क्या आपने कभी सोचा है कि छठ पूजा में सिले हुए कपड़े पहनना वर्जित क्यों माना जाता है? छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि शुद्धता, अनुशासन और आस्था का जीवंत उदाहरण है। इस दौरान व्रती महिलाएं हर नियम को बेहद श्रद्धा से निभाती हैं — चाहे वह प्रसाद तैयार करने का तरीका हो या वस्त्र धारण करने की परंपरा। इस पर्व की हर परंपरा के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक अर्थ छिपा है।
क्या छठ पूजा में रंगों का भी कोई विशेष महत्व होता है? जी हां, रंग इस पर्व का एक अहम हिस्सा हैं। लाल, पीला, नारंगी और हरा रंग शुभता, ऊर्जा और सकारात्मकता के प्रतीक माने जाते हैं, जबकि काला रंग अशुभ और वर्जित माना गया है। हर रंग में सूर्य देव और छठी मैया के प्रति श्रद्धा और प्रकाश का सुंदर संदेश छिपा होता है।
छठ पूजा को “शुद्धता का पर्व” कहा जाता है। इसलिए व्रती महिलाओं के लिए यह आवश्यक होता है कि वे साफ-सुथरे, बिना सिले और शुद्ध कपड़े पहनें। यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण हैं।
छठ पर्व में यह माना जाता है कि व्रती महिला या पुरुष अपने शरीर, मन और आत्मा — तीनों को शुद्ध रखे। सिले हुए कपड़े किसी व्यक्ति के “मानव-निर्मित” हस्तक्षेप का प्रतीक माने जाते हैं, जबकि बिना सिले कपड़े “प्राकृतिक और शुद्धता” के प्रतीक हैं। इसीलिए छठ पूजा के दौरान व्रती महिलाएं बिना सिले सूती या रेशमी वस्त्र (साड़ी या धोती) धारण करती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, सिलाई का काम लोहे की सुई से किया जाता है, और लोहे का स्पर्श इस व्रत की पवित्रता को भंग कर सकता है। इसलिए व्रती महिलाएं इन दिनों सिले हुए कपड़े पहनने से बचती हैं। यहां तक कि ब्लाउज भी नहीं पहना जाता।
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छठ पूजा में सिले हुए कपड़े पहनने को वर्जित माना गया है क्योंकि यह “मनुष्य द्वारा बनाए गए कृत्रिम स्वरूप” का प्रतीक होते हैं। पूजा के समय उद्देश्य यह रहता है कि हर वस्तु प्रकृति के जितना निकट हो सके, उतना अच्छा है।
पहला कारण: सुई और धागे से सिले कपड़े को “कृत्रिम” माना गया है।
दूसरा कारण: सिलाई में लोहे का प्रयोग होता है, और लोहे का स्पर्श छठ पूजा की पवित्रता को नष्ट करने वाला माना गया है।
तीसरा कारण: बिना सिले कपड़े पवित्रता और सादगी का प्रतीक हैं, जो इस पर्व का मूल सिद्धांत है।
इसीलिए व्रती महिलाएं इस दिन बिना सिले सूती या रेशमी साड़ी पहनती हैं। इसका उद्देश्य सिर्फ परंपरा निभाना नहीं, बल्कि अपने मन को पूरी तरह से ईश्वर भक्ति में समर्पित करना होता है।
छठ पूजा में रंगों का बहुत बड़ा महत्व है। हर रंग का अपना धार्मिक और भावनात्मक अर्थ होता है। इस पर्व में व्रती महिलाएं उज्ज्वल और पवित्र रंगों के वस्त्र पहनती हैं, जैसे —
लाल रंग: यह ऊर्जा, शक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
पीला रंग: सूर्य देव का प्रिय रंग माना जाता है, जो सकारात्मकता और पवित्रता दर्शाता है।
नारंगी रंग: यह रंग आशा, विश्वास और उत्साह का प्रतीक है।
हरा रंग: जीवन, समृद्धि और नई शुरुआत का द्योतक है।
