कौन हैं भगवान कार्तिकेय की दो पत्नियाँ ? कहानी पढ़कर रह जाएंगे हैरान

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कौन हैं भगवान कार्तिकेय की दो पत्नियाँ ? कहानी पढ़कर रह जाएंगे हैरान

Kartikeya Wife: जब भी आप भगवान कार्तिकेय को याद करते हैं तो आपके भीतर साहस और ऊर्जा जाग उठती है। कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के तेजस्वी पुत्र हैं। इन्हें दक्षिण भारत में भगवान मुर्गन के रूप में पूजा जाता है। भगवान कार्तिकेय की वीरता के बारे में तो आप सब लोग जानते होंगे, लेकिन इनके निजी जीवन या इनकी पत्नी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। भगवान कार्तिकेय का परिवार या उससे जुड़ी कहानियां आज भी लोगों के मन में जिज्ञासा पैदा करती हैं। 

तो आज आप इस लेख में जानेंगे कि भगवान कार्तिकेय की पत्नी (Lord Kartikeya Wife) कौन हैं और उनके पीछे कौन-सी पौराणिक कथा प्रचलित है।

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कौन हैं भगवान कार्तिकेय की पत्नी ? (Lord Kartikeya Wife Name)

भगवान कार्तिकेय की दो पत्नियाँ हैं, और दोनों का स्वभाव, पृष्ठभूमि और महत्व अलग है। यही वजह है कि उनकी कहानियां भक्तों को हमेशा आकर्षित करती हैं।

पहली पत्नी देवसेना को स्वर्गीय लोक से जुड़ा माना जाता है। कई परंपराएं कहती हैं कि वह इंद्र की बेटी हैं, जबकि कुछ कथाओं में उनका जन्म दूसरे देववंशों में बताया गया है। उनका व्यक्तित्व शांति, अनुशासन और भक्ति की गहराई का प्रतीक माना जाता है। कार्तिकेय और देवसेना का विवाह देवताओं के बीच बड़ी विधि-विधान से होता है।

दूसरी पत्नी वल्ली इसके बिल्कुल विपरीत, धरती से जुड़ी और बहुत ही सरल स्वभाव की मानी जाती हैं। वह एक जनजातीय परिवार में जन्मी और जंगलों में पली-बढ़ी थीं। उनकी कहानी प्रेम और मासूमियत से भरपूर है, जहाँ कार्तिकेय जी को उनका दिल जीतने के लिए कई मजेदार, चुनौतीभरे रास्ते अपनाने पड़ते हैं। वल्ली प्रेम, सहजता और दिल से की गई भक्ति का प्रतीक हैं।

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देवसेना और कार्तिकेय की कहानी 

देवसेना की कथा कई ग्रंथों में मिलती है, और हर जगह उनका स्वरूप एक पवित्र और तेजस्वी देवी के रूप में दिखता है। ऐस कहा जाता है कि जब भगवान कार्तिकेय ने दैत्यों का नाश किया और देवताओं को जीत दिलाई, तो इंद्र ने प्रसन्न होकर देवसेना का हाथ उनके लिए माँगा। कई परंपराएँ यह भी बताती हैं कि पिछले जन्म में देवसेना भगवान विष्णु की पुत्री थीं और उन्होंने कठोर तप करके कार्तिकेय को अपना पति पाने की मनोकामना की थी।

कार्तिकेय और देवसेना का विवाह पारंपरिक, वैदिक विधियों के साथ संपन्न हुआ था। इस शादी में मंत्र, हवन और देवताओं की उपस्थिति का विशेष महत्व बताया गया है। महाभारत के वनपर्व में वर्णन मिलता है कि स्वयं ब्रह्मा ने देवसेना का भाग्य पहले ही तय कर दिया था और कहा था कि वह कार्तिकेय की ही पत्नी बनेंगी। जब समय आया, तो देवताओं ने उसे सुंदर वस्त्रों से सजाया और कार्तिकेय के सामने प्रस्तुत किया। बृहस्पति ने विवाह के मंत्र पढ़े, और देवसेना ने मंगल भावना के साथ कार्तिकेय का हाथ थाम लिया।

