उज्जैन में ही क्यों है काल सर्प दोष का निवारण? जानिए

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उज्जैन में ही क्यों है काल सर्प दोष का निवारण? जानिए

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जातक की कुंडली में कई तरह के दोष होते हैं जैसे कालसर्प दोष (kaal sarp dosh), पितृदोष, नाड़ी दोष, गण दोष,चाण्डालदोष, ग्रहणयोग, मंगलदोष या मांगलिक दोष आदि। आखिरकार कुंडली में दोष बनते कैसे हैं इसको लेकर आपके मन में कई बार सवाल आता होगा। दरअसल मान्यता है कि सभी दोष आपके पूर्वजन्म से जुड़े होते हैं। इसके अलावा यदि कुंडली में ग्रहों नीच भाव में स्थित हो या कोई पापी ग्रह आपकी लग्न राशि को देख रहा हो तो ऐसी सिचुएशन में भी आपकी कुंडली में दोष पैदा हो जाता है। 

 

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कालसर्प दोष 

ज्योतिष के अनुसार कालसर्प दोष को ऐसा दोष माना गया है जिसकी वजह से व्यक्ति जीवनभर परेशानियों से जूझता रहता है। लेकिन यह दोष सामान्य है क्योंकि ये 70फीसदी कुंडलियों में पाया जाता है। अगर इस दोष को दूर करने के लिए विधिवत उपाय किया जाए तो यह सिद्ध योग भी बना सकता है, जिससे आप राजा भी बन सकते हैं। आपको बता दें कि हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कुंडली में भी कालसर्प दोष था और क्रिेकेट के भागवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर की कुंडली में भी यह दोष है। मगर दोनों ने अपने क्षेत्र में मान सम्मान हासिल किया और धनलाभ भी हुआ। 

 

कैसे बनता है कालसर्प दोष?

कुंडली में यह दोष तब बनता है जब किसी की कुंडली में राहु और केतु ग्रहों के बीच आ जाते हैं। जिस वजह से सभी ग्रहों से आ रहे फल रुक जाते हैं और जातक के जीवन में समस्याएं पैदा हो जाती है। दरअसल राहु का अधिदेवता काल है और केतु का अधिदेवता सर्प है। इसलिए इस दोष का नाम कालसर्प रखा गया है। इस दोष की वजह से जातक को करियर, शादी, धन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्राचीन ज्योतिषशास्त्रों के अनुसार 12 तरह के कालसर्प दोष कुंडली में होते हैं।  1-अनन्त 2-कुलिक 3-वासुकि 4-शंखपाल 5-पद्म 6-महापद्म 7-तक्षक 8-कर्कोटिक 9-शंखचूड़ 10-घातक 11- विषाक्तर 12-शेषनाग।

 

निवारण के लिए क्या करें?

अगर आपके मन में यह सवाल आ रहा है कि इस दोष को दूर कैसा किया जाता है तो हम आपको बता दें कि कुंडली में उपस्थित दोषों को दूर करने के लिए कई ज्योतिषीय उपाय भी हैं। अलग-अलग दोषों के लिए अलग-अलग तरह की पूजा का विधान है। वहीं कालसर्प दोष के निवारण के लिए भारत के उज्जैन में नाग सर्प  बली अनुष्ठान कराया जाता है। पौराणिककथा के अनुसार उज्जैन को सर्पों की नगरी कहा जाता है। इस स्थान पर महामृत्युंजय जाप, पितृ पूजन, ग्रह शांति, कालसर्प दोष निवारण पूजा, तथा सभी समस्त धार्मिक अनुष्ठान आदि करने से शिव परिवार की कृपा के साथ ही अन्य देवी-देवताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।

 

उज्जैन में क्यों होती है कालसर्प पूजा?

अब आप सोच रहे होंगे कि पूरे भारतवर्ष में केवल उज्जैन में ही कालसर्प दोष निवारण पूजा क्यों कराई जाती है? दरअसल पौराणिक कथानुसार अवंतिका खंड में भैरव तीर्थ और नागतीर्थ का उल्लेख किया गया है। एक बार राज जन्मेजय ने समस्त नाग जाति के विनाश हेतु सर्पमेध यज्ञ का आयोजन करवाया, जिसकी वजह से संसार के सभी सर्प और नाग यज्ञवेदी में गिरने लगे। तब नागराज तक्षक ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए देवताओं से मदद मांगी, लेकिन प्रतापी मंत्रों की वजह से तक्षक के साथ-साथ इंद्र और अन्य देवतागण भी वेदी की तरफ खिंचने लगे। तब देवता और सर्प ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे और उन्होंने मदद की गुहार लगाई। चतुरानन ने उनसे मनसा देवी के पुत्र अस्तिका की सहायता लेने को कहा। ब्रह्मा जी के कहेनुसार देवता और सर्पगण मनसा देवी के पास पहुंचे और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। तब माती ने अपने पुत्र अस्तिका को आज्ञा दी कि वह सर्पमेध यज्ञ को रुकवाए। माता की आज्ञा का पालन करते हुए अस्तिका ने यज्ञ को रोक दिया और उनका स्थान परिवर्तित किया। उसमें महाकाल वन की कई सीमाएं ली गईं यही कारण है कि नागों की शरणस्थली उज्जैन को कहा जाता है और यहां की गई कालसर्पप की पूजा हमेशा फलदायी सिद्ध होती है। 

 

ज्योतिष के अनुसार कालसर्प दोष निवारण के लिए उत्तर और दक्षिण स्थित तीर्थस्थलों का प्रभाव विशेष माना गया है। इसलिए उज्जैन के अलावा महाराष्ट्र, त्रयंबकेश्वर, तिरुपति बालाजी, कर्नाटक का नाग मंदिर, आंध्र प्रदेश का नाग मंदिर, रामेश्वर स्थित नागतीर्थ, नागार्जुन आदि जगहों पर कालसर्प दोष निवारण पूजा का प्रावधान है। 

 

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