ये सभी रंग छठी मैया की कृपा प्राप्त करने और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए शुभ माने जाते हैं।
छठ पूजा के दौरान काले रंग के कपड़े पहनना सख्त मना है। धार्मिक दृष्टि से काला रंग नकारात्मक ऊर्जा और अपवित्रता का प्रतीक माना गया है। यह सूर्य देव के उजाले और प्रकाश के विपरीत है, इसलिए इस दिन काला रंग धारण नहीं किया जाता।
अगर किसी के कपड़ों पर हल्का भी काला धब्बा या दाग हो, तो उसे पहनना अनुचित माना जाता है। माना जाता है कि यह व्रत की पवित्रता को भंग कर सकता है। इसलिए छठ पूजा के दौरान कपड़ों का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि उनमें काला रंग या कोई भी गंदगी न हो।
छठ पूजा में कपड़ों को लेकर सावधानी और पवित्रता दोनों का पालन आवश्यक है। व्रती महिलाएं आमतौर पर पूजा से एक दिन पहले ही अपने वस्त्र धोकर सुखा लेती हैं ताकि उनमें कोई अशुद्धि न रहे।
कपड़े हमेशा नए या पवित्र किए हुए होने चाहिए।
कपड़ों को शुद्ध जल से धोकर ही पहना जाना चाहिए।
कपड़े पहनने से पहले हाथ और पैर अच्छी तरह से धोएं, क्योंकि व्रत का हर पल शुद्धता का प्रतीक है।
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छठ पूजा में सूती और सिल्क की साड़ियां पहनना शुभ माना गया है। सूती कपड़े सांस लेने योग्य और प्राकृतिक होते हैं, जो तपस्या और संयम का प्रतीक हैं। वहीं, सिल्क के वस्त्र परंपरा और भव्यता को दर्शाते हैं।
व्रती महिलाएं आमतौर पर हल्के रंगों की साड़ियां चुनती हैं ताकि सूर्य अर्घ्य के समय उनका शरीर सूर्य की रोशनी से आभामय दिखे। ये रंग वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा भरते हैं और मानसिक शांति प्रदान करते हैं।
छठ पूजा केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि और अनुशासन का प्रतीक है। इसलिए व्रती को अपने वस्त्र, प्रसाद, जल और आचरण — हर चीज में सादगी और शुद्धता रखनी चाहिए। कपड़ों का चुनाव करते समय हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि –
वे साफ, बिना सिले और बिना दाग वाले हों।
रंगों में लाल, पीला, हरा और नारंगी प्रमुख हों।
कपड़ों पर कोई भारी डिज़ाइन, चमकदार कढ़ाई या काला धब्बा न हो।
इन छोटे-छोटे नियमों से न केवल व्रत की पवित्रता बनी रहती है, बल्कि यह भक्त और देवी के बीच गहरी आस्था का बंधन भी मजबूत करता है।
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छठ पर्व सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि अनुशासन, श्रद्धा और आत्म-नियंत्रण की मिसाल है। इस पर्व में कपड़ों का महत्व सिर्फ बाहरी साज-सज्जा तक सीमित नहीं, बल्कि यह मन की शुद्धता और भक्ति की सच्चाई को दर्शाता है।
सिले हुए कपड़ों से दूर रहना, उज्ज्वल रंगों का चयन करना और हर चीज को शुद्धता से निभाना — यही छठ पूजा की आत्मा है। जब व्रती महिला बिना सिले, साफ-सुथरे कपड़ों में जल में खड़ी होकर सूर्य देव को अर्घ्य देती है, तब वह सिर्फ एक पूजा नहीं कर रही होती — वह अपनी आत्मा को पूर्ण श्रद्धा से ईश्वर को समर्पित कर रही होती है।
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