देवसेना को कई नामों से भी जाना जाता है, जैसे शष्ठी, लक्ष्मी, अपराजिता और सुकप्रदा। ऐसा माना जाता है कि विवाह के बाद समृद्धि की देवियाँ भी कार्तिकेय की सेवा में तत्पर हो गईं, क्योंकि देवसेना स्वयं शुभता और सौभाग्य की प्रतीक मानी जाती हैं।

उनकी कहानी कर्तव्य, तपस्या, भक्ति और दिव्य आशीर्वाद का सुंदर मेल है, जो भक्तों को आज भी प्रेरित करता है।

भगवान कार्तिकेय और वल्ली की प्रेम कहानी 

वल्ली की कथा तमिल परंपराओं और लोकगीतों में बहुत प्यार से सुनाई जाती है। कहा जाता है कि उनका जन्म सुंदरवल्ली नाम से हुआ था और बचपन से ही वह जंगलों, पहाड़ियों और प्रकृति के बीच पली बढ़ीं। उनका स्वभाव सीधा, हँसमुख और बिल्कुल धरती से जुड़ा हुआ माना जाता है।

भगवान कार्तिकेय का मन वल्ली के प्रति पहली ही नज़र में खिंच गया था। लेकिन वल्ली तक पहुंचना आसान नहीं था। वह बेहद शर्मीली थीं, और किसी अनजान व्यक्ति की तरफ ध्यान भी नहीं देती थीं। यहीं से उनकी कहानी में मजेदार मोड़ आते हैं।

कथा के अनुसार, कार्तिकेय जी ने अलग-अलग रूपों में जाकर वल्ली से बात करने की कोशिश की। और इसमें उनके भाई गणेश जी ने भी खास भूमिका निभाई। एक लोककथा में कहा जाता है कि गणेश जी हाथी के रूप में सामने आए, जिससे वल्ली डर गईं। उस समय कार्तिकेय ने “शरण” देने के बहाने खुद को सामने लाया। इस तरह दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई, और धीरे धीरे वल्ली का मन भी भगवान कार्तिकेय की तरफ खिंचने लगा।

बहुत कोशिशों, हँसी-मज़ाक और रोमांच भरे पलों के बाद वल्ली ने कार्तिकेय को अपना जीवनसाथी मान लिया। उनकी प्रेम कहानी आज भी दक्षिण भारत में बड़ी आत्मीयता से याद की जाती है। यह कहानी बताती है कि प्रेम कितना सरल, सहज और दिल से जुड़ा हो सकता है।

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भगवान कार्तिकेय की दोनों पत्नियों का पौराणिक महत्व 

भगवान कार्तिकेय की दोनों पत्नियाँ सिर्फ कथाओं का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि उनके माध्यम से जीवन के दो अलग-अलग पहलुओं को समझाया गया है।

देवसेना उस शक्ति का रूप मानी जाती हैं जो अनुशासन, कर्तव्य और ऊँचे लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है। उनका स्वभाव आपको यह याद दिलाता है कि आध्यात्मिक रास्ता मेहनत, ध्यान और सही कर्म से आगे बढ़ता है।

दूसरी ओर, वल्ली मन की चाह, प्रेम और सहज भक्ति का प्रतीक हैं। वह दिखाती हैं कि भगवान तक पहुंचने का रास्ता हमेशा कठोर नहीं होता, कभी-कभी सिर्फ सच्ची भावना और दिल से किया गया प्यार भी काफी होता है।

मंदिरों में और शास्त्रों में दोनों के साथ दिखाए जाने का अर्थ यही है कि जीवन में संतुलन होना जरूरी है। जहां एक तरफ अनुशासन और जिम्मेदारी आपकी दिशा तय करते हैं, वहीं प्रेम और भावनाएँ उस राह को बेहतर बनाती हैं। देवसेना और वल्ली मिलकर इस सुंदर संतुलन को दर्शाती हैं, जो धरती और आकाश, नियम और स्वाभाविकता, दोनों को जोड़ता है।

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