: 02 अप्रैल 2022 को दोपहर 03:28 बजे
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हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, गुड़ी पड़वा के पर्व को महाराष्ट्रीयन नववर्ष के उत्सव का प्रतीक माना जाता है। इस दिन को दक्षिण भारतीय राज्यों में फसल दिवस के रूप में मनाने का प्रचलन है जो वसंत ऋतु के शुरुआत को दर्शाता है। इस दिन अनेक प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किये जाते हैं जिसका प्रारम्भ सूर्योदय के साथ ही हो जाता है और ये पूरे दिन निरंतर चलते हैं।
गुड़ी पड़वा के दिन का अपना विशेष धार्मिक महत्व है और इस दिन भगवान ब्रह्मा की पूजा-अर्चना करने का विधान हैं, जिन्हें सृष्टि के परम रचियता माना गया हैं। शास्त्रों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने गुड़ी पड़वा के दिन ही ब्रह्मांड का निर्माण किया था। महाराष्ट्र राज्य में गुड़ी पड़वा की अलग ही भव्यता, उत्साह और रौनक देखने को मिलती है।
इस त्यौहार के संबंध में माना जाता है कि गुड़ी पड़वा मनुष्य जीवन से समस्त बुराईयों को दूर करता है, साथ ही सौभाग्य एवं समृद्धि को भी बढ़ावा देता है। इस पर्व को आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में उगाड़ी के रूप में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा को शुभ दिन माना गया है जिसका आरम्भ चैत्र नवरात्रि से होता है।
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साल में हर 32 मास, 16 दिन तथा 8 घटाें के बाद अधिक मास जोड़ा जाता है। अधिक मास लगने की स्थिति के बावजूद प्रतिपदा के दिन ही नव संवत्सर का आरंभ माना जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण है कि अधिक मास को भी मुख्य महीने का ही अभिन्न अंग माना जाता है इसलिए चैत्र के अलावा अधिक मास को भी नव संवत्सर का भाग मानते हैं।
गुड़ी पड़वा के दिन निम्नलिखित अनुष्ठानों को किया जाता है जो इस प्रकार हैं–
गुड़ी पड़वा एक अत्यंत शुभ अवसर है जो शाकास पर हूणों की विजय को दर्शाता है। गुड़ी पड़वा से जुड़ीं पौराणिक मान्यता और शालिवाहन शक के अनुसार, गुड़ी पड़वा के दिन राजा शालिवाहन ने हूणों को पराजित किया था। ऐसा कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा ही वह दिन है जब भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की और इस प्रकार इस दिन से ही सतयुग की शुरुआत हुई।
✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी